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‘मेरा रेप हो गया है माँ…मुझे बचा ले’ : अजमेर 92 का झकझोर देने वाला टीजर जारी, देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल पर बनी है फिल्म

अजमेर-92देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल पर आधारित फिल्म ‘अजमेर 92’ (Ajmer 92) का टीजर जारी हो गया है। इसमें राजस्थान के अजमेर शहर के सुप्रसिद्ध गर्ल्स स्कूल की लड़कियों को ब्लैकमेल करके उनका बलात्कार करने और उनके तत्कालीन सत्ताधारी दल की लीपा-पोती की कहानी है। इस कांड में लगभग 300 हिंदू लड़कियों को निशाना बनाया गया था, जिनमें से कई छात्राओं ने आत्महत्या कर ली थी।

सच्ची घटना से प्रेरित यह फिल्म 21 जुलाई 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म का पोस्टर और टीजर रिलीज होने के बाद लोगों में इस फिल्म को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। दर्शक फिल्म का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

फिल्म के टीजर की शुरुआत एक लड़की द्वारा फोन उठाने से होती, जिसे एक अनजान शख्स किया है। वह शख्स लड़की को बताता है कि उसकी तस्वीर अखबार में छपी है। इसके बाद अगली सीन में एक दूसरी लड़की माँ को रोते हुए बताती है कि उसका रेप हो गया है। इसमें रेप पीड़िताओं और छात्राओं के डर को बहुत बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है।

इस सेक्स स्कैंडल में अजमेर स्थित मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के कई खादिम भी इसमें शामिल थे। वे उस समय कॉन्ग्रेस के नेता थे। सन 1987 से 1992 के बीच जिन लड़कियों को ब्लैकमेल करके रेप किया गया था, उनमें कई अधिकारियों एवं पावरफुल लोगों की लड़कियाँ भी थीं।

इस फिल्म का मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। कई इस्लामिक संगठनों ने इस पर प्रतिबंध लगाने की माँग की है। हालाँकि, हालिया निर्णय में राजस्थान हाईकोर्ट ने सिनेमाघरों या ओटीटी की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। इसके पहले, यह फिल्म 14 जुलाई 2023 को रिलीज होने वाली थी, लेकिन अब 21 जुलाई को रिलीज होगी।

1992 का अजमेर कांड

बता दें कि अजमेर का ब्लैकमेलिंग कांड का खुलासा अप्रैल 1992 में हुआ था। इसे दुनिया के सामने लाने वाले पत्रकार संतोष कुमार थे। इस रेप और ब्लैकमेलिंग कांड की शिकार अधिकतर स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ थीं। लोग कहते हैं कि इनमें से अधिकतर ने तो आत्महत्या कर ली।

जब ये केस सामने आया था, तब अजमेर कई दिनों तक बन्द रहा था। लोग सड़क पर उतर गए थे और प्रदर्शन चालू हो गए थे। जानी हुई बात है कि आरोपितों में से अधिकतर समुदाय विशेष से थे और पीड़िताओं में सामान्यतः हिन्दू ही थीं।

कहते हैं उस वक़्त अजमेर में 350 से भी अधिक पत्र-पत्रिका थी और इस सेक्स स्कैंडल के पीड़ितों का साथ देने के बजाए स्थानीय स्तर के कई मीडियाकर्मी उल्टा उनके परिवारों को ब्लैकमेल किया करते थे। आरोपितों को छोड़िए, इस पूरे मामले में समाज का कोई भी ऐसा प्रोफेशन शायद ही रहा हो, जिसने एकमत से इन पीड़िताओं के लिए आवाज़ उठाई हो।

आरोप यह भी है कि जिस लैब में फोटो निकाले गए, जिस टेक्नीशियन ने उसे प्रोसेस किया, जिन पत्रकारों को इसके बारे में पता था- उन सबने मिल कर अलग-अलग ब्लैकमेलिंग का धँधा चमकाया। पीड़ित लड़कियों और उनके परिवारों से सबने रकम ऐंठे। ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे? कभी 29 पीड़ित महिलाओं ने बयान दिया था, आज गिन कर इनकी संख्या 2 है। सिस्टम ने हर तरफ से इन्हें तबाह किया।

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