मनीष कुमार
दोस्तों का सबसे मूल प्रश्न ये है कि HAL की जगह अनिल अंबानी को राफेल बनाने का ठेका क्यों दिया गया.. जबकि इस कंपनी को कोई अनुभव नहीं है. दरअसल, ये सबसे बड़ा झूठ है जो कांग्रेस की तरफ से फैलाई जा रही है. ये झूठ कैसे है ये आगे बताउंगा लेकिन ये बात भी जानना जरूरी है कि 2012 में कांग्रेस पार्टी इसके मंत्रीगण मुकेश अंबानी के साथ ये सौदा कर रहे थेे. उस वक्त इनकी मोरालिटी कहां गायब हो गई थी? तब ये ठीक था लेकिन बस भाई को बदला गया तो अनर्थ हो गया? अजीब तर्क है.
मतलब ये कि राफेल फाइटर प्लेन को बनाने के लिए रिलायंस को नहीं चुना गया है. दस्सो के साथ जो ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनी है वो नई कंपनी राफेल फाइटर जेट के लिए पूरी सप्लाई चेन तैयार करेगी. मतलब ये कि ये ज्वाइंट वेंचर कंपनी हिंदुस्तान में राफेल फाइटर जेट को सिर्फ एसेंबल करेगी. वैसे भी रिलायंस डिफेंस का पहले से थेल्स कंपनी के साथ एक ज्वाइंट वेंचर है जिसे राफेल के लिए राडार और इलेक्ट्रोनिक्स की सप्लाई के लिए चुना गया था. इसलिए ये कहना कि रिलायंस को कोई अनुभव नहीं है.. ये पूरी तरह बकवास है.
मोदी सरकार जब से आई है तब से डिफेंस मार्केट को खोलने की शुरुआत हुई है. ये एक अच्छी शुरुआत है. हथियार और विमान बनाना कोई मैकडोनॉल्ड की टिकिया या कोकाकोला की शिकंजी तो है नहीं… इसमें काफी कैपिटल की जरूरत होती है. सरकार ने हथियार के बाजार को खोला तो रिलायंस, टाटा, L&T, गोदरेज जैसे बड़ी कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश करना शुरु किया. विदेशी कंपनियों से ज्वाइंट वेंचर शुरु किया. इस बैकग्राउंड में राफेल का मसौदा होता है तो इसकी ऑफसेट कांट्रैक्ट को अमली जामा पहनाने के लिए किसी कंपनी की तो जरूरत पडेगी ही. HAL पहले के दिए हुए टारगेट को पूरा नहीं कर पा रही है तो ये लाजमी है कि किसी प्राइवेट कंपनी को ये काम दिया जाए. इसके लिए रिलायंस को चुना गया तो कौन सा पहाड़ टूट गया. जब काग्रेस पार्टी भी 2012 में मुकेश अंबानी के साथ यही काम करने में लगी थी.. लेकिन वो सौदा रास्ते में ही लटक गया इसलिए कांग्रेस इस काम को पूरा नहीं कर पाई. अब यही काम मोदी सरकार कर रही तो राहुल गांधी घोटाला.. घोटाला चिल्ला रहे हैं.
याद रखने वाली बात ये है कि लड़ाकू विमान राफेल की ख़रीददारी एक विशेष परिदृश्य में की गई, जब भारत का चीन और पाकिस्तान के बीच रिश्ते तनावपूर्ण होने लगे थे. बॉर्डर पर लगातार गोलीबारी और पठानकोट व उरी जैसे हमलों के बाद देश चिंता बढ़ने लगी थी. चीन के साथ डोकलाम में सेना आमने सामने थी. किसी भी वक्त मामला बिगड़ने का डर सताने लगा था. ऐसे नाजुक हालात में भारत को एक विश्वस्तरीय फाइटर प्लेन की जरूरत थी. ऐसा माहौल में जो डील मोदी सरकार ने की उसकी तारीफ होनी चाहिए न कि बिना जानकारी और सबूत के राजनीतिक फायदे के लिए तमाशा करना चाहिए. ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से ज़ुडा है, फ्रांस जैसे मददगार साथी देश के साथ रिश्ते से जुड़ा है.. ऐसे में विपक्ष का भी ये दायित्व है कि वो जिम्मेवार बने. वैसे देश की जनता काफी समझदार है.. कौन चोर है और कौन ईमानदार.. वो भलीभांति जानती है.