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राजस्थान में इन प्रिंसेज की भूमिका हो सकती है अहम! सत्‍ता के गलियारों में है इनकी धाक

नई दिल्‍ली। राजस्‍थान में करीब 18 राजघराने ऐसे हैं जिनमें आधे से अधिक भारतीय सियासत में गहरी पैठ रखते हैं. बात चाहे विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव, इन रजवाड़ों की पूछ जयपुर से लेकर दिल्‍ली तक रहती है. इन नामों में सबसे पहला नाम राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे का आता है. वह धौलपुर रियासत से ताल्‍लुक रखती हैं. वह ग्‍वालियर रॉयल फैमिली के महाराज जीवाजीराव सिंधिया की बेटी हैं. उनका विवाह धौलपुर परिवार के महाराज राना हेमंत सिंह से हुआ था. फिर आता है, जयपुर रियासत की राजकुमारी दिया कुमारी का नाम. इस विधानसभा चुनाव में जैसलमेर राजघराने की बहू राजेश्वरी राज्यलक्ष्मी के नाम को लेकर ज्‍यादा चर्चा है.

राज्‍य लक्ष्‍मी ने फिर की वापसी
जैसलमेर के महारावल रघुनाथ सिंह बहादुर ने सबसे पहले राजनीति में कदम रखा. वह 1957 में बाड़मेर से लोकसभा के लिए चुने गए थे. 1980 में महारावल बृजराज सिंह के चाचा चंद्रवीर सिंह एमएलए बने. इसके बाद परिवार सक्रिय राजनीति से बाहर हो गया. अब बृजराज सिंह की पत्‍नी राजेश्‍वरी राज्‍य लक्ष्‍मी ने यह विधानसभा चुनाव लड़ा है. राजेश्वरी का संबंध नेपाल के सिसोदिया राणा घराने से है. उनकी शादी 1993 में जैसलमेर घराने में हुई थी.

धौलपुर से चुनाव लड़ती थीं वसुंधरा राजे
राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे धौलपुर रियासत से ताल्‍लुक रखती हैं. वह ग्‍वालियर रॉयल फैमिली के महाराज जीवाजीराव सिंधिया की बेटी हैं. उनका विवाह धौलपुर परिवार के महाराज राना हेमंत सिंह से हुआ था. लेकिन बाद में दोनों अलग हो गए. राजे 1984 से राजनीति में हैं. 1985 में उन्‍होंने पहला विधानसभा चुनाव जीता. वह 5 बार लोकसभा चुनाव भी जीत चुकी हैं और केंद्र सरकार में मंत्री पद भी संभाला. उन्‍हें 2003 में राजस्‍थान के सीएम की गद्दी मिली थी और फिर 2013 में. 2003 से वह झालरापटन सीट से चुनाव लड़ रही हैं. उनके पुत्र दुष्‍यंत सिंह 2014 में झालावार बरन सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे.

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जोधपुर का शाही परिवार आया सबसे पहले राजनीति में
राजस्‍थान के रजवाड़ों के राजनीति में आने की शुरुआत जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह ने की थी. फिलवक्‍त रियासत के युवराज गज सिंह और युवराज्ञी चंद्रेश कुमारी कटोच राजनीति में सक्रिय हैं. चंद्रेश कुमारी कटोच कांग्रेस में है जबकि गज सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं. महाराज हनवंत सिंह ने 1952 में अखिल भारतीय रामराज्‍य परिषद पार्टी बनाई थी ताकि विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में हिस्‍सा लिया जा सके. उनकी इलाके में अच्‍छी पैठ थी. लेकिन उसी साल एक प्‍लेन क्रेश में उनकी जान चली गई. उसी साल गज सिंह ने रियासत और पारिवारिक सियासत दोनों की कमान संभाल ली. वह 1990 से 1992 के बीच राज्‍यसभा सदस्‍य रहे थे. उनकी बड़ी बहन चंद्रेश कुमारी कटोच कांग्रेस की केंद्र सरकार में संस्‍कृति मंत्री रह चुकी हैं. उनकी शादी राजा आदित्‍य देव चंद कटोच से हुई थी. वह 1984 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से लोकसभा चुनाव जीती थीं. वह 2009 में जोधपुर से चुनाव लड़ीं और जीतीं लेकिन 2014 के चुनाव में अपनी सीट नहीं बचा पाईं.

जयपुर की गायत्री देवी ने दी नई दिशा
जयपुर के रजवाड़े की तीसरी महारानी गायत्री देवी ने सी. राजागोपालाचारी की पार्टी से राजनीतिक शुरुआत की थी. 1962 के लोकसभा चुनाव में जयपुर निर्वाचन क्षेत्र से उन्‍होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. वह 1971 तक यहां से चुनाव जीतती रहीं. 1967 में उनकी पार्टी का जनसंघ में विलय हो गया और 70 के दशक में उन्‍होंने राजनीति से संन्‍यास ले लिया. उनके स्‍टेपसन भवानी सिंह ने 1 बार चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. इसके बाद उनकी बेटी दिया कुमारी ने 2013 में राजनीति में कदम रखा. उन्‍हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में बीजेपी की सदस्‍यता देने का ऐलान किया था. वह राजस्‍थान विधानसभा की सदस्‍य हैं और सवाई माधोपुर सीट का प्रतिनिधित्‍व कर रही हैं.

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