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‘आई-स्टेम’ का पांचवां ‘समावेशी स्टेम कॉन्फ्लुएंस’ 25 से 26 मार्च तक

नई दिल्ली। सामाजिक, आर्थिक और व्यवसायिक भागीदारी के मामले में दिव्यांगों का प्रतिनिधित्व हमारे देश में बेहद कम है। हालांकि नई तकनीक की मदद से अब इस श्रेणी के लोग भी उच्च पदों पर पहुंचने लगे हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी धीमी है। दिल्ली स्थित ‘आई-स्टेम’ का मकसद है कि ऐसे अवसर बढ़ें और इस बदलाव में तेजी आए। इसी मिशन को आगे बढाते हुए अपने पांचवें वर्ष में आईबीआईएस एयरोसिटी, नई दिल्ली में दो दिवसीय वार्षिक ‘समावेशी स्टेम कॉन्फ्लुएंस 2022’ का आयोजन 25 से 26 मार्च को आयोजित किया गया। इस अवसर पर दिव्यांगों के लिए और उनके द्वारा विकसित ‘आई-स्टेम ऐप’ लॉन्च किया गया। गौरतलब है कि यह ऐप नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल कर दिव्यांगों के लिए कठिन सामग्री को आसान और इस्तेमाल करने लायक बनाने की कोशिश की गई है।
कॉरपोरेट्स को एक साथ जोडने का काम कर रहा है। इस दौरान एक एंटरेक्टिव सेशन भी रखा गया जिसमें दिव्यांगों के मुद्दों पर चर्चा हुई और उनकी समस्याओं के समाधान पर विचार-विमर्श और सवाल जवाब सेशन का आयोजन हुआ। इस सेशन में मुख्यु रूप से आई स्टे म के डायरेक्टेर शकुल राज सोणकर ने इस परिचर्चा में मौजूद अमर जैन, ज्योमति गुप्ताू, सदफ खान ओर अजय मिनोचा से उनके अनुभवों के बारे में पूछा। सभी ने ने कहा कि दिव्यांमग होने भर से उन्हेंु किसी भी तरह की कोई परेशानी का सामना नहीं करनी पडी है। उनका कहना था कि अगर आपमें योग्याता और क्षमता है तो आपको ऊंचे से ऊंचे मुकाम तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।
गौरतलब है‍ कि ये सभी अपने अपने क्षेत्र में आज अपना परचम लहरा रहे हैं। देश के सफल सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डेटा वैज्ञानिक, उत्पाद प्रबंधक, वकील, सलाहकार और दिव्यांग मानव संसाधन पेशेवर के रूप में काम कर रहे हैं। दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए कॉरपोरेट्स और तमाम बड़े संस्थानों में जॉब्स के अवसरों की भी काई कमी नहीं है। कुल मिलाकर इस आयोजन का मकसद दिव्यांगों के लिए सार्थक अवसर खोजने और अर्थव्यवस्था में असरदार तरीके से योगदान करने में उनकी मदद करने के मकसद से किया गया है।
इस मौके पर इसके सह-संस्थापक व डायरेक्ट र कार्तिक साहनी, शकुल राज सोणकर और सुनील चौधरी मौजूद थे। कार्तिक साहनी ने इस ऐप की खासियतों के बारे में बताया कि, “‘आई-स्टेम ऐप’ दिव्यांगों के सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में मदद करेगा, साथ ही उनकी डिजिटल जानकारी भी बढ़ाएगा। जैसे नोटिस, रिपोर्ट, शोधपत्र आदि जिनकी भाषा आमतौर पर काफी मुश्किल होती है।”

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