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BJP के लिए गले की हड्डी बन गई है कैसरगंज सीट

बृजभूषण शरण सिंह को बीजेपी टिकट दे या न दे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ उनका चुनाव प्रचार जोरशोर से और और काफी पहले से चल रहा है.उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट का हाल भी अमेठी और रायबरेली जैसा ही है. जैसे कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली की मुश्किल है, बीजेपी के लिए रायबरेली और कैसरगंज चुनौती बने हुए हैं. अमेठी का मामला बीजेपी के लिए आसान था. अब स्मृति ईरानी का टिकट तो कट नहीं सकता था, और न ही उनका चुनाव क्षेत्र बदला जा सकता था.

रायबरेली और कैसरगंज का हाल काफी मिलता जुलता है, लेकिन बीजेपी के लिहाज से देखें तो एक बड़ा फर्क भी है. अगर दोनों सीटों को बीजेपी और कांग्रेस के नजरिये से देखें तो भी कई चीजें कॉमन होने के साथ साथ फर्क भी नजर आता है – कैसरगंज में जहां बृजभूषण शरण सिंह बीजेपी के टिकट का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, अमेठी और रायबरेली में गांधी परिवार से कोई चुनाव लड़ने तक को तैयार नजर नहीं आ रहा है.

कैसरगंज से सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों के बाद बीजेपी के लिए हाल सांप-छछूंदर जैसा हो गया है. अभी तक कैसरगंज लोकसभा सीट के लिए किसी भी राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है – ये बात अलग है कि बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह अपने से ही चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं.

रायबरेली में तो बीजेपी, कांग्रेस उम्मीदवार की घोषणा का इंतजार कर रही है, जबकि कैसरगंज के लिए समाजवादी पार्टी बीजेपी की अगली लिस्ट का इंतजार कर रही है. कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन में अखिलेश यादव ने कैसरगंज सीट अपने हिस्से में रखी है – बृजभूषण शरण सिंह और अखिलेश यादव के बीच भी रिश्ता ठीक ठाक ही माना जाता है. कैसरगंज में एक चर्चा ये भी है कि अगर बीजेपी ने बृजभूषण शरण को टिकट दिया, तो समाजवादी पार्टी महिला पहलवानों में से ही किसी को चुनाव लड़ा सकती है.

अगर समाजवादी पार्टी किसी महिला पहलवान को उम्मीदवार बनाती है, तो बीजेपी के लिए भारी फजीहत हो जाएगी. कुछ कुछ वैसी ही जैसी अभी कर्नाटक के जेडीएस उम्मीदवार प्रज्ज्वल रेवन्ना को लेकर बनी हुई है.

यूपी में बीजेपी 75 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 5 सीटें बीजेपी ने सहयोगी दलों को दे दिया है. कैसरगंज और रायबरेली को छोड़ कर बीजेपी ने 73 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. और सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बाकी पार्टियों ने भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.

कैसरगंज लोकसभा सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख 3 मई है. अगले दिन नामांकन पत्रों की जांच की जाएगी – और 6 मई तक उम्मीदवार अपना नाम वापस ले सकते हैं – वोटिंग पांचवें चरण में 20 मई को होनी है.

होइहि सोइ जो राम रचि राखा!

कैसरगंज लोकसभा सीट पर बीजेपी से टिकट के सबसे बड़े दावेदार बृजभूषण शरण सिंह के साथ अच्छी बात ये है कि वो हकीकत से नावाकिफ नहीं हैं. पूछे जाने पर वो गोस्वामी तुलसीदास की एक चौपाई बोल कर जवाब देते हैं.

बृजभूषण शरण सिंह से मीडिया का सवाल था – क्या बीजेपी का टिकट उन्हें मिलेगा? देरी क्यों हो रही है? 

थोड़े से गंभीर भाव के साथ बृजभूषण शरण सिंह ने एक चौपाई सुना दी, ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा!’

बृजभूषण शरण सिंह की तरह ही लखीमपुर खीरी वाले अजय मिश्रा टेनी भी विवादों में रहे हैं. बृजभूषण शरण जहां टिकट के लिए तरस रहे हैं, टेनी केंद्रीय मंत्री बने हुए हैं – और उनका नाम तो 2 मार्च को आई बीजेपी की पहली लिस्ट में शामिल था. दोनों नेताओं में बस इतना फर्क है कि बृजभूषण शरण खुद महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी है, और टेनी का बेटा किसानों को गाड़ी से कुचलने का आरोपी है.

माना जाता है कि कैसरगंज ही नहीं, आसपास की कुछ अन्य लोकसभा सीटों पर भी बृजभूषण शरण सिंह का खासा प्रभाव है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि उनके विधायक बेटे प्रतीक भूषण की लगातार दो चुनावों में जीत का अंतर काफी कम रहा है.

सुनने में ये भी आया है कि बीजेपी नेतृत्व बृजभूषण शरण सिंह की जगह उनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट देना चाहती है. बृजभूषण शरण को ये संदेश भी दिया जा चुका है, लेकिन वो अपने लिए ही जिद पकड़े हुए हैं.

टिकट को लेकर बृजभूषण शरण की अपनी दावेदारी की भी खास वजह है. उनके दोनों हाथों में लड्डू है. बीजेपी ने साथ छोड़ा तो समाजवादी पार्टी भी हाथ थाम सकती है. 2009 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वो कैसरगंज का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं – और जब महिला पहलवानों के दिल्ली में धरने के दौरान वो विवादों में थे तो अखिलेश यादव के प्रति उनकी और उनके प्रति अखिलेश यादव की सहानुभूति भी साफ तौर पर महसूस की गई थी.

समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता ये तो नहीं मानते कि वे बृजभूषण शरण के टिकट कटने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ये जरूर कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो वो आलाकमान से उनके लिए सिफारिश जरूर करेंगे.

टिकट मिले न मिले, तैयारी पूरी है

यूपी की राजननीति में दबदबा रखने वाले बृजभूषण शरण सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों एक ही बिरादरी से आते हैं, दोनों ही ठाकुर हैं, और अपने अपने इलाके के दबंग नेता हैं. दोनों में एक कॉमन बात ये भी है कि दोनों की चुनावी मशीनरी भी मिलती जुलती है.

जैसे योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के बल पर राजनीति में अपनी धाक जमाई, बृजभूषण शरण सिंह के कॉलेज भी चुनावों में किसी राजनीतिक संगठन जैसे ही फायदा पहुंचाते हैं. छात्र और शिक्षक दोनों काफी पहले से ही चुनाव प्रचार में जुट जाते हैं, और गांव गांव अपनी अपनी बिरादरी के वोट दिलाने की जिम्मेदारी निभाने में जुट जाते हैं. ये कॉलेज चुनाव कार्यालय का भी काम करते हैं.

ऐसे ही कर्नलगंज के सरयू डिग्री कॉलेज में चुनाव प्रबंधन की एक बैठक में बृजभूषण शरण गाड़ियों के अपने लंबे काफिले के साथ पहुंचते हैं – और बैठक में हिस्सा लेते हैं. बैठक में भारी संख्या में उनके समर्थक जुटे हुए होते हैं.

मंच पर एक बड़ा सा बैनर लगा हुआ है, जिसकी बायीं तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी हुई है, और दाहिनी तरफ कैसरगंज के बीजेपी सांसद की, जिसे खुद बृजभूषण शरण सिंह ने सोशल साइट X पर साझा किया है. अब बीजेपी टिकट दे या न दे, मोदी उनको मन से माफ कर पायें या नहीं – लगता तो नहीं कि बृजभूषण शरण सिंह को ऐसी बातों की कोई परवाह भी है.
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