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कानपुर के दरिंदे विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में कुछ इस तरह जमाया अपना सिक्का

कानपुर। कानपुर एनकाउंटर के मुख्य आरोपी विकास दुबे के ऊपर 60 से अधिक आपराधिक मुकदमे हैं. उसका इतना दुस्साहस और आतंक था कि उसने कानपुर के एक थाने के अंदर एक दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री को उस वक्त गोलियों से भून दिया था जब थाने में 5 सब इंस्पेक्टर और 25 सिपाही मौजूद थे. वे सब उस हत्या के गवाह थे, लेकिन किसी ने अदालत में गवाही नहीं दी. कहते हैं कि आज भी कानपुर की बसों में ‘विकास भैया’ शब्द बोल देने से किराया नहीं देना पड़ता. आइए देखते हैं उसके आतंक की कुछ झलकियां:

विकास के किसी फैन ने बनाए उसके फेसबुक पेज पर उसे ‘ब्राह्मण शिरोमणी’ घोषित किया गया है, जिसपर उसके 1000 फैन्स उससे जुड़े हैं. इस फेसबुक पेज पर लगी उसकी तस्वीरों में वह बिल्कुल नेता नजर आता है. विकास का जो बिकरु गांव पुलिस वालों की हत्या के लिए आज सुर्खियों में हैं, वहां 1990 में एक कत्ल हुआ था, जिसमें उसका नाम आया था, लेकिन बाद में रिपोर्ट वापस ले ली गई.

शुरू में विकास ने चौबेपुर विधानशबा इलाके के एक बीजेपी नेता का दामन थामा और हनक बनाई. बीजेपी सरकार में कानपुर से एक मंत्री का भी वह काफी करीबी माना जाता था. बाद में वह बीएसपी नेताओं का करीबी हो गया. इसके चलते वह 15 साल अपने गांव का प्रधान, 5 साल जिला पंचायत सदस्य रहा. अब उसकी पत्नि जिला पंचायत सदस्य है. विकास के राजनीति करियर के बारे में उसकी मां ने कहा, ‘बसपा में रहे 15 साल. 5 साल भाजपा में रहे. सपा में 5 साल थे.’ यह पूछे जाने पर कि वे कौन नेता थे जो इनको सबसे ज्यादा मानते थे? उन्होंने कहा, ‘सब नेता चाहते थे. जिस पार्टी में रहते थे. जिस पार्टी में रहेंगे, वही नेता तो चाहेंगे?’

विकास दुबे ने सन् 2000 में ताराचंद इंटर कॉलेज की जमीन कब्जा कर मार्केट बनाने के लिए उसके प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे की हत्या कर दी. इसमें उसे उम्र कैद हुई, लेकिन जमानत पर बाहर आ गया. इस हत्या के बारे में सिद्धेश्वर पांडे के बेटे राजेंद्र पांडे ने कहा, ‘उसमें करीब 4 गवाह थे. 3 गवाह हमारे साथ थे और एक हम थे. 2-3 और थे. इसके अलावा सरकारी गवाह थे. जो मेरे गवाह थे उन सब पर दबाव डालकर…? उसमें से एक अशोक वाजपेयी और एक अवस्थी जी थे. उन्होंने बाद में कह दिया था कि वो मौके पर थे ही नहीं.

वहीं पूर्व विधायक बी.एन. मिश्रा ने कहा, ‘पांडे जी, जो देवता की तरह पूजे थे, कोई भी वहां थाने में उनकी पैरवी में भी नहीं आया. पूरा शिवली बंद हो गया था. यह उसका आतंक था. यह दबंगई थी. और उनकी फोटो नहीं हुए थे. उनकी लाश पड़ी हुई थी खुले मैदान में. ‘ बता दें, विकास दुबे ने सन 2001 में कानपुर के शिवली थाने में घुसकर बीजेपी सरकार के दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री संतोष शुक्ला को गोलियों से भून डाला था.

इस हत्याकांड के बारे में संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला ने कहा, ‘लगभग 25 सिपाही थे और 5 जो है एसआई थे उस समय थाने के अंदर, जिस समय घटना घटी है.’ यह पूछे जाने पर कि वे सब गवाह थे इसमें, मनोज ने कहा, ‘सब गवाह थे लेकिन बाद में जब न्यायालय में मुकदमा चला तो पुलिस का एक भी बंदा गवाही देने नहीं आया. सब हॉस्टिले हो गया.’ इसके आगे मनोज शुक्ला कहते हैं कि उनके भाई कि हत्या के वक्त कुछ उनकी पार्टी के लोग ही विकास दुबे को संरक्षण दे रहे थे. मनोज ने कहा, ‘जिस समय संतोष भैया की हत्या हुई थी उस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. भारतीय जनता पार्टी के कुछ माननीय लोग इसमें शामिल थे. फिर इसके बाद बसपा से वह जिला पंचायत हो गया तो उसके अपने रिश्ते हो गए.’

पिछले 30 सालों में विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में अपनी बड़ी हनक बना ली. इस वक्त विकास दुबे के ऊपर 60 क्रिमिनल केस चल रहे हैं. भारतीय दंड संहिता की 46 आपराधिक दफों में उसके ऊपर मुकदमे हैं. इनमें हत्या और हत्या के प्रयास के 20 मुकदमें. गुंड़ा एक्ट और गैंगस्टर एक्ट में 15 मुकदमें. दंगो के 19 मुकदमें. एनडीपीएस एक्ट के 2 मुकदमे शामिल हैं. एक बार उस पर एनएसए भी लगा.

पूर्व विधायक बी.एन. मिश्रा कहते हैं, ‘और कुछ नेता ऐसा हैं कि वो चाहते हैं कि बिना मेहनत के चुनाव जीता जाए तो ऐसे अराजक तत्वों का सहयोग लेते हैं. मेहनत नहीं करनी है और चुनाव जीतना है तो ऐसा कुख्यात अपराधियों का संरक्षण करते हैं. और नेताओं के कारण ही धीरे धीरे पुलिस प्रशासन से भी संबंध हो जाते हैं. कहीं न कहीं इस सिस्टम में गड़बड़ी है. इस सिस्टम को ठीक करना पड़ेगा. और चुनाव आयोग को चाहिए कि इन चीजों पर ध्यान दे.

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