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क्या होगा अगर सांसद रमा देवी ने सदन में नहीं स्वीकारी आजम खान की माफी?

नई दिल्ली। लोकसभा में पीठासीन महिला सांसद रमा देवी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करके आजम खान मुश्किलों में घिर गए हैं. रमा देवी ने साफ कहा है कि वो सपा सांसद आजम की माफी से संतुष्ट नहीं होंगी, जबकि माना जा रहा है कि सभी पार्टियों द्वारा अधिकृत होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला सपा सांसद आजम खान को माफी मांगने को कहेंगे.

अगर रमा देवी लोकसभा अध्यक्ष की आजम खान पर कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हुईं और इस मामले को सदन के बाहर ले गईं, तो पहले से मुश्किलों में घिरे आजम खान एक नई मुसीबत में फंस सकते हैं और आजम खान के खिलाफ बड़ा एक्शन हो सकता है. उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी की जा सकती है. वो संसदीय विशेषाधिकारों की आड़ में न तो किसी के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकते हैं और न ही कोई क्राइम कर सकते हैं.

संविधान विशेषज्ञ डीके दुबे और लॉ के प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि संसद के अंदर किसी मामले पर कार्रवाई करने और फैसला लेने का अधिकार पीठासीन अधिकारी यानी लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को होता है. संविधान के अनुच्छेद 122 में प्रावधान है कि संसद की कार्यवाही पर न्यायालय में सवाल नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन इसकी आड़ में संसद कोई असंवैधानिक कार्य नहीं कर सकती है.

डॉ राजेश दुबे और डीके दुबे का कहना है कि यहां पर पहली बात यह है कि लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला को आजम खान के खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार है. इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष मामले में पुलिस कार्रवाई का भी निर्देश दे सकते हैं. अगर पुलिस को आजम खान के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया जाता है, तो उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 294, 509 और 354A के तहत कार्रवाई की जा सकती है. ऐसे में उनको तीन साल तक की जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है.

इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष की इजाजत से पुलिस आजम खान के खिलाफ कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न अधिनियम 2013 के तहत भी कार्रवाई कर सकती है. इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का फैसला अहम है. एक सवाल के जवाब में डॉ राजेश दुबे और डीके दुबे ने कहा कि अगर लोकसभा अध्यक्ष के फैसले से सांसद रमा देवी सहमत नहीं हैं और उनको लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, तो वो लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है.

डॉ राजेश दुबे और डीके दुबे का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 122 में भले ही संसद को विशेषाधिकार मिला हो, लेकिन संसद किसी सांसद के मौलिक अधिकारों के हनन पर इसकी आड़ नहीं ले सकता है. संविधान की उद्देश्यिका में भी साफ किया गया है कि भारत के जनता सर्वोच्च है और जनता ने संविधान को अंगीकृत किया है. इसका मतलब यह हुआ कि संविधान को जनता से शक्ति मिली है और संसद व सरकार को संविधान से.

संसद नहीं, संविधान है सर्वोच्च

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि भारत में संविधान सर्वोच्च है और संसद को संविधान से शक्ति मिलती है. इंग्लैंड की तरह भारत में संसद सर्वोच्च और संप्रभु नहीं है. सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक है और उसको संविधान की व्याख्या करने का पूरा अधिकार है.

अगर संसद या सरकार संविधान या उसकी भावना के खिलाफ कोई काम करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट उनको असंवैधानिक घोषित कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि संविधान में सभी नागरिकों को मूल अधिकार मिले हुए हैं, जिनकी रक्षा करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है. इसका मतलब यह हुआ कि संसद के किसी भी फैसले, कार्यवाही या कानून की सुप्रीम कोर्ट समीक्षा कर सकता है. अगर संसद का कोई फैसला, कार्यवाही या कानून किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है.

संविधान विशेषज्ञ डीके दुबे और लॉ के प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि अगर आजम खान की टिप्पणी से महिला सांसद रमा देवी के गरिमा से जीने के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है, तो वो सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती हैं. मतलब यह हुआ कि अगर लोकसभा अध्यक्ष के फैसले से रमा देवी संतुष्ट नहीं होती हैं, तो वो सुप्रीम कोर्ट में मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं. ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करने और फैसला सुनाने का पूरा अधिकार है.

राजाराम  पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर दोहराया

राजाराम पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट दोहरा चुका है कि संसद सर्वोच्च नहीं है. संसद को संविधान से शक्ति मिलती है और संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार देती है. संसदीय विशेषाधिकार की आड़ में संसद कोई ऐसा काम नहीं कर सकती है, जिससे किसी नागरिक या सांसद के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो. अगर संसद कोई ऐसा काम करती है, तो उसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया जा सकता है.

क्या था राजाराम पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष का मामला

साल 2005 में आजतक ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसमें संसद में प्रश्न पूछने और मुद्दों को उठाने के एवज में 11 सांसद पैसे लेते कैद हुए थे. इस मामले में लोकसभा ने अपने 10 सांसदों और राज्यसभा ने एक सांसद को सदन से बाहर कर दिया था. इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि कोर्ट को संसद के असंवैधानिक फैसलों, कार्यवाहियों और कानून के खिलाफ सुनवाई करने का अधिकार है. संविधान की रक्षा करने और उसकी व्याख्या करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है.

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