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आदिपुरुष के निर्माणकर्ताओं एवं पटकथा लेखक मनोज मुंतशिर के नाम खुला पत्र

ज्ञानेन्द्र कुमार शुक्ला

करोड़ों-करोड़ हिन्दुओँ के हृदयस्थल में विराजने वाले राम और उनके उदात्त जीवनचरित्र से जुड़े प्रेरक प्रसंगों व पूज्य विभूतियों का चित्रण करते समय भक्तिभाव, सहजबुद्धि और आत्मविवेक का अभाव होने पर आदिपुरुष फिल्म सरीखा कुफल उपजता है. जब मूढ़ता-सतहीपना-बाजारूपन हावी होता है मनुज पर तो किसी मनोज मुंतशिर का रुप धर लेता है. कला के नाम पर स्तरहीन -ओछी भाषाशैली का इस्तेमाल वैसे भी निंदनीय कृत्य है पर जब असंख्यों के आराध्य के चरित्र चित्रण में भाषायी मर्यादा व शालीनता का उल्लंघन हो तब यह अक्षम्य अपराध बन जाता है. आत्मप्रवंचक मुंतशिर तुमने लेखनी को कलंकित किया है, तुम छिछले-उथले विषयों के रसातल पर ही केन्द्रित रहो मार्मिक प्रसंग विधान-चारित्रिक महत्ता- सांस्कृतिक गुरुता-उन्नत कलात्मकता से युक्त आस्थावान लेखनी की उर्ध्वगामी पंरपरा से विलग रहो-विरत रहो. लेखनी से अपशिष्ट बिखेरने वाले मुंतशिर तुम्हारे जैसो के लिए ये पंक्तियां रचित हुई हैं,
“गिरि से गिरि पर जो गिरे, मरे एक ही बार।
जो चरित्र गिरि तें गिरे, बिगड़े जन्म हजार”।।
फिल्म निर्देशक ओम राउत निर्मातागण भूषण कुमार, कृष्ण कुमार आदि, तुम सबका कलाहीन कृत्य धिक्कार योग्य है. इस फिल्म के निर्माण से जुड़े सभीजनों तुम महर्षि वाल्मिकी-गोस्वामी तुलसीदास के अलौकिक कृतित्व का अनुसरण तो क्या कर सकोगे तुम तो रामानंद सागर-बीआर चोपड़ा-राही मासूम रजा सरीखे उच्चकोटि के कला सर्जकों के सम्मुख ही पसंगा भर भी नहीं साबित हो सके. जिनके द्वारा निर्मित सीरियलों के कलाकारों को आज भी सम्मुख पाकर लोग गदगद हो जाते है-अभिभूत होकर नतमस्तक हो जाते हैं. आदिपुरुष फिल्म निर्माण से संबंधित तत्व जब रावण के पात्र को पर्दे पर उतारने में पूर्णतया असफल हुए तो इन बाजारू जनों से उन राम के सांगोपांग चरित्र चित्रण की अपेक्षा करना बेमानी हो जाता है जो हर सनातनी की हर श्वांस-हर धड़कन में बसते हैं…..इक्ष्वाकु वंशीय राम तो निर्गुण भी हैं-सगुण भी हैं, निराकार हैं तो साकार भी हैं, अव्यक्त हैं तो व्यक्त भी हैं, अंतरयामी हैं उसी क्षण बहिर्यामी भी हैं, गुणातीत हैं तो गुणाश्रय भी हैं. राम का एक पहलू तो इतना अपरिमिति-गूढ़-जटिल और रहस्यमय है कि किसी महामानव तो क्या देवों तक की क्षमता नहीं कि उनके तेजपुंज का वर्णन कर सके….वही राम इतने सहज-सरल भी हैं कि इनके चरित्र का चित्रण सुदूर गांव का कोई अनपढ़-कोई वनवासी या फिर दक्षिण पूर्व के किसी देश का अन्य धर्मावालंबी कलाकार प्रभावी ढंग से कर लेता है क्योंकि वह निष्पाप-निष्कपट-निश्चछल भावों से युक्त अभिनय करता है-रामोन्मुख होकर अपना और दर्शकों का जीवन धन्य कर देता है-रोमांचित कर देता है-पुलकित कर देता है. कालखंड-देश-प्रदेश-वेश-परिवेश बदले पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति प्रेम की अंतर्निहित रागिनी का प्रवाह अविरल है. वानर-रीछ-गीध-शबरी आदि वनवासियों को अपनाने वाले-पूजनीय बनाने वाले अनाथों के नाथ राम दयानिधान हैं-दीनानुकम्पी हैं, आदिपुरुष फिल्म से संबंधित जनों तुम्हारी रचना-धृष्टता के बाद भी राम तुम पर दया ही करेंगे पर सनातनी धर्मावलंबियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का घिनौना कुचक्र रचने के लिए तुम सभी आत्मावलोकन करो- प्रायश्चित करो.

विश्वकल्याण का आकांक्षी
सनातनी.

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