Friday , March 29 2024

विशेष

लोकसभा चुनाव में एक भी उम्मीदवार न उतारने वाले राज ठाकरे इतनी रैलियां क्यों कर रहे हैं?

दुष्यंत कुमार लोकसभा चुनाव 2019 में एक भी प्रत्याशी नहीं उतारने वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ख़िलाफ़ अपनी रैलियों को लेकर चर्चा में हैं. इनमें वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ख़ास तौर पर निशाना साधते हैं. राज ठाकरे भाजपा के सबसे ...

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गुजरात विधानसभा चुनाव के तीन बड़े नायक लोकसभा चुनाव में लगभग बेअसर कैसे हो गए?

पुलकित भारद्वाज लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के तहत गुजरात में मतदान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. प्रदेश में इस बार 63.73 फीसदी मतदान हुआ है जो 2014 के 63.66 प्रतिशत के मुकाबले .07 प्रतिशत ज्यादा है. कुछ गिने-चुने राजनीतिक विश्लेषक इस बढ़त को ‘अंडरकरंट’ यानी सरकार के प्रति नाराज़गी ...

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क्यों महबूबा मुफ्ती के हाथ से इस बार बाजी ही नहीं उनका पूरा सियासी करियर फिसलता दिख रहा है

सुहैल ए शाह जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती बीते गुरुवार को-दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम इलाके में थीं. इस दौरान अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए वे रो पड़ीं. रोते हुए महबूबा अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री रहे मुफ़्ती ...

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एक समय CJI पर खुद ही सवाल उठा चुके हैं जस्टिस रंजन गोगोई; जानें क्या था पूरा मामला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार 12 जनवरी 2018 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने देश के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही कथित अनियमितताओं को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की। उस वक्त सुप्रीम ...

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कमजोर प्रत्याशी उतार कांग्रेस और सपा ने आसान कर दी राजनाथ की राह

राजेश श्रीवास्तव लखनऊ । मंगलवार को भाजपा की ओर से लखनऊ से नामांकन करने जा रहे राजनाथ सिंह के नामांकन जुलूस में उमड़ा जनसैलाब यह नारा गढ़ रहा था कि कहां फंसे हो चक्कर में, कोई नहीं है टक्कर में। उनके इस नारे पर शाम होते-होते समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ...

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उतावलेपन की राजनीति में राहुल ने लांघी हर सीमा………..

राजनीति में सफल होने के लिए जोश के साथ होश की कितनी जरूरत होती है, यह बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अब समझ में आ जानी चाहिए। खुद को सही साबित करने के चक्कर में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं बख्शा और यह गलतबयानी कर दी कि कोर्ट ...

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इनके नाम से ही कांपते थे नेता और पार्टियां, जिन्‍होंने किए चुनाव से जुड़े कई सुधार

नई दिल्‍ली। देश के निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी को 1950 को किया गया था। यानी भारत के गणतंत्र बनने से ठीक एक दिन पहले। पहले आम चुनाव के लिए घर-घर जाकर वोटरों का रजिस्ट्रेशन अपने आप में एक इतिहास बनाने जैसा था। हर पार्टी के लिए अलग-मतपेटी थी, ...

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पुरुषों के बराबर वोट देने वाली भारतीय महिलाओं की राजनीतिक हैसियत न के बराबर क्यों है?

प्रदीपिका सारस्वत घर हो या कार्यक्षेत्र, भारत में लैंगिक असमानता की जड़ें बहुत गहरी हैं. पर चुनाव एक ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाओं ने अपनी मौजूदगी का न सिर्फ़ अहसास कराया है बल्कि बदलाव लाने में एक बड़ी भूमिका भी निभाई है. भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी पर लिखे ...

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क्या लालकृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की अब भी कोई संभावना बची है?

हिमांशु शेखर भारतीय जनता पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को इस बार टिकट नहीं मिला. लंबे समय से उनकी सीट रहे गांधीनगर से अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उम्मीदवार हैं. कहा जा रहा है कि लालकृष्ण आडवाणी की सियासी पारी पर अब विराम लग गया है. जिस दिन ...

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बलराज साहनी शायद अकेले अभिनेता होंगे जो मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाने पर जेल भेजे गए थे

दीपक महान यूं तो हिंदी फिल्मों में एक से एक बेहतरीन अदाकार हुए हैं, लेकिन ऐसे कम ही रहे जिन्होंने परदे पर वो किरदार जिंदा किए जिनसे हम रोजाना दो-चार होते हैं. इन अभिनेताओं का नाम सोचने पर यकीनन बलराज साहनी ऐसा नाम होंगे जिनके बिना हम आगे नहीं बढ़ ...

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इंदिरा गांधी और हेमा मालिनी के गेहूं का गठ्ठर उठाने में क्या फर्क है?

दुष्यंत कुमार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद और हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री हेमा मालिनी इन दिनों अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा में अपने चुनाव प्रचार को लेकर चर्चा में हैं. बीते 31 मार्च को प्रचार अभियान शुरू करते हुए उन्होंने एक के बाद एक कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर ...

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1989 का वह आम चुनाव कई मायनों में इस बार के चुनाव जैसा ही था

अनुराग भारद्वाज आम चुनाव में अब ज़्यादा समय नहीं बचा है. आश्चर्यजनक रूप से इसमें मुद्दे और हालात वही दिख रहे हैं जो 30 साल पहले हुए चुनाव में थे. 1989 में हुआ आम चुनाव भारतीय राजनीति के इतिहास ख़ास मुक़ाम रखता है. यहां से राजनीति हमेशा के लिए एक ...

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क्यों कश्मीर में विकास की सबसे अहम परियोजना वहां के लोगों के लिए बुरा सपना बन गई है

सुहैल ए शाह कश्मीर घाटी में लगभग पिछले एक दशक से लोग राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे)- 44 पर चल रहे काम के खत्म होने का इंतज़ार कर रहे थे. यह वाजिब भी था. इस परियोजना का मकसद था लोगों के लिए सफर को बेहतर बनाना. कश्मीर में पिछले तीन दशक ...

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भाजपा ने बीते घोषणा पत्र के केवल 34 फीसद वादे ही पूरे किये

भाजपा ने 8वीं बार किया राम मंदिर, धारा 37० और यूनिफार्म सिविल कोड का वादा जरा जानिये, भाजपा का बीता संकल्प पत्र कितना खरा भाजपा ने बीते चुनाव में 346 वादे किये थ्ो। अब जब सरकार चुनाव में आ गयी है तो उसके पुराने वादों को कसौटी पर कसने की ...

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भारत के लिए नासूर बन चुका है घुसपैठ का मुद्दा, इसके कई बिंदुओं को समेटे है ये खास रिपोर्ट

नई दिल्ली। पड़ौसी देशों से घुसपैठ नासूर बनने की ओर है। बाहरी नागरिकों के भारत में अवैध रूप से बसते जाने का संकेत दे रहे आंकड़े और अनुमान चौंकाते हैं। बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से हो रही घुसपैठ भारतीय नागरिकों के हितों और हक को हड़पने का सबब बन ...

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