नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इंकार कर दिया. यही नहीं, न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी की जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन से भी इंकार कर दिया है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले में इन कार्यकर्ताओं की तुरंत रिहाई की मांग करने वाली याचिका को ठुकरा दिया गया, लेकिन न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ ने इससे असहमति व्यक्त करते हुए अलग फैसला सुनाया.
पुलिस ने मीडिया का इस्तेमाल किया- जस्टिस चन्द्रचूड़
जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि ये केस मीडिया ट्रायल का है. पुलिस ने मीडिया का इस्तेमाल किया है. यह गिरफ़्तारी दुर्भाग्यवश है. जांच के लिए SIT गठन किया जाना चाहिए.
2:1 के बहुमत से आया फैसला
दरअसल, इस केस में न्यायमूर्ति ए. एम खानविलकर ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और अपनी ओर से बहुमत का निर्णय सुनाया, लेकिन ने इससे असहमति व्यक्त करते हुए अपने निर्णय में अलग राय दी. प्रमुख इतिहासकार रोमिला थापर और कुछ अन्य लोगों ने पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों को चुनौती दी थी.
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव केस में सुनवाई करते हुए मामले में गिरफ्तार किए गए पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं की नजरबंदी को 4 सप्ताह के लिए बढ़ा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि आरोपी खुद जांच एजेंसी नहीं चुन सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने यह सुनवाई की.
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपियों को राहत चाहिए तो उन्हें ट्रायल कोर्ट जाना होगा. न्यायालय ने मामले की एफआईआर रद्द करने से भी मना कर दिया. साथ ही पुणे पुलिस को मामले की जांच आगे बढ़ाने को कहा है. बता दें कि पांचों आरोपी वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं.