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पिछले एक दशक में सी-सेक्शन से जन्म लेने वाले मामले दोगुने हुए

एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में ऑपरेशन के जरिए बच्चों को दुनिया में लाने के मामले बढ़ते जा रहे हैं. वर्ष 2005-6 के बीच यह आंकड़ा नौ प्रतिशत था जो 2015-16 में बढ़ कर 18.5 प्रतिशत पर पहुंच गया. लैंसेट जर्नल में प्रकाशित तीन शोधपत्रों से यह खुलासा हुआ है. साथ ही यह भी पता चला है कि विश्वभर में वर्ष 2000 से 2015 के बीच सर्जरी के जरिए बच्चों के जन्म के मामले लगभग दोगुने हो गए हैं.

शोधकर्ताओं में बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि एक ओर जहां कम आय वाले देशों और क्षेत्रों में अनेक महिलाओं और बच्चों के लिए जीवन रक्षक सर्जरी उपलब्ध नहीं हैं वहीं मध्य और उच्च आय वाले देशों में इस प्रक्रिया का अत्याधिक इस्तेमाल हो रहा है. शोधकर्ताओं ने बताया कि भारत में 2005-6 में सी-सेक्शन के मामले नौ प्रतिशत थे जो 2015-16 में बढ़ कर 18.5 प्रतिशत पर पहुंच गए.

गौरतलब है कि सी-सेक्शन महिला और नवजात के लिए एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है जिसे रक्तस्राव, भ्रूण संकट, अतिसंवेदनशील बीमारी और शिशु की असामान्य स्थिति के दौरान अंजाम दिया जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि सर्जरी में मां और शिशु दोनों को खतरा रहता है. साथ ही दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में जटिलताएं पैदा होती है.

एक अनुमान के मुताबिक जन्म के 10 से 15 प्रतिशत मामलों में जटिलताओं को देखते हुए सर्जरी की जरूरत होती है. वहीं सी-सेक्शन के औसत मामले इन्ही स्तरों के बीच होने चाहिए. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि 2015 में चार देशों में से एक से ज्याद देश में यह स्तर कम (28 प्रतिशत) रहा वहीं अधिकतर देशों ने अनुशंसित स्तर(63 प्रतिशत) से अधिक सी-सेक्शन का इस्तेमाल किया.

श्रृंखला प्रमुख मरलीन टेमेरमेन कहती हैं, ‘‘गर्भावस्था और प्रसव सामान्य प्रक्रिया है और अधिकतर मामलों में यह सुरक्षित हो जाता है. लेकिन बिना चिकित्सकीय जरूरत के सी-सेक्शन का अधिक इस्तेमाल चिंता का विषय है क्योंकि इससे महिलाओं और बच्चों को खतरा होता है.

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