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क्या UPA-2 ने अपने अंतिम 7 दिनों में किया था सोना घोटाला? CBI के हाथ लगे नए सुराग

नई दिल्ली। घोटालों की परतें एक बार फिर खुलनी शुरू हो गई हैं. CBI ने यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल की गोल्ड इंपोर्ट स्कीम की जांच दोबारा शुरू की है. CBI के हाथ कुछ नए सुराग भी लगे हैं. नए सुराग 80:20 गोल्ड इंपोर्ट स्कीम में घोटाले की ओर इशारा कर रहे हैं. खास बात यह है कि ये घोटाला यूपीए-2 के कार्यकाल के आखिरी 7 दिनों का है. जिसमें उन्होंने कुछ ज्वेलरी कंपनियों की मांग को बिना जांच के फटाफट मान लिया था. इस मामल में तमिलनाडु के कुछ ज्वेलर्स की ओर से आवेदन किए गए थे.

6 ज्वेलर्स के आवेदन एक जैसे
तमिलनाडु के 6 ज्वैलर्स ने 80:20 गोल्ड इंपोर्ट स्कीम की शर्तों में ढील देने की मांग करते हुए यूपीए सरकार को आवेदन दिए थे. इन आवेदनों की समीक्षा के बिना ही यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते में उनकी मांग को फटाफट मान लिया था. इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, इस मामले की नए सिरे से CBI ने जांच शुरू की तो कुछ नए सुराग हाथ लगे. आखिरी 7 दिन की बात भी नए सुराग के तहत ही पता चली है. इस मामले को प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने रखा गया है. यह दूसरा मौका है, जब सीबीआई इस मामले में प्रिलिमिनरी इंक्वायरी शुरू कर चुकी है.

नई 6 कंपनियों के नाम आए सामने
सीबीआई की नई जांच में सामने आया है कि यूपीए-2 सरकार को सभी छह आवेदन तमिलनाडु से दिए गए थे. आवेदन की भाषा, फॉर्मैट से लेकर की गई मांग सहित सबकुछ एक जैसा था. हालांकि, आवेदनों की तारीख अलग थी, लेकिन सभी फरवरी 2014 में दिए गए थे. आरबीआई ने आम चुनाव का नतीजा आने के बाद इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया था. ये 6 कंपनियां उन 7 कंपनियों की पहली लिस्ट से अलग हैं. पहले की 7 कंपनियों में डायमंड ज्वेलर्स नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी की कंपनियां शामिल थीं.

जांच में घिर सकते हैं यूपीए-2 के अधिकारी
सूत्रों के मुताबिक, जांच में उन कड़ियों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिन पर मई 2014 से पहले निर्णय लिए गए थे. जांच के दायरे में वह सभी लोग आ सकते हैं, जो यूपीए 2 के आखिरी कुछ महीनों में निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुड़े थे. जांच अधिकारियों को शक है कि उन आवेदनों का इस्तेमाल गोल्ड इंपोर्ट स्कीम में बदलाव करने की जमीन तैयार करने के लिए किया गया था.

सबूत न मिलने पर रुक गई थी जांच
सूत्रों के मुताबिक, इस स्कीम की सीबीआई की पिछली पीई ‘सबूत न मिल पाने के कारण’ फंस गई थी. हालांकि, एजेंसी को अब विश्वास है कि वह नए सबूतों की मदद से इसे रेगुलर केस में बदल लेगी. इस मामले में पिछले कुछ दिनों में विभिन्न एजेंसियों के बीच तीन उच्चस्तरीय बैठक हुई हैं. एजेंसियों की प्राथमिकता एक आपराधिक मामला बनाने की है.

यूपीए के टॉप नेता, RBI की भूमिका पर नजर
यूपीए 2 के कई टॉप नेताओं और आरबीआई के अधिकारियों की भूमिका पर नजर है. एजेंसियों की नजर इस बात पर भी है कि क्या आरबीआई को नई सरकार बनने तक इंतजार करने को कहा गया था. 2016 में CAG रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इस स्कीम से सरकारी खजाने को एक लाख करोड़ रुपए की चपत लगी. एनडीए सरकार ने नवंबर 2014 में यह स्कीम रद्द कर दी थी.

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