नई दिल्ली। भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी देश का सबसे चर्चित चेहरा थे। उनके जीवन का लंबा वक्त राजनीति में ही गुजरा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रणब दा राजनीति में आने से पहले एक क्लर्क थे। जीहां! ये सच है। उन्होंने देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के लिए न सिर्फ कड़ी मेहनत की बल्कि अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। विरोधी भी उनको पूरा सम्मान देते थे। प्रणब का जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी के मिराती गांव में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वर्तमान में ये पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के अंतर्गत आता है। उनके पिता ने कमद किंकर मुखर्जी देश की आजादी की लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। इसके अलावा 1952-1964 तक वो पश्चिम बंगाल विधान परिषद में कांग्रेस के सदस्य भी थे। साथ ही वे एआईसीसी के भी सदस्य थे। इस लिहाज से प्रणब दो एक राजनीतिक परिवार से भी ताल्लुक रखते थे।
वर्ष 1973 में इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को जानते हुए उन्हें अपनी केबिनेट में जगह दी और उन्हें इंड्रस्ट्रियल डेवलेपमेंट मिनिस्टरी में डिप्टी मिनिस्टर बनाया गया। लेकिन 1975-77 के बीच इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी को लेकर उनकी भी आलोचना हुई। वो इस दौरान भी काफी सक्रिय नेताओं में से एक थे। इमरजेंसी की बदौलत कांग्रेस को 1977 के चुनाव करारी हार मिली थी और जनता पार्टी की सरकार केंद्र में बनी थी। 1979 में प्रणब राज्य सभा में कांग्रेस के उपनेता रहे और 1980 में उन्हें सदन का नेता बनाया गया। प्रणब के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से भी लिया जा सकता है कि पीएम की गैर मौजूदगी में वही केबिनेट की बैठक लिया करते थे।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी को पीएम बनाया गया तो प्रणब दा को उनकी केबिनेट में जगह नहीं मिल सकी। इससे नाराज होकर प्रणब ने कांग्रेस से अलग होकर एक नई पार्टी बना ली। लेकिन कांग्रेस से अलग होकर वो ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके। इसी वजह से 1989 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था।