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मुख्तार की जगह भीम राजभर को टिकट देकर मायावती की एक तीर से दो निशान

पूर्वांचल में राजभर समाज का बर्चस्व होने के कारण मायावती ने उनको तवज्जो देने का दिया है संदेश

लखनऊ। मऊ से माफिया डान मुख्तार अंसारी का टिकट काटने के साथ ही भीम राजभर का विधानसभा का टिकट फाइनल कर मायावती ने एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश की है। इससे एक तो गुंडा, माफिया को पार्टी में जगह न देने का संदेश देना और दूसरा पूर्वांचल में कई सीटों पर हार-जीत का फैसला करने वाले राजभर समाज को उन्हें तवज्जो देने का संदेश छिपा है। अब यह मायावती की चुनावी तीर कहां तक लोगों को प्रभावित करेगी, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि मुख्तार के निकालने से मायावती के सख्त होने का संदेश समाज में जरूर गया है।

वर्तमान में राजनीतिक पकड़ वाले लोग भी यही मान रहे हैं कि मायावती ने भले ही राजनीतिक लाभ के लिए अंसारी बंधुओं या अन्य किसी माफिया को पार्टी में शरण दी लेकिन अपने शर्तों पर ही उन्हें हमेशा रखा। पार्टी लाइन से थोड़ा भी हटने पर बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस बार भी उन्होंने यही किया है। वहीं समाजवादी पार्टी में जो भी माफिया जाता है, वहां अपने हिसाब से सब कुछ करता है। पार्टी द्वारा उसे छूट भी दी जाती है। यही कृष्णानंद हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को बचाने व सीबीआई जांच न हो, इसके लिए समाजवादी पार्टी सुप्रीम कोर्ट तक गयी थी।
राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि मायावती हमेशा सख्त प्रशासक के रूप में ही जानी जाती हैं। सिर्फ उन पर पैसा लेने का समय-समय पर कुछ लोग आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा वे अपने मुद्दों से जल्द भटकती नहीं। यह तो तय है कि जो भी उनकी पार्टी में जाता है, उसका अपना कुछ नहीं रह जाता। वह हमेशा उनके अनुसार ही चलता है। यदि आगे बढ़कर चलने की कोशिश किया तो बाहर का रास्ता ही दिखाया जाता है। इस बार भी उन्होंने ऐसा कर यही संदेश देने की कोशिश की है। हालांकि इसका प्रभाव जनता पर बहुत नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनके भाई सिबत्तुल्लाह के सपा में जाने के बाद यह कदम उठाया गया है। यही कदम पहले उठाया गया होता तो बात कुछ और होती।
यह बता दें कि शुक्रवार को ही बसपा प्रमुख मायावती ने मुख्तार का टिकट काटने व किसी भी माफिया को टिकट न देने की घोषणा ट्वीट के माध्यम से दी थी। इसके साथ ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को टिकट देने की घोषणा की थी।

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