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फिरोज, सज्जाद, कलीम, इमरान… सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करने वालों में 90% के नाम ऐसे ही: केस दर्ज है लेकिन कोर्ट में आते नहीं, फिर होगा ‘हल्द्वानी कांड’?

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नाम तो देख लिया आपने। अब झारखंड की एक कंपनी का नाम जानिए – ‘भारत कोकिंग कॉल लिमिटेड (BCCL)’। ये प्राइवेट नहीं, भारत सरकार की कंपनी है। कोयले के खदानों से जुड़ी ये कंपनी इंटीग्रेटेड स्टील सेक्टर के ज़रूरत के 50% कोकिंग कोयला की ज़रूरतों को पूरा करती है। इसकी स्थापना जनवरी 1972 में की गई थी। फ़िलहाल ये 36 कोयला के खदानों का प्रबंधन कर रही है देश भर में। इन खदानों को 13 अलग-अलग क्षेत्रों में चिह्नित कर के इनका वर्गीकरण किया गया है।

BCCL की संपत्ति पर अवैध कब्ज़ा, 90 प्रतिशत मुस्लिम

इन्हीं में से एक है – सिजुआ क्षेत्र (मोदिडीह कलियारी)। इस क्षेत्र में कंपनी को ‘लोक परिसर में अनधिकृत दखलकर के बेदखली अधिनियम’ के तहत न्यायालय में मुकदमा दायर करना पड़ा है। ऊपर जो नाम अभी आपने पढ़े हैं, ये वही लोग हैं जिनके खिलाफ ये मुकदमा दायर किया गया है। इन्हें नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब देने की जहमत नहीं उठाई। इतना ही नहीं, उन्होंने कोट के आदेश के बावजूद वहाँ अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं कराई।

सिजुआ क्षेत्र स्थित भू-संपदा न्यायालय में इनके खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है। अब BCCL ने अख़बार में विज्ञापन जारी कर के चेतावनी दी है कि न्यायालय के भू-संपदा पदाधिकारी ने कहा है कि अगर वो अगली सुनवाई में मौजूद नहीं रहे तो उनके खिलाफ आदेश पारित कर दिया जाएगा। इन्होंने BCCL की भूमि और फ्लैट्स कब्ज़ा रखे हैं। ऊपर से कोर्ट की सुनवाई में नहीं जा रहे। नोटिस का जवाब तक नहीं दे रहे। ऐसे 50 लोगों की सूची है, जिनमें से 45 मुस्लिम हैं – पूरे 90 प्रतिशत।

आखिर क्या कारण है कि सज्जाद, नसरुद्दीन और आमीर जैसे लोगों का ही नाम आता है, जब भी एक साजिश के तहत सामूहिक रूप से किसी सरकारी संपत्ति पर कब्जे की बात आती है? कोई वाशीद, इमरान या अनवर ही क्यों होता है, जब सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा कर के न्यायालय के आदेश तक की तौहीन की खबर सामने आती है? आखिर कोई ज़रीना, सबीना और राजिया ही क्यों होती है, जब सरकारी संपत्ति को बेशर्मी से कब्ज़ा कर के उल्टा ‘विक्टिम कार्ड’ निकाल लेने की बात सामने आ जाती है?

BCCL ने अख़बार में इश्तिहार के जरिए बताए सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा करने वालों के नाम

यहाँ ‘एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी’ वाली कहावत भी लागू होती है, क्योंकि न सिर्फ इन्होंने एक सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा कर के उसे अपना मानना शुरू कर दिया है बल्कि नोटिस का जवाब देने या फिर कोर्ट की सुनवाई में हाजिर होने तक से इनकार कर दिया। क्या ऐसे लोग ये समझने लगे हैं कि देश में उनके लिए अलग कानून है, या फिर जब कार्रवाई की बात आएगी तो NGO, नेताओं और पत्रकारों का गिरोह उनके साथ खड़ा हो ही जाएगा। वैसे ही, जैसे हल्द्वानी में हुआ?

अवैध अतिक्रमण, खाली करने के लिए कहने पर हिंसा: हल्द्वानी में क्या हुआ?

उत्तराखंड में एक जगह है – हल्द्वानी। इसे इस पहाड़ी राज्य की वित्तीय राजधानी भी कही जाती है क्योंकि अधिकतर कमर्शियल और औद्योगिक गतिविधियाँ इसी इलाके में होती हैं। स्पष्ट है कि आवागमन और माल ढुलाई की सुविधा भी यहाँ बेहतर होनी चाहिए। भारत में ये काम रेलवे के जरिए होता रहा है। लेकिन, यहाँ तो रेलवे की जमीन पर ही ऐसा सामूहिक अतिक्रमण या अवैध कब्ज़ा हुआ कि पुलिस तक नहीं छुड़ा पाई। देश भर के कई मुस्लिम नेता, वकील और पत्रकार इनके समर्थन में खड़े हो गए सो अलग।

पत्रकार, यहाँ इस गिरोह के पत्रकारों के बारे में बताना ज़रूरी है जो इस मानसिकता का साथ देते हैं। एक रिपोर्ट में सामने आया कि कैसे एक व्यक्ति भीड़ को गाइड कर रहा था कि क्या बोलना है, कैसे बोलना है। साथ ही बात रहा था कि ‘The Wire’ पर आरफा खानुम शेरवानी के वीडियो में ये सब चलाया जाएगा। जैसे ही अवैध कब्ज़ा खाली कराने की बारी आई, भीड़ जुट गई, दिल्ली के शाहीन बाग़ की तर्ज पर धरना-प्रदर्शन में महिलाओं-बच्चों का इस्तेमाल होने लगा और रोने-धोने के वीडियो सोशल मीडिया पर चलाए जाने लगे।

और अंत में, वकीलों का गिरोह है ही, NGO हैं ही, जो तुरंत सुप्रीम कोर्ट भागते हैं। यहाँ भी वही हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण खाली कराने के फैसले पर रोक लगा दी। अतिक्रमण करने वालों की संख्या सौ या दो सौ नहीं, बल्कि 50,000 है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया। वहाँ 4365 मामले हैं अतिक्रमण के, एक दर्जन मस्जिदें बना दी गई हैं।

यहाँ भी वही मामला, ठीक BCCL की तरह। कई बार नोटिस भेजे जाने के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया गया। भारतीय रेलवे को विस्तारीकरण के कार्य में दिक्कत आ रही, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इतना ही नहीं, ये लोग गोला नदी में अवैध खनन भी करते हैं जिससे रेलवे की पटरियों और पुल को खतरा है। आज से नहीं, 1975 से ये सब हो रहा। ताज़ा हिंसा के मामले में यहाँ हथियार इकट्ठा किए जाने तक की बात भी सामने आई। मदरसों के बच्चों को लाया गया। ये सब तिकड़म अब एक पैटर्न बन गया है।

कहाँ से आती है सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जे वाली मानसिकता?

सिर्फ धनबाद और हल्द्वानी ही नहीं, ये मानसिकता हमें हर जगह दिखाई देती है। जब एक भीड़ सड़क पर नमाज पढ़ने लगती है और उनके कारण ट्रैफिक रुकी रहती है, इससे उन्हें सह मिलती है। जब एक भीड़ शाहीन बाग़ में महीनों सड़क कब्ज़ा कर बैठी रहती है और दिल्ली के लाखों लोग रोज परेशान होने के बावजूद कुछ नहीं कर पाते, इससे उन्हें सह मिलती है। जब जगह-जगह सड़कों से लेकर जंगलों तक की भूमि पर दरगाह बना लिए जाते हैं और वहाँ चादर चढ़ाया जाने लगता है, इससे उन्हें सह मिलती है।

जब अवैध अतिक्रमण की घटनाएँ हों, इससे आमजनों को परेशानी हो, सरकारी संपत्ति का दुरूपयोग हो – तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि ऐसा करने वाला हिन्दू है या फिर मुस्लिम। BCCL ने 2017-18 में अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया था कि कंपनी की 526 एकड़ जमीन ऐसी है जिस पर अवैध कब्ज़ा हुआ है, जिनमें से कई जमीनों पर अतिक्रमण छुड़ाया भी गया है। खदानों की सुरक्षा के लिए और लंबे समय तक संचालन के लिए ज़रूरी होता है कि आसपास जो अतिक्रमण या अवैध निर्माण हैं उन्हें खाली कराया जाए।

ऐसे में आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर धनबाद में भी हल्द्वानी की तरह हिंसा भड़क जाए और धरना प्रदर्शनों का दौर शुरु हो जाए। फिर कुछ लोग इनकी तरफ से दौड़ कर सुप्रीम कोर्ट जाएँगे और स्टे लेकर आएँगे। इसे मुस्लिमों पर अत्याचार बताया जाएगा, विदेशी मीडिया में बताया जाएगा कि भारत में मुस्लिमों को उजाड़ा जा रहा है। अवैध अतिक्रमण की बात दब जाएगी, पूरा मामला मुस्लिम बनाम मोदी सरकार बना दिया जाएगा। खैर, देखते हैं अब इस मामले में आगे क्या होता है।

अनुपम कुमार सिंह (सभार………)

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