चेन्नई। दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए मशहूर वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने शुक्रवार को कहा कि 2007 में संप्रग सरकार ने राष्ट्रीय किसान नीति (एनपीएफ) पर कोई कदम नहीं उठाया जिसमें कृषि को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उसकी बेहतरी के सुझाव दिये गये थे. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों के दुख-दर्द के समाधान के लिए मूल्य निर्धारण, खरीद और सार्वजनिक वितरण पर ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘कर्ज माफी की मांग कृषि की वर्तमान गैर लाभकारी प्रकृति से उत्पन्न होती है और यह इस तथ्य का संकेत है कि आर्थिक व्यावहारिकता जितनी उद्योगपतियों के लिए महत्वपूर्ण है, उतनी ही किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण है.’ स्वामीनाथन ने कहा कि किसान आंदोलन कृषि अशांति का सबूत है और वे (किसान) इस निष्कर्ष पर पहुंच गये हैं कि तार्किकता से नहीं बल्कि आंदोलन से ही उनकी समस्याओं के हल के लिए कदम उठाये जाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अफसोस है कि चुनावी राजनीति में कर्ज माफी जैसे समाधानों को ही महत्व दिया जाता है.’ उन्होंने कहा कि किसानों की मूलभूत समस्याओं से केवल तभी पार पाया जा सकता है जब मूल्य निर्धारण, खरीद और सार्वजनिक वितरण पर समग्र ध्यान दिया जाए. कृषि वैज्ञानिक ने कहा, ‘दुर्भाग्य से जब 2007 में राष्ट्रीय किसान नीति संबंधी रिपोर्ट पेश की गई थी तब उस समय की सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया.’
एनपीएफ के नीति लक्ष्यों में किसानों की विशुद्ध आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर कृषि की आर्थिक व्यावहारिकता में सुधार लाना शामिल था. 2007 में तत्कालीन कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने एनपीएफ को मंजूर किया था और नीतिगत प्रारुप स्वामीनाथन ने तैयार किया था जो राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ)के अध्यक्ष थे. स्वामीनाथन ने कहा कि एनसीएफ की सिफारिश के आधार पर केंद्र (राजग सरकार) पहले ही कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय कर चुका है.
उन्होंने कहा, ‘नाम में यह बदलाव केंद्र और राज्यों में कृषि मंत्रालयों के मुख्य उद्देश्य के रुप में किसान कल्याण के संवर्धन के लिए निर्धारित कार्य के रुप में परिलक्षित होना चाहिए.’ आंदोलन के संदर्भ में उन्होंने इस बात पर अफसोस प्रकट किया कि जीवन प्रदान करने वाले किसानों को आर्थिक कारणों से अपनी जान देनी पड़ती है. उन्होंने कहा, ‘मैं आशा करता हूं कि आज का किसान मुक्ति मोर्चा कृषि के क्षेत्र में सार्वजनिक नीति के निर्माण के इतिहास में एक अहम मोड़ होगा.’