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‘आजकल हर कोई विशेषज्ञ बन गया है’: लॉकडाउन में दायर वे याचिकाएँ जिन पर SC बिफरा, फटकारा, जुर्माना लगाया

नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कारण लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच खुली शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका को आज अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने ऐसी बेकार की अर्जी डालने पर याचिकाकर्ता पर 1लाख रुपए का फाइन लगाया है।

न्यायधीश एल नागेश्वर राव, एसके कौल और बीआर गवई की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ये सब केवल पब्लिसिटी के लिए किया जा रहा है।

SC ने कहा, ”ये याचिकाएँ काम की कमी के कारण दाखिल की गई हैं। हम इन याचिकाओं से निपट नहीं सकते। इन मुद्दों से निपटने के लिए व्यवस्था है। ये याचिकाएँ केवल प्रचार के लिए हैं।  याचिकाकर्ता ने अदालत से शराब की दुकानों को बंद करने के लिए कहा, क्योंकि सरकार द्वारा किसी भी तरह सामाजिक दूरी का पालन नहीं किया जा रहा है।”

गौरतलब है कि ये पहला मामला नहीं है जब सरकार ने लॉकडाउन के दौरान आई ऐसी निराधार माँग वाली याचिका (जिनपर सरकार काम कर रही है या जिनका कोई औचित्य नहीं है) पर प्रतिक्रिया देते हुए उसे निरस्त किया हो। इससे पहले भी कुछ ऐसे मामले आए हैं, जब सुप्रीम कोर्ट को याचिकाकर्ता को फटकार लगानी पड़ी और सबक देने के लिए फाइन लगाना पड़ा।

प्रवासी मजदूरों को लेकर दायर याचिका पर SC

लॉकडाउन के दौरान मजूदरों की घर वापसी और हादसे में उनकी मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार यानी आज अपनी प्रतिक्रिया दी और मामले पर सुनवाई करने से साफ मना कर दिया। कोर्ट ने वकील आलोक श्रीवास्तव की याचिका पर उन्हें फटकार लगाते हुए कहा कि उनकी याचिका पूर्ण रूप से अखबार की रिपोर्ट पर आधारित थी।

बता दें, इस याचिका में औरंगाबाद की घटना का हवाला देकर कहा गया कि सरकार मजदूरों को उनके राज्य भेजने तक आश्रय स्थान व खाने-पीने का इंतजाम करे। इस पर सॉलिस्टर तुषार मेहता ने कहा कि सरकार मजदूरों को भेजने का प्रबंध कर रही है। लेकिन लोग सब्र रखकर अपनी बारी का इंतजार नहीं कर रहे।

कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा, “हर वकील कागज पर घटनाओं को पढ़ता है और हर विषय के बारे में जानकार हो जाता है। आपका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की कटिंग पर आधारित है और फिर आप चाहते हैं कि यह कोर्ट तय करे। राज्य को इस पर फैसला करने दें। कोर्ट इस पर क्यों फैसला करे या सुने? हम आपको स्पेशल लॉकडाउन पास देंगे। क्या आप खुद जाकर सरकारी आदेशों को लागू करवा सकते हैं?”

मास्क और सैनिटाइजर को GST फ्री करने की याचिका

पिछले महीने  कोरोना वायरस संक्रमण के बीच मास्क और सैनिटाइजर को जीएसटी फ्री करने की याचिका पर अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकारा था।

दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता ने कोर्ट से माँग की थी कि मामले को गंभीरता से लेते हुए इन दोनो उत्पादों से जीएसटी हटा लेना चाहिए ताकि आम नागरिकों को इस महामारी की स्थिति में किफायती दामों पर मिल सके।

मगर,  कोर्ट ने एडवोकेट को फटकार लगाते हुए कहा, “आप एडवोकेट हैं और इस समय आपके पास कोई काम नहीं है, इसका मतलब ये नहीं है कि कुछ भी याचिका दायर कर देंगे।”

जब SC ने कहा- सब विशेषज्ञ बन गए हैं

पुलिस को पीपीई देने की माँग, उनके वेतन में कटौती न करने की माँग और बोनस के रूप में प्रोत्साहन राशि देने की माँग वाली याचिका को भी इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 5 मई को खारिज किया था। इस याचिका को रिटायर्ड पुलिस अधिकारी भानुप्रताप बर्गे ने दायर किया था।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था, “आजकल हर कोई कोविड 19 का विशेषज्ञ बन गया है। बेहतर हो आप संबंधित राज्य सरकारों के सामने अपना सुझाव रखिए। अगर कोई राज्य वाकई पुलिसकर्मियों का वेतन काट रहा है, तो वहाँ की सरकार को ज्ञापन दीजिए। हाईकोर्ट में याचिका लगाइए।”

नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम फ्री करने की माँग SC ने ठुकराई

इसी प्रकार, पिछले महीने सरकार ने एक याचिका और खारिज की थी। याचिकाकर्ता अपनी इस याचिका में फोन कॉल, इंटरनेट, डीटीएच के साथ नेटफ्लिक्स के वीडियो भी मुफ्त में उपलब्ध कराने की माँग की थी। इसे देखने के बाद कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले वकील मनोहर प्रताप पर खासी नाराजगी दिखाई और कहा, “यह किस तरह की याचिका है? क्या आप कुछ भी दाखिल कर देंगे?”

पीएम फंड को अवैध बताने वाली याचिका पर भी अदालत ने गुस्सा दिखाया

पीएम केयर्स फंड को अवैध बताने वाले याचिका को देखने के बाद भी कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई थी। इस याचिका में इलाहाबाद के शाश्वत आनंद समेत 4 वकीलों ने आरोप लगाया था कि इसे बिना किसी कानूनी प्रावधान के शुरू किया गया है। इसलिए इसमें सारा जमा पैसा राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में स्थांतरित किया जाए।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था, “आपकी याचिका राजनीति से प्रेरित लग रही है, या तो आप इसे वापस लीजिए या हम आप पर जुर्माना लगाते हैं।”

 ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द पर आपत्ति जताने वाली याचिका खारिज

कोरोना से बचने के लिए प्रचलन में आए सोशल डिस्टेंसिंग शब्द पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता शकील कुरैशी की माँग पर चौंक पड़े। दरअसल, इस याचिकाकर्ता के वकील ने इस शब्द के इस्तेमाल को भेदभाव भरा बताया और कहा कि इससे अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है।

इसे सुनने के बाद अदालत ने कहा,  “आप इसमें भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का मुद्दा ढूँढ लाए? भला बीमारी से बचने के लिए किए जा रहे हैं उपाय पर आपको क्या आपत्ति है?” इसके अलावा इस याचिका पर सुनवाई से मना करते हुए याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया।

कोरोना महामारी के बीच दलित, मुस्लिमों, नॉर्थ-इस्ट वालों से भेदभाव

देश में कोविड 19 की महामारी के बीच दलित, मुस्लिम, उत्तर-पूर्व भारत के लोगों से इलाज में भेदभाव किया जा रहा है। जजों ने याचिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस तरह का कोई तथ्य सामने नहीं आया है। वकीलों ने घर बैठे याचिका तैयार कर दी है।

कोर्ट सवालिया लहजे में पूछा कि किस आधार पर ये दलीलें दी जा रही हैं? उन्होंने कहा कि ऐसी आशंकाओं से निपटने के लिए सरकार के पहले से दिशा-निर्देश, एडवाइजरी हैं।

लॉकडाउन में किराए का सवाल उठा रहे वकील को फटकार

कोरोना महामारी के समय में किराए पर रह रहे लोगों से किराए न माँगने के गृह मंत्रालय के आदेश का पूरी तरह पालन कराने हेतु एक याचिका दायर हुई। इस याचिका को देखकर कोर्ट ने पहले वकील को फटकार लगाई। फिर कहा, “हमारा काम सरकार के आदेश को लागू करवाना नहीं है। सरकार ने शिकायत के लिए हेल्पलाइन बना रखी है। जिसे समस्या हो वहाँ शिकायत कर सकता है। कुछ वकीलों के पास इन दिनों काम नहीं है, तो कोविड 19 पर ही कोई न कोई याचिका दाखिल कर दे रहे हैं। आप जैसों पर जुर्माना लगना चाहिए।”

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