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शेन वार्न ने इंग्लैंड के उस कप्तान की तारीफ की, जिसे ऑस्ट्रेलिया ‘विलेन’ मानता है

सिडनी। अपने बयानों से विवादों को न्योता देने वाले शेन वार्न ने अब अपनी किताब ‘नो स्पिन’ में ऐसे कई जिक्र किए हैं, जो कई लोगों को नागवार गुजर रही है. ऑस्ट्रेलिया के शेन वार्न ने ‘नो स्पिन’ में इंग्लैंड के उस कप्तान की तारीफ की है, जिसे उनके देश में खलनायक के रूप में देखा जाता है. इतना ही नहीं उन्होंने अपने देश के महान कप्तानों में शुमार स्टीव वॉ को बेहद स्वार्थी करार दिया है.

पूर्व लेग स्पिनर शेन वार्न दुनिया के दूसरे सबसे कामयाब टेस्ट गेंदबाज हैं. उन्होंने 708 विकेट लिए हैं. अपने करियर के दौरान फिक्सिंग से लेकर डोपिंग तक के आरोप झेल चुके वार्न क्रिकेट से संन्यास के बाद भी सुर्खियों में रहते हैं. उनकी इसी सप्ताह ‘नो स्पिन’ प्रकाशित हुई है.

बॉडीलाइन अटैक एक सफल स्ट्रेटजी थी 
वार्न ने अपनी किताब में क्रिकेट इतिहास के सबसे विवादास्पद कप्तान डगलस जार्डिन की तारीफ की. जार्डिन 1930 के दशक में हुई ‘बॉडीलाइन सीरीज’ में इंग्लैंड के कप्तान थे. शेन वार्न ने लिखा ,‘डगलस जार्डिन ने सर डॉन ब्रैडमैन के सामने कामयाबी हासिल की. उनमें खेल के मानदंड बदलने का साहस था.’ शेन वार्न ने जार्डिन की बॉडीलाइन अटैक को तेज गेंदबाजों के लिए बनाई गई स्ट्रेडजी करार दिया, जो कामयाब भी रही.

शरीर को निशाना बनाते थे गेंदबाज 
बॉडीलाइन सीरीज में हैराल्ड लारवुड की अगुवाई में उनके तेज गेंदबाज बल्लेबाजों के शरीर को निशाना बनाते थे. उनका लक्ष्य ब्रैडमैन के बल्ले पर अंकुश लगाना होता था और उस समय ऑस्ट्रेलिया में इसे लेकर खासी नाराजगी थी. इंग्लैंड ने इसी रणनीति के चलते 4-1 से सीरीज जीती, लेकिन इससे ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेट संबंधों में तल्खी आ गई थी .

‘स्वार्थी’ स्टीव वॉ को सिर्फ अपने औसत की चिंता थी 
वार्न ने पूर्व कप्तान स्टीव वॉ को स्वार्थी कहा . उन्होंने कहा कि 1999 में वेस्टइंडीज के खिलाफ एंटीगा में चौथे टेस्ट में जब वॉ ने उन्हें बाहर किया था तो उन्हें बहुत दुख हुआ था. उन्होंने कहा, ‘उसके बाद मेरी नजर में उनका सम्मान कम हो गया. मुझे लगता है कि कप्तान को अपने खिलाड़ियों का साथ हर समय देना चाहिए. उससे खिलाड़ियों से इज्जत मिलती है और वे आपके लिए खेलते हैं . उन्हें वह सम्मान नहीं मिला.’ उन्होंने कहा, ‘स्टीव वॉ सबसे स्वार्थी खिलाड़ियों में से थे. उन्हें सिर्फ अपने औसत की चिंता थी.’

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