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क्या प्रिया दत्त कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में शामिल हो जाएंगी?

नई दिल्ली। यह बात शुरु हुई थी 10 सितंबर को. मुंबई में कांग्रेस के नेता भारत बंद के लिए सड़कों पर उतरे थे. मुंबई शहर के कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम समर्थकों के साथ दुकानें बंद करवा रहे थे. लेकिन कांग्रेस की हाई प्रोफाइल नेता और पूर्व सांसद प्रिया दत्त शहर के एक मॉल में शॉपिंग कर रही थीं.

यह बात मुंबई में ही खत्म हो जाती, लेकिन प्रिया दत्त के सियासी विरोधियों ने उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल कर दीं. दिल्ली में 24 अकबर रोड तक इसके सबूत भेजे गए. महाराष्ट्र के नए प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे जब मुंबई पहुंचे तो उनके सामने भी प्रिया दत्त की शिकायतों का पुलिंदा पेश किया गया. प्रिया को अंदाज़ा नहीं था कि सुनील दत्त और सोनिया गांधी के बीच का पारिवारिक रिश्ता राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद इतनी आसानी से टूट जाएगा.

प्रिया दत्त के एक करीबी दोस्त बताते हैं, ‘सुनील दत्त की बेटी को कांग्रेस ने सचिव पद से हटाकर कुछ पाया नहीं खोया ही है. प्रिया के लिए सेक्रेटरी का पद कभी मायने नहीं रखता था. वो अपनी पुरानी सीट मुंबई उत्तर-मध्य से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थीं. लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस इस सीट से उन्हें उम्मीदवार भी नहीं बनाना चाहती.’

26 सितंबर को प्रिया दत्त को एआईसीसी के सचिव के पद से हटा दिया गया. ऐसा क्यों किया गया इसकी पूरी वजह समझने के लिए मुंबई कांग्रेस की पुरानी बीमारी को जानना जरूरी है. दरअसल इस वक्त मुंबई में तीन गुट एक्टिव हैं – पहला और सबसे ताकतवर गुट मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरुपम का है, दूसरा मिलिंद देवड़ा का और तीसरा प्रिया दत्त का. निरुपम खुद प्रिया दत्त की सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. वे एक बार शिवसेना के टिकट पर सुनील दत्त के खिलाफ चुनाव लड़कर हार भी चुके हैं. उस वक्त संजय निरुपम ने बहुत कुछ ऐसा कहा था जिससे सुनील दत्त बेहद आहत हुए थे. प्रिया दत्त भी आज तक उन शब्दों को भुला नहीं पाई हैं. इसलिए उनके करीबी कहते हैं कि अगर कांग्रेस ने प्रिया की पुरानी सीट से संजय निरुपम को टिकट दिया तो वे शिवसेना में भी शामिल हो सकती हैं. वैसे भी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे से प्रिया दत्त की अच्छी दोस्ती है और ठाकरे परिवार उन्हें पार्टी में लाने की पूरी कोशिश कर रहा है.

मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम के करीबी नेताओं की सुनें तो वे प्रिया दत्त पर पार्टी में ‘धेला भर का काम’ न करने का आरोप लगाते हैं. सबूत के तौर पर वे प्रिया दत्त की अलग-अलग तस्वीरें दिखाते हैं जिनमें वे अपने परिवार के साथ छुट्टियां मना रही हैं या पार्टी कर रही हैं. वे कहते हैं कि संजय निरुपम सड़क पर पसीना बहा रहे हैं जबकि प्रिया पार्टी की ऑल इंडिया सेक्रेटरी होने के बावजूद किसी बड़े कार्यक्रम में सड़कों पर नहीं उतरतीं.

इन आरोपों का जवाब प्रिया के करीबी भी अपने अंदाज़ में देते हैं. उनका कहना है, ‘मुंबई उत्तर-मध्य सीट देश की सबसे हाईप्रोफाइल सीट है. देश के जितने सुपरस्टार हैं वे सब यहीं के वोटर हैं. बड़े-बड़े कॉरपोरेट यहीं रहते हैं. प्रिया दत्त सड़क पर नहीं उतरतीं क्योंकि उन्हें सड़क पर उतरने की जरूरत नहीं हैं.’

दिल्ली से मुंबई के लिए जो फैसला हुआ उसने संजय निरुपम को खुश कर दिया लेकिन उनके विरोधी इससे बेहद नाराज़ हैं. मुंबई में संजय निरुपम को हटाने के लिए पूरा कैंपेन चलाया जा रहा था. पहले इस विरोधी गुट की कमान गुरुदास कामत के हाथों में थी और अब यह काम मिलिंद देवड़ा संभालते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे जब मुंबई गए तो मिलिंद देवड़ा को मुंबई अध्यक्ष बनाने की मांग उठी थी. खड़गे ने दिल्ली तक यह मांग पहुंचाई भी. लेकिन राहुल गांधी के करीबी नेताओं ने फैसला किया है कि अब कांग्रेस को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो पार्टी को अपना ‘फुल टाइम’ दें. प्रिया दत्त का सचिव पद से हटना और मिलिंद देवड़ा का मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष न बनना कांग्रेस की इसी नई रणनीति का हिस्सा है. राहुल गांधी ने तय किया है कि ‘पार्ट टाइम राजनेताओं’ को पार्टी में महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जाएगा.

24 अकबर रोड पर बैठने वाले एक बड़े नेता कांग्रेस की इस नई नीति को कुछ इस तरह समझाते हैं, ‘पहले कांग्रेस के सभी बड़े नेता पार्ट टाइम राजनीति करते थे. इनमें से कोई बड़ा वकील था तो कई प्रोफेसर. जब हम विपक्ष में होते थे तो अपने-अपने पेशे पर ध्यान देते थे और जब सत्ता में होते थे तो मंत्री या सांसद बनकर सरकार का हिस्सा होते थे. लेकिन अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के जमाने की भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस को भी बदलना पड़ रहा है. ऊपर से ही तय हुआ है कि अब ऐसे नेताओं की फौज तैयार हो जो किसी भी वक्त कहीं भी जाने के लिए तैयार हों. जिनके लिए पार्टी पहली प्राथमिकता हो. जो नेता 24 अकबर रोड से भेजे गए आदेश को फौरन नहीं मानेगा वो पार्टी में तो रह सकता है लेकिन पद पर नहीं.’

अगले लोकसभा चुनाव में भी उन्हीं नेताओं को मौका मिलेगा जिन्होंने अपना पूरा वक्त पार्टी को दिया है. यही वजह है कि मुंबई में अब प्रिया दत्त से ज्यादा अहमियत संजय निरुपम, प्रियंका चतुर्वेदी और पुराने जमाने की अभिनेत्री नगमा की हो गई है. लेकिन मुंबई की सियासत को समझने वाले कांग्रेस के करीबी एक पत्रकार इसे बड़ी गलती मानते हैं. वे कहते हैं, ‘मुंबई की छह लोकसभा सीटें इस बार कांग्रेस जीत सकती है क्योंकि शिवसेना ने मूड बना लिया है कि वह यहां की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.

प्रिया दत्त की मुंबई उत्तर-मध्य सीट कांग्रेस के लिए हमेशा से सबसे मजबूत सीट मानी जाती रही है. 2014 में भी भाजपा को यह सीट जीतने की उम्मीद नहीं थी. प्रिया दत्त को हराने के लिए उसने फिल्म अभिनेता विवेक ओबराय से लेकर अजय देवगन तक को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन जब कोई फिल्म स्टार तैयार नहीं हुआ तो विधानसभा चुनाव हार चुकीं प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन को चुनाव लड़ाया गया और मोदी लहर में वे चुनाव जीत गईं. लेकिन अगर इस बार कांग्रेस नेता आपस में ही लड़ते रहे तो शिवसेना उन कांग्रेस नेताओं को टिकट देगी जो बागी बनने के लिए तैयार हैं.

बाल ठाकरे ने एक बार संजय दत्त को जेल से बाहर निकालने के एवज में सुनील दत्त को चुनाव न लड़ने के लिए मनाया था. इस बार बाल ठाकरे के पोते आदित्य ठाकरे उनकी बेटी को शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए मनाने निकले हैं.

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