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राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्‍व नहीं बल्कि इस कारण जा रहे हैं कैलाश मानसरोवर

नई दिल्‍ली। गुजरात और कर्नाटक चुनावों के दौरान मंदिरों में प्रार्थना करने के दौरान खुद को शिव का भक्‍त बता चुके राहुल गांधी 31 अगस्‍त से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रहे हैं. इस दौरान वह 10-12 दिन देश से बाहर रहेंगे. कहा जा रहा है कि वह चीन के रास्‍ते से कैलाश मानसरोवर जाएंगे. राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्‍टीकरण का आरोप लगने के बाद पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्‍व के रास्‍ते पर आई है. इस कारण ही हालिया विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी के गले में रुद्राक्ष की माला देखी गई है. उनको जनेऊधारी हिंदू कहा गया है. लेकिन इन राजनीतिक टिप्‍पणियों के बीच खुद राहुल गांधी इस तरह की धार्मिक यात्राओं के बारे में क्‍या सोचते हैं? उनके मन में कैलाश मानसरोवर की यात्रा का विचार क्‍यों पनपा? क्‍या किसी राजनीतिक हित साधने के लिए वह इस यात्रा पर निकल रहे हैं?

इसका जवाब दरअसल खुद राहुल गांधी के एक बयान में छिपा हुआ है. कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान 29 अप्रैल को वहां जन आक्रोश रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था, ”कुछ दिन पहले जब हम कर्नाटक आ रहे थे तो हमारा प्‍लेन अचानक किसी खराबी की वजह से 8000 फीट नीचे आ गया. मुझे लगा कि गाड़ी गई (अब सब कुछ खत्‍म). उसी क्षण भगवान शिव का स्‍मरण करते हुए मेरे जेहन में यह बात आई कि मुझे कैलाश मानसरोवर जाना है. इसलिए कर्नाटक चुनावों के खत्‍म होने के बाद आप लोगों से 10-15 दिनों की छुट्टी लेकर वहां जाऊंगा.”

उससे पहले 26 अप्रैल को राहुल गांधी के चार्टर्ड प्‍लेन फाल्‍कन 2000 में तकनीकी खामी आ गई थी और वह हुबली एयरपोर्ट पर पहुंचने से पहले हवा में बाईं तरफ काफी झुक गया था. उसके बाद तीसरे प्रयास में प्‍लेन नीचे उतर सका. बाद में इस मामले की जांच की गई थी. अब राहुल गांधी की यात्रा को उसी मनौती से जोड़कर देखा जा रहा है.

चुनाव से पहले धार्मिक यात्रा
इस साल के अंत में मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ और राजस्‍थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव होने हैं. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी इससे पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाना चाहते थे. अब वहां से लौटने के बाद कहा जा रहा है कि वह तत्‍काल मध्‍य प्रदेश से चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे.

कैलाश मानसरोवर यात्रा
विदेश मंत्रालय प्रत्येक वर्ष जून से सितंबर के दौरान दो अलग-अलग मार्गों- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखण्ड), और नाथु-ला दर्रा (सिक्किम) से कैलाश यात्रा का आयोजन करता है. आठ सितंबर को इस यात्रा का समापन होगा. कैलाश मानसरोवर की यात्रा (केएमवाई) अपने धार्मिक मूल्यों और सांस्कृतिक महत्व के कारण जानी जाती है. धार्मिक मान्‍यता के अनुसार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का वास है. उसके बगल में ही मानसरोवर झील है. हर साल सैकड़ों यात्री इस तीर्थ यात्रा पर जाते हैं. भगवान शिव के निवास के रूप में हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ यह जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक महत्व रखता है. इसके लिए 19,500 फुट तक की चढ़ाई चढ़नी होती है.

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