सुरेन्द्र किशोर
इन दिनों राफेल के साथ -साथ बोफर्स की भी जोरदार चर्चा हो रही है। कपिल सिबल ने गत 2 सितंबर को कहा कि राफेल मामले पर जरूरी दस्तावेज मिलने तक कांग्रेस कोर्ट नहीं जाएगी । जब कांग्रेस को ही अब तक जरूरी दस्तावेज नहीं मिल सके हैं तो हमलोग उस पर अंदाज से अभी क्या लिखें ? जब मिल जाएंगे तो हम भी लिखेंगे।
यदि वे दस्तावेज, बोफर्स के दस्तावेजों की तरह ही होंगे तो मोदी सरकार भी 2019 के चुनाव में उसी तरह उड़ जाएगी जिस तरह राजीव गांधी सरकार 1989 चुनाव में उड़ गयी थी। पर फिलहाल बोफर्स पर तो कुछ बातें कही ही जा सकती है ताकि नयी पीढ़ी उस मामले से अवगत हो जाए और किसी के भटकावे -भुलावे में न आए।
25 नवंबर, 1985 को भारत सरकार ने बोफर्स से भी बेहतर फ्रांसीसी तोप सोफ्मा के दावे को ठुकरा कर बोफर्स तोप खरीदने का निर्णय किया क्योंकि सोफ्मा कंपनी दलाली नहीं देती थी। 24 मार्च 1986-इस लिखित आश्वासन के बाद कि सौदे में कोई बिचैलिया नहीं है, भारत सरकार ने ए.बी बोफर्स से 400 तोपों की खरीद का करार किया। कुल सौदा 1437 करोड़ रुपए का था। याद रहे कि भारत सरकार की यह घोषित नीति रही है कि रक्षा सौदे में कोई दलाली नहीं दी जाएगी। 18 अप्रैल 1987-स्वीडिश रेडियो ने कहा कि करार के लिए भारतीय नेताओं और आला सैन्य अफसरों को रिश्वत दी गयी।
इस खबर पर इस देश में भारी हंगामा हुआ। वी.पी.सिंह ने 4 नवंबर 1988 को पटना में अराजपत्रित कर्मचारियों की सभा में स्विस बैंक के उस खाता नंबर को जाहिर किया जिसमें उनके अनुसार बोफर्स की दलाली के पैसे जमा किए गए थे। उस खाते का नंबर था-99921 टी यू। बाद में जब सी.बी.आई.ने बोफर्स घोटाले की जांच की तो पाया कि दरअसल उसी खाते में दलाली के पैसे जमा थे जो नंबर वी.पी.सिंह ने पटना में बताया था। 3 जनवरी, 2011 -भारत सरकार के आयकर न्यायाधीकरण ने कहा कि बोफर्स सौदे में विन चड्ढा और क्वात्रोचि को 41 करोड़ रुपए की दलाली दी गयी थी।ऐसी आय पर भारत में उन पर कर की देनदारी बनती है।याद रहे कि दलाली का यह पैसा उसी खाते में था।स्विस बैंक की लंदन शाखा में वह खाता था।
22 जनवरी 1990 -सी.बी.आई. ने बोफर्स मामले में प्राथमिकी दर्ज की। स्विस बैंक का संबंधित खाता जब्त कराया गया। 22 अक्तूबर 1999-आरोप पत्र कोर्ट में दायर किया गया। आरोपी बनाए -राजीव गांधी,पूर्व रक्षा सचिव एस.के.भटनागर,भारत में बोफर्स के पूर्व एजेंट विन चड्ढा,इटली के व्यापारी क्वात्रोचि,ए.बी.बोफर्स के पूर्व एजेंट मार्टिन आर्दबो। चूंकि तब तक राजीव गांधी का निधन हो चुका था,इसलिए कानूनन उनका नाम आरोप पत्र के काॅलम -दो में लिखा गया था। 16 जनवरी 2006 –
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सी.बी.आई. से कहा कि स्विस बैंक का जो खाता जब्त किया गया है,उसमें यथास्थिति बनी रहनी चाहिए। पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि ने लंदन जाकर क्वोत्रोचि के लिए यह संभव बना दिया कि वह उस खाते से पैसे निकाल सके।
4 फरवरी 2004-
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जे.डी.कपूर ने बोफर्स केस के आरोपितों के खिलाफ आरोपों को रद कर दिया।यानी राजीव गांधी को क्लिन चिट मिल गयी। हाई कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ अपील की अनुमति के लिए फाइल घूमती रही,इस बीच 20 मई 2004 को यू.पी.ए.सरकार सत्ता में आ गयी।
यानी साढ़े तीन महीने तक अटल सरकार अपील के लिए कोई निर्णय नहीं कर सकी।आरोप लगा कि अटल सरकार की राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति थी। और नयी सरकार ने कह दिया कि अपील का आधार नहीं बनता। 18 अगस्त 2016-पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मैंने बोफर्स की फाइलें गायब करा दी थी। जुलाई, 2017 में बोफर्स को लेकर नया खुलासा हुआ। रिपब्लिक टी.वी.के अनुसार स्वीडन के पूर्व चीफ इन्वेस्टिगेटर ने तीन दावे किए।
पहला-राजीव गांधी बोफर्स डील में गैर कानूनी तरीके से हो रहे पेमेंट के बारे में जानते थे। दूसरा-राजीव गांधी ने स्वीडिश पीएम से एक फ्लाइट में पेमेंट के बारे में चर्चा की थी। तीसरा-राजीव चाहते थे कि बोफर्स डील के बदले स्वीडिश पीएम भी फंड्स रिसीव करें। इस साल के प्रारंभ में सी.बी.आई.ने बोफर्स मामले को फिर से खोलवाने की अनुमति हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की ।सी.बी.आई.ने स्वीडन के पूर्व चीफ इन्वेस्टिगेटर के बयान को आधार बताते हुए कहा है कि सरकार ने बोफर्स केस को रफा -दफा कर दिया था। इस याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट को अब अपना निर्णय देना है।देखना है कि क्या निर्णय होता हे। हो सकता है कि तब तक कपिल सिबल को राफेल के दस्तावेज भी मिल जाएं।