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कॉन्ग्रेस कह रही – कोर्ट के बजाय मौलवी-मौलानाओं से आदेश लेते: हल्द्वानी में कट्टरपंथियों के साथ खड़ी पार्टी, सुप्रीम कोर्ट पहुँच पहले भी इन्होंने ही भड़काए थे दंगे

हल्द्वानी दंगा और विधायक सुमित हृदयेशकोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड के हल्द्वानी में प्रशासन ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया, जिसके बाद कट्टरपंथियों ने इतना उपद्रव मचाया कि इसमें कम-से-कम 6 लोगों की मौत हो गई है। ये अभियान कई दिनों से चल रहा था, जिसके तहत सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा करके बनाए बनाए गए इमारतों को ध्वस्त किया जा रहा था। इन इमारतों में मकानों और धार्मिक स्थल भी थे।

प्रशासन गुरुवार (8 फरवरी 2024) को हल्द्वानी के बनफूलपुरा थाना इलाके के ‘मालिक के बगीचे’ में पहुँचा और अवैध रूप से बनी मस्जिद और मदरसे पर बुलडोजर चला दिया। इसके बाद इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया। इस भीड़ में पुरुषों के साथ महिलाएँ भी शामिल थीं। हमले में कई पुलिस वाले घायल भी हो गए हैं।

हमले में पत्थरबाजी के साथ ही पेट्रोल-बम भी चलाए गए। दर्जनों गाड़ियों को आग लगा दिया गया। उन्मादी भीड़ ने पुलिस थाने को घेर लिया गया और पुलिस वालों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इस हिंसा में 6 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 300 से अधिक लोग घायल हैं। घायलों में अधिकांश पुलिसकर्मी और अधिकारी हैं। हालात को देखकर हल्द्वानी में अगले आदेश तक कर्फ्यू लगा दिया गया है।

दरअसल, कोर्ट के आदेश पर की गई प्रशासन द्वारा अवैध मस्जिदों और मदरसों पर की गई कार्रवाई के खिलाफ के बाद कट्टरपंथियों की कार्रवाई का कॉन्ग्रेस नेताओं ने एक तरह से समर्थन कर दिया। कॉन्ग्रेस नेताओं ने जिस लहजे में इस पूरे घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया दी, उससे यही लगता है कि कोर्ट के आदेश बजाय प्रशासन को मौलवी एवं मौलानाओं से आदेश लेना चाहिए था और उनकी सहमति होती, तभी प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए थी।

अधिकारियों को उतावला बताते हुए कॉन्ग्रेस के स्थानीय विधायक सुमित हृदयेश ने कहा, “ये प्रशासन और अधिकारियों की बहुत बड़ी चूक है। स्थानीय लोगों, मौलानाओं को कॉन्फिडेंस में लेकर बात की जानी चाहिए थी। आप (प्रशासन) एकदम से वहाँ पहुँच जाते हैं और बिना इन्फॉरमेशन के वहाँ ऐसी कार्रवाई को अंजाम दिया। जो भी हुआ, अनुचित हुआ। आजादी के बाद से ऐसा हमने हल्द्वानी शहर में ऐसा कभी नहीं देखा। ये बड़ा काला दिन है।”

ये वही सुमित हृदयेश हैं, जो रेलवे की जमीन पर कब्जा करके बसे हजारों लोगों की बस्तियाँ को हटाने के खिलाफ खड़े हो गए थे। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि यहाँ 20 इबादतगाह भी बनाए गए हैं। मामला जब सुप्रीम कोर्ट में गया तो अवैध कब्जाधारियों को बचाने के लिए कॉन्ग्रेस के सलमान खुर्शीद खड़े हो गए। वहीं, कॉन्ग्रेस के स्थानीय विधायक सुमित हृदयेश भी खड़े हो गए।

लोगों का तो ये भी कहना है कि इन अवैध बस्तियों को बसाने में सुमित हृदयेश की माँ इंदिरा हृदयेश का भी बड़ा हाथ था। कहा जाता है कि वहाँ जब गफूर बस्ती के सीमांकन का काम होता था, तब भी यहाँ के लोग इसका विरोध करते थे और इंदिरा हृदयेश भी इसमें साथ रहती थीं। इंदिरा हृदयेश भी उत्तराखंड कॉन्ग्रेस की बड़ी नेता रही हैं। इस पूरे मामले में एकमुश्त वोट पाने की नीति की बहुत बड़ी भूमिका है।

दरअसल, उत्तराखंड विधानसभा में हाल में समान नागरिक संहिता (UCC) पारित किया गया है, जिसको लेकर भी विपक्षी दलों द्वारा माहौल खराब करने की कोशिश की गई। कॉन्ग्रेस के बड़े नेता एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी कहा था कि UCC से राज्य में अशांति हो सकती है। राज्य के हालत मणिपुर में तब्दील हो सकते हैं। उन्होंने UCC के बाद होने वाली हिंसा का उदाहरण कूकी-मैतेई समुदाय से जोड़कर दिया था।

इतना ही नहीं, मुस्लिम मौलानाओं ने भी सड़कों पर उतरने की धमकी दी थी। इसके बाद मुस्लिम सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और खुद को पीस पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बताने वाला शादाब चौहान मुस्लिमों की ताकत को कम ना आँकने की धमकी दी थी। शादाब चौहान ने हल्द्वानी दंगे (8 फरवरी, 2024) से दो दिन पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को धमकी देते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट लिखा था।

अपने पोस्ट में शादाब ने लिखा था, “किसी की औकात नहीं है जो भारत के मुसलमानों को अल्लाह के हुकुम और हमारे नबी के तरीके पर चलने से रोक सके। अगर तुम हमको कमजोर समझ रहे हो तो गलती कर रहे हो, हमारी ताकत का अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते। हम हर संवैधानिक संघर्ष के लिए तैयार हैं। हमारी ताकत संविधान का अनुच्छेद 25 है, जिसके सामने तुम्हारी कोई हैसियत नहीं है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस, तुम्हारी भी जिम्मेदारी है कि इसके लिए संवैधानिक संघर्ष करो।”

स्थानीय लोगों से पता चला था कि कैसे हल्द्वानी में बाहरी मुस्लिमों की संख्या तेजी से बढ़ी है। रामपुर, नजीमाबाद, बिजनौर, बुलंदशहर जैसी जगहों से मजदूरी के लिए वे आए और फिर जमीनों पर कब्जा करके बस गए। इनमें अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिमों की भी बड़ी संख्या है।

दरअसल, हल्द्वानी में जिस बनफूलपुरा में ये सारा बवाल हुआ, वो पूरा इलाका सरकारी जमीन पर बसा है। प्रशासन लगातार अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई कर रहा था। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश के बाद ये कार्रवाई की जा रही थी। पिछले साल भी यहाँ बड़ा तनाव फैल गया था। इस बार अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत अवैध रूप से बने मस्जिद और मदरसा को हटाया जा रहा था।

प्रशासन की कार्रवाई लगभग पूरी भी हो गई थी, तभी वहाँ कट्टरपंथियों की भारी भीड़ पहुँची। इनमें महिलाएँ और किशोर उम्र के बालक भी थे। उन्होंने प्रशासनिक कर्मचारियों से बहस की और फिर देखते ही देखते आसपास की छतों से पत्थरबाजी शुरू हो गई। यहाँ करीब 800 की संख्या में मौजूद पुलिस वालों, मीडिया व अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों-अधिकारियों को घेर लिया गया और हमला बोल दिया गया।

डीएम वंदना सिंह ने बताया, “ये हमला छतों पर इकट्ठे किए गए पत्थरों के जरिए किया गया। 30 जनवरी तक उन छतों पर कोई भी पत्थर नहीं था। न्यायालय में जब सुनवाई चल रही थी, तब भी वहाँ पत्थर नहीं थे। जिस दौरान सुनवाई चल रही थी, उस दौरान छतों पर पत्थर इकट्ठे किए गए। इसका मतलब है कि ये पूरी तरह से प्लानिंग की गई थी कि जिस दिन अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया जाएगा, उस समय हमला किया जाएगा। ताकि प्रशासन बैकफुट पर चला जाए।”

डीएम वंदना सिंह ने कहा, “पत्थरों से हमला हुआ, तो हमारी टीम पीछे नहीं हटी। हमारी टीम काम करती रही, इसके बाद दूसरी टीम आई। उनके हाथों में पेट्रोल बम थे। उन्होंने हाथों में प्लास्टिक की बोतलें पकड़ी हुई थी, उन्होंने उसमें आग लगाकर फेंकना शुरू किया। हमारी टीम तब भी अवैध ढाँचे को तोड़ने में लगी रही।”

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