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चुनाव के बाद बिहार में सियासी उथल-पुथल, अब नीतीश बीजेपी के लिये लेकर आये खुशखबरी

पटना। लोकसभा चुनाव के बाद भी मोदी सुनामी जारी है, प्रचंड बहुमत मिलने के बाद बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। इस चुनाव में बीजेपी को 303 और एनडीए को 353 सीटें मिली है, मोदी की इस सुनामी में विपक्ष के कई किले ढह गये, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी सीट तक नहीं बचा सके, तो उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी अब अपना वजूद तलाश रही है।

कुशवाहा को तगड़ा झटका 
बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को तगड़ा झटका लगा है, दरअसल रविवार को कुशवाहा के दोनों विधायक जदयू में शामिल हो गया, आपको बता दें कि अब कुशवाहा की पार्टी में कोई निर्वाचित सदस्य नहीं रह गया है, क्योंकि इस लोकसभा चुनाव में रालोसपा का खाता भी नहीं खुला। इसके बाद अब नीतीश कुमार ने उन्हें दोहरा झटका दिया है।

उल्टा पड़ गया दांव 
कभी नीतीश के खासमखास रहे उपेन्द्र कुशवाहा को उनका उत्तराधिकारी माना जाता था, कुशवाहा अपने पॉलिटिकल मूव्स के लिये भी जाने जाते हैं, नीतीश से अलग होने के बाद उन्होने अरुण सिंह के साथ मिलकर अलग पार्टी बनाई और 2014 चुनाव में एनडीए से गठबंधन किया, एनडीए ने उन्हें तीन सीटें दी और तीनों पर कुशवाहा के उम्मीदवार जीत गये, जिसके बाद उन्हें केन्द्र में मंत्री पद मिला, हालांकि बाद में नीतीश की एनडीए में वापसी ने कुशवाहा को असहज कर दिया, नीतीश के वापस आ जाने से उन्हें मिलने वाला भाव भी कम हो गया, जिसके बाद कुशवाहा ने एनडीए छोड़ महागठबंधन का रुख किया, लेकिन चुनाव परिणाम देख लगता है कि उनका दांव उल्टा पड़ गया।

दो सीटों से लड़े चुनाव
महागठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा को पांच सीटें मिले, जिसमें दो सीटों से वो खुद चुनावी मैदान में उतरे, हालांकि दोनों ही सीटों से उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा, इसके साथ ही दूसरी सीटों पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली, कहा जाता है कि नीतीश ने उन्हें हरवाने के लिये अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, क्योंकि नीतीश के बारे में कहा जाता है, कि वो अपने दुश्मनों को माफ नहीं बल्कि साफ करते हैं। एनडीए छोड़ते समय भी कुशवाहा ने नीतीश पर जमकर हमले किये थे।

टूट की कगार पर पार्टी 
2014 में तीन सीट जीतकर कुशवाहा मोदी कैबिनेट में मंत्री बन गये थे, फिर 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए का खराब प्रदर्शन रहा, कुशवाहा की पार्टी के सिर्फ दो विधायक जीत सके, हालांकि अपने इन दोनों विधायकों को भी कुशवाहा नहीं संभाल सके, अब दोनों विधायक एक साथ जदयू में शामिल हो गये हैं, यानी अब रालोसपा में एक भी निर्वाचित सदस्य नहीं है।

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