नई दिल्ली। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी (आप) का साथ छोड़ने वाले आशुतोष और आशीष खेतान पर पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवालका विश्वास खत्म होने लगा था, कम से कम उनकी ओर से किए गए ट्वीट और रिट्वीट के आधार पर ऐसा लगता है.
पार्टी प्रमुख की ओर से अपनी पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के ट्वीट और रिट्वीट्स के आधार पर लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने धीरे-धीरे आशुतोष और आशीष खेतान को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था.
आशुतोष और आशीष खेतान दोनों पूर्व पत्रकार हैं. दोनों ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने के साथ ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. पत्रकार से राजनेता बने दोनों नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मनमुटाव और ट्विटर पर केजरीवाल के टाइमलाइन से पता चलता है कि इनका कद पार्टी में घटने लगा था.
केजरीवाल ने पहले ही छोड़ दिया साथ!
उनके पार्टी छोड़ने से पहले ऐसा लगता है कि पार्टी में उनकी अहमियत खत्म हो रही थी, शीर्ष नेतृत्व उन पर विश्वास नहीं कर रहा था. पिछले 2 महीने में मुख्यमंत्री केजरीवाल के ट्विटर अकाउंट पर विश्लेषण किया जाए तो स्थिति साफ हो जाती है.
18 जून से 15 अगस्त तक केजरीवाल ने आशुतोष के ट्वीट्स को सिर्फ 2 बार जबकि आशीष खेतान के ट्वीट्स को 3 बार रिट्वीट किया. पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में यह काफी कम है और यह भी दर्शाता है कि पार्टी प्रमुख की नजर में इन दोनों नेताओं की अहमियत कम हो गई थी.
ट्विटर पर केजरीवाल के 1.4 करोड़ फॉलोअर्स हैं और फॉलोअर्स के लिहाज से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद इस सोशल मीडिया पर दूसरे सबसे लोकप्रिय भारतीय राजनेता हैं.
पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पार्टी प्रमुख ने पहले से ही सोशल मीडिया पर उन्हें इग्नोर करना शुरू कर दिया था.
इसी अवधि में केजरीवाल ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के 102 ट्वीट्स को रिट्वीट किए जिसमें दिल्ली सरकार में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले मनीष सिसौदिया भी शामिल हैं जबकि पत्रकारों के 80 ट्वीट्स और अन्य पार्टियों के नेताओं के 11 ट्वीट्स हैं.
उनके ट्विटर अकाउंट पर रिसर्च करने पर यह जानकारी सामने आई कि उन्होंने 31 बार सिसौदिया जबकि 19 बार पार्टी की दिल्ली शाखा के प्रमुख प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज के ट्वीट के रिट्वीट किया था.
विश्वास के साथ ही ऐसा ही हुआ!
केजरीवाल सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहते हैं और अपने ट्विटर अकाउंट को खुद ही ऑपरेट भी करते हैं, साथ ही सोशल मीडिया टीम को दिशा-निर्देश भी देते हैं.
पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, केजरीवाल और पार्टी के विद्रोही नेता कुमार विश्वास के बीच रिश्ते तल्ख होने के बाद पार्टी प्रमुख ने उनके साथ भी ऐसा ही सुलूक किया और उनके ट्वीट्स को रिट्वीट करना बंद कर दिया था.
हालांकि आशुतोष और आशीष खेतान के बारे में माना जाता है कि उन्होंने 15 अगस्त को ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत में यह बात सामने आई थी. केजरीवाल को अभी उनके इस्तीफे पर फैसला लेना है.
आशुतोष ने 15 अगस्त को जब पार्टी छोड़ने का ऐलान किया तो केजरीवाल ने जवाब देते हुए कहा, ‘हम आपका इस्तीफा कैसे स्वीकार कर सकते हैं, सर? इस जन्म में तो नहीं. सर हम सभी आप को प्यार करते हैं.’
एक समय आशुतोष केजरीवाल के बेहद करीबी हुआ करते थे और कई विधायकों के अलावा अन्य विद्रोही नेताओं को समझाने-बुझाने के लिए पर्दे के पीछे से आशुतोष को ही लगाया जाता था. 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में उनकी अच्छी खासी अहमियत थी.
योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के केजरीवाल के साथ विवाद के दौर में पार्टी ने आशीष खेतान और आशुतोष को मामला सुलझाने के लिए अहम वार्ताकार के रूप में इस्तेमाल किया.
पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं में मनमुटाव तब से दिख रहा है जबसे पार्टी ने राज्यसभा सीट के लिए वरिष्ठ नेता संजय सिंह के अलावा बिजनेसमैन सुशील गुप्ता और चार्टेड अकाउंटेंट एनडी गुप्ता को नामांकित किया.
टिकट कटने से नाराजगी
सूत्रों का कहना है कि आशुतोष, आशीष खेतान और पार्टी के संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास राज्यसभा चुनाव के दौरान से ही आप नेतृत्व से काफी नाराज थे.
साथ ही पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए चांदनी चौक से आशुतोष की जगह पंकज गुप्ता को उम्मीदवार बना दिया. जबकि 2014 के चुनाव में आशुतोष यहीं से लोकसभा चुनाव हार गए थे.
दूसरी ओर, आशीष खेतान भी इस बात से नाराज चल रहे थे कि पार्टी आगामी चुनाव में उनको नई दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट नहीं दे रही है. खेतान 2014 में यहां से चुनाव लड़े और हार गए थे.