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मुंबई आतंकी हमले के 10 साल: क्या फिर ऐसा ही हमला करने की तैयारी में है जैश-ए-मोहम्मद

नई दिल्ली। भारत इस साल नवंबर में 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले की दसवीं बरसी का शोक मनाएगा. एक दशक पहले आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के दस जिहादी लड़ाके पाकिस्तान के कराची शहर से चलकर नाव से मुंबई के समुद्र तट पर उतरे थे. इन आतंकवादियों ने तालमेल के साथ मुंबई में कई ठिकानों पर हमले किए, जिसमें 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा जख़्मी हुए थे.

ऐसा लगता है कि अब पाकिस्तान का एक और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद समुद्र के रास्ते भारत पर एक और हमला करने वाला है. जैश-ए-मोहम्मद का अगुवा मौलाना मसूद अज़हर है. ये उन तीन आतंकवादियों में से एक है, जिसे भारत ने कंधार में अगवा इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट आईसी 814 को छुड़ाने के एवज़ में 1999 में छोड़ा था. लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद, दोनों के लिए भारत सबसे बड़ा दुश्मन है.

मसूद अजहर की धमकी!

पिछले कुछ महीनों मे जैश-ए-मोहम्मद के साप्ताहिक अख़बार हफ़्तरोज़ा अल-क़लाम में ऐसी खबरें और लेख छप रहे हैं, जिनमें समुद्र में जिहाद की अहमियत को तफ़्सील से बताया जा रहा है. जैश-ए-मोहम्मद समुद्र के रास्ते हमले की साज़िश रच रहा है, इस बात के पहले संकेत इस साल उस समय मिले जब हफ़्तरोज़ा अल-क़लाम ने 6-12 अप्रैल के अपने अंक में एक छोटी सी रिपोर्ट छापी. इसमें समुद्र में जिहाद की मज़हबी अहमियत के बारे में बताया गया था. इस रिपोर्ट में पैगंबर मुहम्मद साहब के हवाले से लिखा गया था कि, ‘मेरे उम्माह के कुछ लोगों ने समुद्र की इस तरह से सवारी की, जैसे कोई बादशाह, तख़्त पर बैठता है.’

इसके बाद, ख़ुद जैश-ए-मोहम्मद के चीफ़ मसूद अज़हर ने इस बारे में एक लेख लिखा. हफ़्तरोज़ा अल-क़लाम के 29 जून-5 जुलाई 2018 के अंक में छपे इस लेख में मसूद अज़हर ने लिखा कि, ‘अल्लाह ने हमें समुद्र के रास्ते जिहाद करने की ख़ास दुआ दी है.’ पानी में जिहाद, समुद्र में जिहाद, पानी के सीने पर सवार होकर जिहाद. ये जिहाद, ज़मीन पर होने वाले जिहाद से दस गुना अहम है.’

मसूज अज़हर के इस लेख और दूसरे लेखों का अनुवाद टेररिज्म थ्रेट मॉनिटर ऑफ़ द मिडिल ईस्ट नाम के अमेरिकी मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के हवाले से मिला है, जो वॉशिंगटन में स्थित है.

जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अज़हर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा उमर इब्न खत्ताब (634-644 ईस्वी) ने अपने सभी सरदारों को हुक्म दिया था कि वो ये सुनिश्चित करें कि, ‘हर मुसलमान अपने बच्चों को तैराकी, तीरंदाज़ी और घुड़सवारी की तालीम दे.’

मसूद अज़हर के इस लेख से एक महीने पहले उसका एक पैगाम, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी हुआ था. इसमें अज़हर ने कहा था कि, ‘आज हमारे मुजाहिदीन कश्मीर, लखनऊ, दिल्ली और मुंबई में भी हैं.’

जैश-ए-मोहम्मद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान के निजाम के रोल से इनकार नहीं किया जा सकता. मसूद अज़हर का अख़बार पाकिस्तान में खुलेआम छपता और बिकता है. इसके अलावा वो पाकिस्तानी पंजाब के बहावलपुर शहर में खुलेआम अपनी गतिविधियां चलाता है. उसके संगठन का केंद्र है, उस्मान-ओ-अली-मरकज़ नाम की मस्जिद. जो जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय और ट्रेनिंग सेंटर भी है.

हर साल जैश-ए-मोहम्मद क़ुरान की जिहादी आयतों पर परिचर्चा के लिए कॉन्फ्रेंस भी करता है. इनका आयोजन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा अल-रहमत ट्रस्ट करता है.

Masood Azhar

                                                 मसूद अजहर

मसूद अज़हर ने हफ़्तरोज़ा अल-क़लाम के 6-12 जुलाई 2018 के अंक में एक और लेख लिखा था. इसमें उसने ऐलान किया था कि बहुत से लोगों ने तैराकी सीख ली है. अज़हर ने अपने लेख में लिखा कि, ‘अल्लाह को ख़ुश करने के लिए हम अपने संसाधनों से ये मुहिम शुरू कर रहे हैं. हमने कुछ इंतज़ामात भी किए हैं. अल्लाह के करम से, कई लोगों ने तैराकी सीख ली है.’ इस लेख में जैश-ए-मोहम्मद के चीफ़ ने ये भी भविष्यवाणी की कि दिसंबर 2018 से पहले एक लाख लोग तैराकी सीख चुके होंगे.

जैसे-जैसे 26/11 की दसवीं बरसी क़रीब आ रही है, वैसे-वैसे इस उर्दू साप्ताहिक में समुद्र के रास्ते जिहाद को लेकर लेख और ख़बरों की तादाद बढ़ रही है. हफ़्तरोज़ा अल-क़लाम के 13-19 जुलाई 2018 के अंक में जिहादी मुल्ला मौलाना मुहम्मद मंसूर ने लिखा कि तैराकी का हुनर क़ुदरती आफ़त के दौरान बहुत कारगर साबित होता है.

मुल्ला मंसूर ने आगे लिखा कि, ‘तैराकी, जिहादी ट्रेनिंग में भी मददगार होती है. क्योंकि किसी भी जंग में तालाब, नहर, नदी या समंदर पार करने की ज़रूरत पड़ सकती है. ये बहुत क़ुदरती बात है. आज की जंगों में सुरक्षा के लिहाज़ से समुद्री रास्तों की नाकेबंदी बहुत अहम है.’

क्या भारत को ऐसे लेखों को गंभीरता से लेना चाहिए?

हमें ये पता है कि जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अज़हर को पाकिस्तान की हुकूमत की शह हासिल है. ख़ास तौर से पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ऐसे संगठनों को ख़ूब बढ़ावा देती है. ऐसे में भारत जरा सी भी कोताही मोल नहीं ले सकता.

पाकिस्तान एयरफोर्स के पूर्व कर्मचारी और पाकिस्तान तालिबान के कमांडर अदनान राशिद ने 2013 में एक इंटरव्यू में कहा था कि जैश-ए-मोहम्मद आईएसआई की ही एक यूनिट है. अदनान राशिद ने उस इंटरव्यू मे बताया था कि जिहादियों को वहां की आर्मी, नेवी और वायुसेना की तरफ से ट्रेनिंग देने के लिए इदारत-उल-पाकिस्तान नाम की इकाई का गठन किया गया था. अदनान राशिद ने पाकिस्तान एयरफोर्स में रहते हुए जैश-ए-मोहम्मद से ट्रेनिंग ली थी. उसने बताया था कि उसके बॉस ने उससे कहा था कि, ‘हममें और जैश-ए-मोहम्मद में कोई फर्क़ नहीं है. हम वर्दी वाले सैनिक हैं और वो बिना वर्दी के फौजी.’

पाकिस्तान से जिहादी ख़तरे का एक पहलू ये है कि अमेरिका पर 9/11 के हमले और मुंबई के 26/11 आतंकी हमले में काफी हद तक समानता दिखती है. जिहादियों ने विमान अगवा करके हवाई रास्ते से अमेरिका के न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन और दूसरे ठिकानों को निशाना बनाया था. वहीं, 26/11 के हमले के दौरान आतंकियों ने जीपीएस सिस्टम से लैस नावों के ज़रिए मुंबई पर हमला किया.

इस वक़्त जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा दो सबसे बड़े आतंकी संगठन हैं, जिन्हें भारत और ख़ास तौर से कश्मीर में हमलों के लिए पाकिस्तानी हुकूमत की सरपरस्ती हासिल है. हम उस दौर में जी रहे हैं जब जिहादी संगठनों को भरपूर मदद मिल रही है. कई सरकारें ऐसे संगठनों को ट्रेनिंग देती हैं. अगर जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तान की फौज की मदद नहीं हासिल होती, तो शायद हम समुद्र के रास्ते जिहाद के उसके मंसूबों को हल्के में लेने का जोखिम उठा सकते थे.

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