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जलपाईगुड़ी से जकार्ता: संघर्षों को सीढ़ी बनाकर उड़ी 12 उंगलियों वाली स्वर्ण परी

कोलकाता। 9 साल पहले जब पंचानन बर्मन को स्ट्रोक पड़ा तो जलपाईगुड़ी के पतकाटा में रहने वाला उनका छोटा सा परिवार पूरी तरह से टूट गया. पंचानन रिक्शा चालक थे और यहां पतकाटा घोषपाड़ा के इस परिवार के मुख्य कमाऊ सदस्य थे. जब पंचानन को स्ट्रोक पड़ा तो उनकी बेटी स्वप्ना स्कूल में थी. स्वप्ना की मां बसना को अपने पति की पूरे दिन देखभाल करने के लिए नजदीक के चाय बागान की अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. स्वप्ना के मिस्त्री भाई की छोटी सी कमाई पर ही पूरा परिवार आश्रित हो गया.

नौ साल से लेकर आज के दिन तक जलपाईगुड़ी का ये बर्मन परिवार काफी लंबा रास्ता तय कर चुका है. जिले का हर व्यक्ति आज उस रास्ते से परिचित है जो टीन के गेट वाले घर में रहने वाली उस लड़की स्वप्ना बर्मन का है जिसने भारत का पूरे विश्व के सामने सिर ऊंचा कर दिया है.

जलपाईगुड़ी जिले में प्रवेश करते ही एक गेट दिखाई देता है जो स्वप्ना को समर्पित है. जिले में एक बैंक के कस्टमर केयर सेंटर का नाम भी उनके नाम पर है ताकि आसपास के गांव के लोगों को कस्बे की शाखा में पहुंचने में कोई समस्या न हो. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वप्ना को 10 लाख का इनाम और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है. अन्य राजनीतिक लोग और कारोबारी बर्मन परिवार की मदद के लिए लाइन लगाए हुए हैं.

उल्लास से भरी बसना हंसते हुए कहती हैं कि पिछले तीन दिन से मैं हर रोज वही कहानी दोहरा रही हूं. कॉल नहीं रुक रहे हैं. जलपाईगुड़ी में उनके कच्चे-पक्के मकान के सामने मीडिया का रेला लगा हुआ है. इस घर की बेटी ने जब से इंडोनेशिया के जकार्ता में गोल्ड जीतकर इतिहास रचा है, तब से तीन दिन हो गए लेकिन देशभर से आने वाले कॉल रुक नहीं रहे हैं. इस परिवार को सांस लेने-खाना खाने तक की फुर्सत नहीं है.

जब स्वप्ना एशियाई खेल-2018 में फिनिश लाइन की ओर पहुंच रही थीं तो पूरा देश सांस रोके इस क्षण को देख रहा था. वो हेप्टाथलन जैसे मुश्किल खेल में पहले स्थान पर रहीं. स्वप्ना उस समय दांत में दर्द से जूझ रही थीं. फिनिश लाइन के पार उनका पट्टी बंधा चेहरा ऐसा दृश्य है जो लंबे समय तक देशवासियों की स्मृति में जिंदा रहने वाला है.

लेकिन स्वप्ना ने अपने इस सफर में जो कुछ झेला है, गोल्ड मेडल जीतने के बाद देश को उसकी महज झलक भर दिखी है. उनके इवेंट से पहले रात को उनके दांत में काफी तेज दर्द था. बसना कहती हैं कि उसे भयंकर दर्द हो रहा था, लेकिन मेरी बेटी की संकल्प शक्ति बहुत ज्यादा है और उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है.

22 साल की स्वप्ना के दोनों पैर में छह-छह उंगलियां हैं. अतिरिक्त उंगलियों के चलते जूते पहनना उसके लिए दर्द भरी प्रक्रिया रहती है. जलपाईगुड़ी में जहां छह नंबर से ज्यादा के जूते मुश्किल से मिलते थे, स्वप्ना को अपने चौड़े पैरों के साइज के हिसाब के जूते तलाशने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती थी. उसके जूते जल्दी फट जाते थे और बार-बार बदलने पड़ते थे. गरीबी के जंजाल में फंसे पतकाटा के इस परिवार को इस समस्या से कैसे निपटा जाये, ये नहीं पता था.

क्या उन्होंने उसकी अतिरिक्त उंगलियां सर्जरी के जरिए अलग करवाने की कोशिश नहीं की? इस सवाल पर स्वप्ना की मां का जवाब था ‘कैसे करवाती? मैं खुद एक पैर में छह उंगलियों के साथ पैदा हुई थी. मेरी वजह से ही स्वप्ना ऐसी है. मैंने काम चला लिया, हमने सोचा वो भी चला लेगी’.

हालांकि बसना ने आसानी से काम चला लिया, लेकिन स्वप्ना को अपनी ट्रेनिंग के दौरान इसके लिए काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं. उन्हें ऐसे जूतों के साथ ट्रेनिंग लेनी पड़ी जो उनके पैरों में फिट नहीं बैठते थे. उनके पैर सामान्य जूतों में फंसे रहते थे. स्वप्ना के कोच सुभाष सरकार को सारा क्रेडिट देने से पहले बसना गर्व से साथ कहती हैं, बचपन से ही स्वप्ना जो भी करती थी, पूरी लगन के साथ करती थी. वो पढ़ाई में अच्छी थी.

बसना कहती हैं हम बहुत ही गरीब लोग हैं. हमारे लिए रोजमर्रा के खर्चे चलाना भी मुश्किल है. 2011 में वो साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के टेस्ट से गुजरी. तब से वो कोलकाता में ही रह रही है. उसे क्या करना है, क्या खाना है, कहां जाना है और कब जाना है ये सब उसके कोच सुभाष सरकार ही तय करते हैं.

स्वप्ना के गोल्ड जीतने के बाद सुकांता ने एक इंटरव्यू में बताया कि मैं 2006 से 2013 तक उसका कोच था. वो बहुत गरीब परिवार से आती है, और ट्रेनिंग का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है. मैंने उसमें तब करंट देखा जब वो चौथी क्लास में थी. मैंने उसे कोचिंग देना शुरू किया.

अब पश्चिम बंगाल सरकार परिवार के साथ कैसे खड़ी हो सकती है? इस सवाल पर बसना हाथ जोड़कर कहती हैं मुझे सरकार से कुछ नहीं चाहिए. मैं कुछ नहीं मांगूंगी, जो स्वपना ने किया वो उसकी उपलब्धि है. अब ये सरकार पर निर्भर करता है कि वो इसे कैसे आंकती है और स्वप्ना को किस लायक सलझती है.

जकार्ता में गोल्ड मेडल जीतने के अगले दिन से स्वप्ना की मां हर किसी से एक ही बात कहती हैं कि प्रार्थना कीजिए कि वो ओलंपिक में भी गोल्ड जीते. ओलंपिक में अभी समय है, इस दौरान पतकाटा में उसके घर के बाहर अलग ही तैयारी हैं. घर के सामने गलत तरीके से लगा बिजली का खंभा हटा दिया गया है ताकि वहां आने वाले लोगों को घर तलाशने में कोई दिक्कत न हो. जब स्वप्ना इंडोनेशिया से लौटेगी, उसे घर तक पहुंचने के लिए पक्की रोड मिलेगी. ये वो रास्ता है जो हेप्टाथलन में देश की पहली महिला एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट के घर ले जाता है.

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