नई दिल्ली। व्यभिचार कानून पर आज फैसला आया. स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया. आज के फैसले से साफ हो गया कि कोर्ट ने समानता के अधिकार को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं के अधिकार को सर्वोपरि माना.
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि व्यभिचार कानून अपराध नहीं है.
बीते 2 अगस्त को देश की शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई थी. तब अदालत ने कहा था, ‘व्यभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. पति के कहने पर पत्नी किसी की इच्छा की पूर्ति कर सकती है, तो इसे भारतीय नैतिकता कतई नहीं मान सकते.’
अदालत ने आगे कहा, शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है. फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को पुरातन मान रही है.
सुप्रीम कोर्ट में अब तक की सुनवाई से साफ है कि अदालती जिरह मुख्य रूप से समानता और गैर-समानता के आसपास चली. तभी कोर्ट ने दलील दी कि व्यभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है.
महिला के पक्ष में खड़ा कोर्ट?
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में कह चुका है कि व्यभिचार कानून लगता तो महिला समर्थक है लेकिन है महिलाओं के विरुद्ध. इस तर्क से साफ है कि फैसले का आधार पुरुष-महिला के बीच समानता के अधिकार की ओर इशारा करता है. जबकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुछ साल पहले एक अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि ये संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता की भावना के खिलाफ है. अगर किसी अपराध के लिए मर्द के खिलाफ केस दर्ज हो सकता है, तो फिर महिला के खिलाफ क्यों नहीं?
इस अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट ने महिला को कमजोर पक्ष माना और कहा था कि ऐसे में उनके खिलाफ केस नहीं चलाया जा सकता. हालांकि कोर्ट की दलीलों से यह स्पष्ट नहीं हो सका कि जब केस मर्द के खिलाफ दर्ज होगा, तो महिला को कमजोर पक्ष कैसे मान सकते हैं.
इस कानून का एक पक्ष यह भी है कि अपराधी सिर्फ पुरुष’ हो सकते हैं और महिला सिर्फ शिकार क्योंकि केवल उस व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज का प्रावधान है, जिसने शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाए. उस महिला के खिलाफ मुकदमा नहीं होता, जिसने ऐसे संबंध बनाने के लिए सहमति दी. फिर एक सवाल यह उठता है कि जब महिला को हर प्रकार से छूट दी गई है तो तो उसे ‘शिकार’ कैसे माना जा सकता है.