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मोदी सरकार के इस कदम से चिढ़कर चीन ने जारी किया नया नक्शा?

भारत-चीन के रिश्ते पिछले कुछ सालों से तनावपूर्ण स्थिति में हैं (Photo- Reuters/AFP)नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का मुद्दा अभी भी तनाव का बड़ा कारण बना हुआ है. अभी यह मुद्दा सुलझा नहीं है और इसी बीच दोनों देशों में तनाव का एक नया मोर्चा उभर रहा है और वो है पानी का मुद्दा. भारत चीनी सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के इलाकों में 12 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को फिर से शुरू कर रहा है. वहीं, चीन तिब्बत की यारलंग सांगपो नदी पर एक बड़ा बांध, जिसे वो सुपर डैम कहता है, का निर्माण कर रहा है. सांगपो नदी उत्तर-पूर्व से भारत में प्रवेश करती है जिसे यहां ब्रह्मपुत्र कहा जाता है.

भारत और चीन के बीच 3,440 किमी लंबी वास्तविक सीमा, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है, पर विवाद रहा है. इस क्षेत्र में नदियों और झीलों की उपस्थिति के कारण दोनों देशों के बीच सीमा निर्धारण का विवाद चलता आ रहा है.

15 साल पहले प्रोजेक्ट्स शुरू करने की हुई थी कोशिश लेकिन…

12 अगस्त को एक सरकारी रीडआउट में कहा गया कि भारत ने 15 साल पहले ही हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को दी थी लेकिन अलग-अलग कारणों से यह कभी शुरू नहीं हो पाईं.

सरकार ने कहा कि अब वो अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों में स्थित 12 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को फिर से पुनर्जीवित करेगी. इसके कुछ दिनों बाद ही 28 अगस्त को चीन ने अपना नया मैप जारी किया जिसमें अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के साथ-साथ पूरे अक्साई चिन क्षेत्र को अपना बताया.

विवादित क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना चाहती है मोदी सरकार

माना जाता है कि फंड की कमी के चलते अरुणाचल प्रदेश इलाके में प्रस्तावित परियोजनाएं शुरू नहीं हो पाईं लेकिन अब भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें बनाने का फैसला किया है. मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्टर को मजबूत करने का कदम ऐसे वक्त में उठाने का फैसला किया है जब चीन के साथ सीमा तनाव बढ़ रहा है.

मार्च के महीने में मोदी सरकार ने लगभग चार अरब डॉलर की लागत से अरुणाचल प्रदेश के ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी दिबांग नदी पर देश के ‘सबसे बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट’ के निर्माण को मंजूरी दी थी.

विश्लेषकों का कहना है कि भारत का बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स का निर्माण करने का मकसद महज विकास नहीं बल्कि यह क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने का एक तरीका भी है.

अरुणाचल प्रदेश का तवांग, जो कि विवादित इलाका है (Photo- AP)

सीमा क्षेत्र में चीन विकसित कर रहा बड़े बांध

लोवी इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के 2023 पेपर में कहा गया है कि चीन ब्रह्मपुत्र पर ग्यारह बांध बना चुका है या बनाने की योजना बना रहा है.

नवंबर 2020 में, चीन ने एक विशाल हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट (सुपर डैम) बनाने की घोषणा की, जो प्रति घंटे 70GW बिजली का उत्पादन करेगा. चीन ने कहा कि उसके बांध की क्षमता 22 GW क्षमता वाले दुनिया के सबसे बड़े बांध थ्री गोरजेस से काफी ज्यादा होगी.

चीन ने नहीं बताया कि वह इस बांध को किस इलाके में बना रहा है लेकिन माना जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट ग्रेट बेंड में बन रहा है. यह क्षेत्र भारत के साथ लगे बॉर्डर से कुछ किलोमीटर ऊपर और एक बेहद अहम क्षेत्र है जहां से नदी का प्रवाह तेजी से अरुणाचल प्रदेश की तरफ मुड़ता है.

दिल्ली के दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर मेधा बिष्ट ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बात करते हुए कहा, ‘पिछले दो दशकों में यारलंग सांगपो (ब्रह्मापुत्र) पर बांध बनाए गए है. चिंता की बात यह है कि चीन अब नदी के निचले हिस्सों पर फोकस कर रहा है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर असर हो सकता है और रणनीतिक रूप से भारत को नुकसान भी हो सकता है. विशाल बांध बनाने से मिट्टी का कटाव तेजी से होगा और बाढ़ की संभावना लगातार बनी रहेगी.’

भारत-चीन के बीच नहीं है जल-बंटवारे को लेकर कोई संधि

भारत और चीन के बीच जल-बंटवारे को लेकर किसी तरह की संधि नहीं है जिससे बांध बनाने संबंधी चिंताएं गंभीर होती जा रही हैं.

Photo- Reuters

दिल्ली के मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के शोध विश्लेषक ओपांगमेरेन जमीर ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के जिन इलाकों से होकर ब्रह्मपुत्र नदी बहती है, चीन उस पर अपना दावा करता है. इसलिए भारत और चीन के लिए इस क्षेत्र में जल बंटवारे पर समझौता करना बहुत मुश्किल हो जाता है.

दोनों देशों के बीच साल 2002 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ था जिसमें कहा गया था कि चीन बाढ़ के मौसम में नदी के जल से संबंधित जानकारी भारत को देगा. समझौता हर पांच सालों पर रिन्यू होता है लेकिन जून के महीने में यह समाप्त हो गया है और अब तक इसे दोबारा लागू नहीं किया गया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि राजनयिक तनाव के समय में अनौपचारिक समझौते काफी नहीं होते हैं.

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज में रिसर्च फेलो अमित रंजन कहते हैं, ‘जब दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध होंगे, तो वे समझौते करेंगे, वे एक-दूसरे से कूटनीतिक रूप से बात करेंगे, मुद्दों पर बातचीत करेंगे और डेटा साझा करेंगे. लेकिन जब उनके बीच अच्छे संबंध नहीं होते हैं तो यह एक समस्या बन जाती है.’

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