नई दिल्ली। रुपये में लगातार गिरावट को थामने के लिए शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आर्थिक स्थिति की समीक्षा बैठक पर सबकी निगाहें टिक गई हैं। माना जा रहा है कि रुपये को मजबूत बनाने के लिए वर्ष 2013 में ऐसे ही संकट के वक्त उठाए गए कदमों पर विचार कर सकती है।
कच्चे तेल में भारी उछाल और व्यापार घाटा बढ़ने से रुपया अगस्त 2013 में 69 रुपये तक गिर गया था। जबकि जून में यह 57.50 रुपये था। भारतीय मुद्रा में करीब 20 फीसदी गिरावट के बाद सरकार ने चार बड़े उपायों को अपनाया था। तब आरबीआई ने भारतीय मुद्रा में स्थिरता लाने के लिए घरेलू बाजार में पूंजी के प्रवाह को कई कदमों के जरिये बढ़ाया था। इसमें नीतिगत ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला भी शामिल था, हालांकि इससे होम लोन, वाहन लोन आदि की ईएमआई बढ़ी थी। इसके अलावा बैंकों द्वारा आरबीआई से कम अवधि का उधार लेने के लिए दैनिक पूंजी प्रवाह की एक सीमा निर्धारित की जा सकती है।
एक अन्य उपाय के तौर पर डॉलर जुटाने के लिए एनआरआई बॉंड जारी करने पर भी विचार हो सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि इन कदमों का रुपये पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ का कहना है कि बाजार आरबीआई की ओर से ठोस निर्णयों का इंतजार कर रहा है। गौरतलब है कि आर्थिक समीक्षा के संकेतों के बीच ही रुपया दो दिन में काफी सुधरा है।
इन दो कदमों का बड़ा असर पड़ा था
सरकार ने तब तेल विपणन कंपनियों के लिए डॉलर में भुगतान के लिए स्पेशल विंडो का इंतजाम किया था। इससे तेल कंपनियों के लिए डॉलर की जरूरतें पूरी हुईं और रुपये पर भारी दबाव कम हुआ था। दूसरा बड़ा बदलाव अनिवासी भारतीयों के लिए विदेशी मुद्रा की जमा नीति यानी एफसीएनआर थी। इससे बैंकों को डॉलर में जमा बढ़ाने की इजाजत दी गई और इसे आरबीआई से कम दरों पर बदलने की सुविधा दी गई। इससे रुपये में काफी हद तक सुधार आया।