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कैसे चीन ने मुस्लिम नामों पर बैन लगाया और इस्लामी वास्तुकला को मिटाया?

नई दिल्ली। चीन में इस्लाम के खिलाफ क्रैकडाउन सिर्फ देश के सुदूर पश्चिमी हिस्से में स्थित स्टालिन-स्टाइल गूलागों (नजरबंदी शिविरों) तक ही सीमित नहीं है. दो दशकों में सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण और अन्य ओपन-सोर्स सामग्री से पता चलता है कि अल्पसंख्यक समुदाय का दमन भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत व्यापक है.

मिसाल के तौर पर चीन के गनसु और निंग्क्सिया प्रांतों में ‘हुई’ मुस्लिमों की बहुतायत है. देश में हुईजियाओ नाम से जाने वाले धर्म के सबसे ज्यादा अनुयायी अल्पसंख्यकों में हैं.

1949 में माओत्से तुंग की ओर से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के ऐलान करने के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने अपने कुओमिनतांग पूर्ववर्तियों के सिर्फ चार धर्मों की ही अनुमति दी- इस्लाम, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म और ताओवाद. लेकिन उसके बाद चीन में धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न जल्दी ही शुरू हो गया.

स्वतंत्र स्कॉलर इयान जॉनसन के मुताबिक, 1949 से पहले बीजिंग में विभिन्न धर्मों के 900 मंदिर हुआ करते थे, उनमें से केवल 18 ही बचे हैं. इसका मतलब है कि चीन की राजधानी के 98 फीसदी मंदिर पिछले 70 सालों में बिना कोई निशान छोड़े गायब हो चुके हैं.

CCP के मुखपत्र साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन अगस्त 2016 में वेटिकन के साथ एक प्रारंभिक समझौते पर पहुंचा. इसके मुताबिक खास तौर पर हांगकांग के लिए बिशपों की नियुक्ति की जानी थी. समझा जाता है कि चीन ने वेटिकन के ताइवान से रिश्ते को देखते हुए जोर देकर ये समझौता कराया.

मुस्लिम नामों पर प्रतिबंध

अप्रैल 2017 में, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने पूर्ववर्ती पूर्वी तुर्केस्तान में 29 मुस्लिम नामों पर प्रतिबंध लगा दिया. पूर्वी तुर्केस्तान को अब शिंजियांग के नाम से जाना जाता है. ये कदम नास्तिक हान समुदाय की ओर से इस्लाम मानने वालों को अपने अधीन करने के मकसद से उठाया गया. जिन नामों को प्रतिबंधित किया गया उनमें इस्लाम, कुरान, मक्का, इमाम, सद्दाम, हज, मदीना और मुहम्मद शामिल थे.

चीन के विदेश मंत्रालय के उपप्रवक्ता के तौर पर झाओ लिजियन ने उस वर्ष पाकिस्तान में बीजिंग के राजनयिक के रूप में मुहम्मद लीजियन झाओ नाम का इस्तेमाल किया था. नामों पर प्रतिबंध लागू होने के बाद झाओ ने अपने ट्विटर हैंडल से मुहम्मद शब्द हटा दिया.

चीन ने नामों पर प्रतिबंध लगाने के पीछे अपनी मुख्य जमीन पर आतंकवाद और उग्रवाद को दबाने की अपनी कोशिशों का हवाला दिया.

अपनी ओर से, चीन ने मुख्य भूमि पर आतंकवाद और उग्रवाद को रोकने के अपने प्रयासों के हिस्से के रूप में उपाय का बचाव किया.

दाढ़ी और पर्दा

मार्च 2017 में, क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी के कट्टर नेता चेन कुआनगुओ के नेतृत्व में तथाकथित असामान्य दाढ़ी और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े को लेकर नए नियम बनाए.

बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों जैसे पब्लिक प्लेस पर पुलिस को निर्देश दिए गए कि ढके चेहरे वालों और लंबी दाढ़ी रखने वालों को एंट्री न दी जाए. ऐसे नियम न सिर्फ कठोर थे बल्कि चीन के जातीय मुसलमानों के मानवीय और धार्मिक अधिकारों का भी उल्लंघन करने वाले थे.

मस्जिदों का जबरन रेनोवेशन

शी जिनपिंग की ओर से चीन की बागडोर संभालने के बाद, चेन कुआनगुओ जैसे नेताओं ने मुसलमानों और इस्लामी संस्कृति पर भारी प्रहार किए. पुलिस ने घर-घर जाकर मुस्लिमों को मस्जिदों का चीनीकरण करने के लिए मजबूर किया.

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ये मुहिम आज भी जारी है. मस्जिदों और मीनारों से गुंबद हटा दिए गए, जिन्हें इस्लामी वास्तुकला की विशेष पहचान माना जाता है. इन्हें चीनी वास्तुकला से जुड़ी समतल छतों से बदल दिया गया है. इस तरह का चीनीकरण निंग्ज़िया और गनसु के हुई-बहुल मुस्लिम क्षेत्रों में बहुत देखा गया है.

मस्जिदों के रिनोवेशन के लिए जो आबादी पीटिशन पर पर्याप्त हस्ताक्षर नहीं करती, उसका गुंबद पूरी तरह हटा कर दंडित किया जाता है.

पाकिस्तान की चुप्पी

खुद को चीन का ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ बताने वाला पाकिस्तान मुस्लिमों से चीन के बर्ताव को लेकर मौन है. ये संभवत: चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में चीनी निवेश की वजह से है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से पिछले साल एक टीवी इंटरव्यू में चीन में मुस्लिमों के दमन के संबंध में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने इस पर अनभिज्ञता व्यक्त की थी. इमरान का जवाब था- “मैं इस बारे में स्थिति पर नहीं जानता. मुसीबत और निराशा के माहौल में चीनी ताजा हवा की सांस की तरह हैं. उन्होंने पाकिस्तान को उन क्षेत्रों में मदद की है जो वो चाहते हैं कि हम उन्हें गोपनीय रखें. उन्होंने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का वादा किया है. मैं सार्वजनिक रूप से चीन की आलोचना नहीं करूंगा.”

रिकॉर्ड के लिए बता दें कि CPEC के साथ तथाकथित चीनी स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स (SEZ) कुछ ड्राइवरों की रिहाइश के अलावा और कोई बुनियादी ढांचा नहीं है. इन SEZ इमारतों पर, विशेष रूप से पाक अधिकृत कश्मीर में, अब चीनियों ने खुद कब्जा कर लिया है. और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सोस्त में एक मस्जिद का अधिग्रहण किया गया है जिसका गुंबद पहले सफेद होता था, उसे लाल कर दिया गया.

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