नई दिल्ली। दागी नेताओं से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि ज्यादातर मामलों में आरोपी नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए.
दरअसल, इस याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों में 5 साल से ज्यादा सजा हो और किसी के खिलाफ आरोप तय हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति या नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. इसके अलावा याचिका में ये मांग भी की गई है कि अगर किसी सासंद या विधायक पर आरोप तय हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए.
कोर्ट ने क्या कहा
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति आपराधिक पृष्ठभूमि का है और उसके खिलाफ रेप, मर्डर और करप्शन जैसे गंभीर अपराध में आरोप तय होते हैं तो उसे किसी राजनीतिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने से रोका जाए.’
हालांकि, केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल ने इसका विरोध किया. उन्होंने अपनी दलील में कहा, ‘आपराधिक न्यायशास्त्र के मुताबिक एक व्यक्ति तब तक निर्दोष होता है, जब तक उसे दोषी करार न दिया जाए. ये एक लंबी प्रक्रिया है. इसलिए कोर्ट को इस तरह के आदेश जारी नहीं करने चाहिए.’
वहीं, जिरह के दौरान जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने सवाल उठाया कि कई मामलों में झूठी शिकायतें पाई जाती हैं. ऐसे में बहुत सारे लोग आरोप मुक्त हो जाते हैं. इस दलील को मजबूती देते हुए अटॉर्नी जनरल ने बताया कि 74 फीसदी मामलों में लोग बरी हो जाते हैं. उन्होंने साफ कहा कि ये पॉलिसी मैटर है और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.
चीफ जस्टिस ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा कि हम कानून की बात नहीं कर रहे हैं और न ही राजनीतिक पार्टियों की मान्यता के बारे में सुनवाई कर रहे हैं.
बता दें कि पिछली सुनवाई में पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे? केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं. आज दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.