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‘लॉकडाउन’ में सूरज! अब धरती पर भीषण ठंड, भूकंप और सूखे की संभावना से डरे वैज्ञानिक

कोरोना महामारी में कोई अचछी खबर मिले इसका सबको इंतजार है, लेकिन वो एक अदद गुड न्‍यूज आने को तैयार नहीं । उस पर चक्रवात, तूफान, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की खबरें परेशान कर रही हैं । अब लंदन के वैज्ञानिकों की ओर से दी जा रही जानकारी को समझें तो वैज्ञानिकों ने सूरज  को लेकर कहा है कि अब सूरज भी लॉकडाउन में चला गया है, जिसके चलते दुनिया में भीषण ठंड, भूकंप और सूखे की आशंका जताई जा रही है ।

सूरज के लॉकडाउन में होने का क्‍या अर्थ है ?
दरअसल वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरज के लॉकडाउन में जाने के पीरियड को सोलर मिनिमम कहा जाता है । ये वो समय है जब सूरज की सतह पर    एक्टिविटीज अपने आप ही कम हो जाती हैं । एक्सपर्ट ने बताया कि अब हम उस दौर में जा रहे हैं, जहां सूरज की किरणों में भी भयानक मंदी देखने को मिलेगी । ये रिकॉर्ड स्तर पर होगी, हो सकता है कि सनस्पॉट बिल्कुल गायब हो जाएगा ।

पिछली सदियों के तुलना में इस बार ज्‍यादा समय
द सन की एक रिपोर्ट के अनुसार एस्ट्रोनॉमर डॉ टोनी फिलीप्स ने सूरज के लॉकडाउन को लेकर कहा कि हम सोलर मिनिमम की ओर जा रहे हैं । पिछली सदियों के मुकाबले इस बार ये काफी गहरा रहने वाला है । टोनी ने आगे बताया कि इस वर्ष के सनस्पॉट बता रहे हैं कि इस बार सोलर मिनिमम पिछली सदियों की तुलना में और ज्यादा गहरा रहने वाला है ।

वैज्ञानिक परेशान, पृथ्‍वी के लिए खतरनाक समय
सोलर मिनिमम के दौरान सूरज का मैग्नेटिक फील्ड काफी कमजोर हो जाएगा । जिसके चलते सोलर सिस्टम में ज्यादा कॉस्मिक रे आ जाएंगी । ज्यादा मात्रा में कॉस्मिक रे का आना एस्ट्रोनॉट्स की सेहत के लिए काफी खतरनाक हो सकता है । ये कॉस्मिक रे पृथ्वी के ऊपरी वातावरण के इलेक्ट्रो केमिस्ट्री को प्रभावित करेंगी जिसके चलते बिजलियां कड़केंगी । नासा के वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि ये समय डाल्टन मिनिमम जैसा हो सकता है, डाल्टन मिनिमम 1790 से 1830 के बीच में आया था । इस दौरान पृथ्‍वी भीषण ठंड से ठिठुर गई थी, फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा था । भयंकर सूखा और भयावह ज्वालामुखी भी फूटे थे ।

हुए थे ऐसे घटनाक्रम
डाल्‍टन मिनिमम के समय 20 वर्षों के अंदर तापामान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया । दुनिया के सामने अन्न का संकट पैदा हो गया था । 10 अप्रैल 1815 को 2000 सालों में दूसरी बार सबसे ज्यादा ज्वालामुखी फूटे थे, इंडोनेशिया में इस वजह से करीब 71 हजार लोग मारे गए थे । वहीं 1816 में गर्मी पड़ी ही नहीं, इस साल को ठंड से मौत का नाम दिया गया. । हैश्रानी की बात ये कि इस दौरान जुलाई महीने में भी बर्फ गिरी ।

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