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‘यह अभी भी डबल स्टैंडर्ड की दुनिया है’, एस जयशंकर ने ग्लोबल नॉर्थ की हिप्पोक्रेसी को धो डाला!

विदेश मंत्री एस. जयशंकरनई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान ग्लोबल नॉर्थ की हिप्पोक्रेसी पर जमकर निशाना साधा. एस जयशंकर ने कहा कि आज भी “डबल स्टैंडर्ड” वाली दुनिया है और जो देश प्रभावशाली पदों पर काबिज हैं, वे बदलाव के लिए बन रहे दबाव का विरोध कर रहे हैं और ऐतिहासिक प्रभुत्व वाले लोगों ने उन क्षमताओं को हथियार बना लिया है.

उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि बदलाव के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति से ज्यादा राजनीतिक दबाव है. दुनिया में भावना बढ़ रही है और ग्लोबल साउथ एक तरह से इसका प्रतीक है. लेकिन राजनीतिक प्रतिरोध भी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हम यह सबसे अधिक देखते हैं कि जो लोग प्रभावशाली पदों पर बैठे हैं, वे बदलाव के लिए बन रहे दवाब का विरोध कर रहे हैं.

विदेश मंत्री जयशंकर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी और रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा ‘साउथ राइजिंग: पार्टनरशिप्स, इंस्टीट्यूशंस एंड आइडियाज’ विषय पर आयोजित मंत्रिस्तरीय सत्र को संबोधित कर रहे थे.

क्या है ग्लोबल नॉर्थ

ग्लोबल नॉर्थ” अधिक समृद्ध राष्ट्र हैं जो ज़्यादातर उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, इनमें ओशिनिया तथा अन्य जगहों पर कुछ नए देश भी शामिल हैं. आमतौर पर ग्लोबल नॉर्थ के धनी देशों की तुलना में ग्लोबल साउथ में उच्च स्तर की गरीबी, आय असमानता और जीवन स्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हैं. भारत को पूरी दुनिया में ग्लोबल साउथ का नेता माना जाता है.

विदेश मंत्री ने बताया सांस्कृतिक संतुलन का अर्थ

जयशंकर ने कहा कि जो लोग आज आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली हैं, वे अपनी उत्पादन क्षमताओं का लाभ उठा रहे हैं और जिनके पास संस्थागत प्रभाव या ऐतिहासिक प्रभाव है उन्होंने वास्तव में अपनी उन क्षमताओं को ही हथियार बना लिया है. उन्होंने कहा, ‘वे सभी सही बातें बोलेंगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी यह बहुत ही दोहरे मानकों वाली दुनिया है, कोविड स्वयं इसका एक उदाहरण था.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मुझे लगता है कि इस संपूर्ण बदलाव से वास्तविक मायनों में ग्लोबल साउथ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली पर और अधिक दबाव डाला जाएगा. ग्लोबल नॉर्थ… यह सिर्फ नॉर्थ नहीं है.  ऐसे कुछ हिस्से हैं जो शायद खुद को नॉर्थ में नहीं मानते हैं, लेकिन बदलाव के प्रति बहुत विरोध रखते हैं. फिर से सांस्कृतिक संतुलन का वास्तविक मतलब, दुनिया की विविधता को पहचानना, दुनिया की विविधता का सम्मान करना और अन्य संस्कृतियों और अन्य परंपराओं को उनका उचित सम्मान देना है.’ विदेश मंत्री ने जी20 शिखर सम्मेलन का जिक्र करते हुए बाजरा (मिलेट्स) का उदाहरण दिया और कहा कि ग्लोबल साउथ ऐतिहासिक रूप से गेहूं कम और बाजरा अधिक खाता है.

जयशंकर ने आगे कहा, “बाजार के नाम पर बहुत सारी चीजें की जाती हैं, जैसे आजादी के नाम पर बहुत सारी चीजें की जाती हैं. जयशंकर ने कहा, दूसरों की विरासत, परंपरा, संगीत, साहित्य और जीवन जीने के तरीकों का सम्मान करना, यह सब उस बदलाव का हिस्सा है जिसे ग्लोबल साउथ देखना चाहता है.

इस कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज, रिलायंस फाउंडेशन के सीईओ जगन्नाथ कुमार, भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शोम्बी शार्प और ओआरएफ के अध्यक्ष समीर सरन ने भी संबोधित किया.

कई मुद्दे कर रहे हैं दुनिया को परेशान

इस कार्यक्रम के पैनल चर्चा में भाग लेने वालों में पुर्तगाल के विदेश मंत्री जोआओ गोम्स क्राविन्हो और विदेश मामलों और जमैका के विदेश व्यापार मंत्री कामिना जॉनसन स्मिथ भी शामिल थे. जयशंकर ने आगे कहा कि दिसंबर 2023 में ब्राजील के अध्यक्ष बनने से पहले भारत की जी20 अध्यक्षता के कुछ महीने बाकी हैं और हमें उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के सुधार पर कुछ प्रगति होगी. सरन ने जयशंकर की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए कहा कि “यूरोप की समस्याएं दुनिया की समस्याएं हैं लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं” और कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि जयशंकर यूरोप पर सख्त हैं लेकिन यह उचित मूल्यांकन है.

जयशंकर ने कहा, ‘नहीं, बिल्कुल नहीं.जो मुख्य मुद्दे पूरी दुनिया को परेशान कर रहे हैं उनमें कर्ज, एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) संसाधन, जलवायु कार्रवाई संसाधन, डिजिटल एक्सेस, पोषण और जेंडर शामिल हैं.’ जयशंकर ने कहा कि आंशिक रूप से कोविड ​​और यूक्रेन पर ध्यान केंद्रित करने के कारण इन विषयों को वैश्विक बातचीत से बाहर कर दिया गया था. वास्तव में जी20 को उस बारे में बात करने के लिए प्रेरित किया जाए जिसके बारे में दुनिया चाहती थी कि वह बात करे – वह जी20 में यह एक वास्तविक समस्या थी.’
उन्होंने कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बहुत अच्छी तरह से रखा जब उन्होंने कहा कि ‘पहले उन लोगों से बात करें जो मेज पर नहीं होंगे, आइए जानें कि वो क्या कहते हैं.’ यही कारण है कि भारत ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ को होस्ट किया.
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