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मुकेश की कहानी: ऐसे बने ATM गार्ड से राजस्थान सिविल सर्विसेज के टॉपर

जयपुर। अक्सर जब हम जिंदगी में असफल हो जाते है तो हालातों को दोष देते है, लेकिन वो कहते है न कि अटल हौसलों से बड़े से बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है एटीएम गार्ड की नौकरी करने वाले मुकेश कुमार सैनी ने. जयपुर के खेतडी में रहने वाले मुकेश ने विपरित हालातों में भी आरपीएससी में कॉलेज व्याख्याता एक्जाम में राजस्थान में टॉप किया.

एमए में हुए फेल, लेकिन नहीं छोड़ी उम्मीद
बबाई की ढाणी निवासी मुकेश गांव के सबसे गरीब परिवार में गिने जाते थे. इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता पढाई नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से परिवार को सक्षम बनाना था. इसलिए पहले तो जयपुर डेयरी में कैशियर की नौकरी की, फिर उन्होंने दो साल तक एटीएम गार्ड की नौकरी. लेकिन नौकरी के साथ-साथ मुकेश ने कभी पढाई नहीं छोडी. एक वक्त तो ऐसा भी आया जब वे एमए की परीक्षा में फेल हो गए. उन्हें 500 में से सिर्फ 70 अंक हासिल हुए. एमए में फेल होने के बाद मुकेश के सामने परिवार को समझाने की बड़ी चुनौती थी.

आठवीं बार में मिली कामयाबी
इसके बाद उन्होंने लगातार संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी. मुकेश ने दोबारा से एमए की परीक्षा दी. इसके बाद नेट, पीएचडी तक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन आरपीएससी की परीक्षा पास करने का सपना अधूर रह गया. हालांकि सात बार नाकामयाबी मिलने के बाद भी मुकेश ने हार नहीं मानी और आठवीं बार में उन्हें आरपीएससी की परीक्षा में सफलता मिली और उन्होंने पूरे राजस्थान में टॉप किया.

पत्नी ने हर कदम पर दिया साथ-मुकेश
इस कामयाबी के पीछे सबसे ज्यादा श्रेय उनकी पत्नी वंदना सैनी और लेक्चरर निधि मेहता को जाता है,जिन्होंने हर मुश्किल घडी में उनका साथ दिया.आरपीएससी टॉपर मुकेश सैनी की जब वंदना के साथ शादी हुई तब भी कई सवाल उठे. क्योकि वंदना समाज कल्याण अधिकारी थी और मुकेश उन्ही के विभाग में उनसे नीचे पोस्ट पर छात्रावास अधीक्षक के पद पर पोस्टेट थे. लेकिन शादी के बाद वंदना ने मुकेश को कभी कमजोर नहीं समझा. मुकेश का कहना है कि मेरी कामयाबी के पीछे सबसे ज्यादा श्रेय मेरी पत्नी को जाता है, क्योंकि उन्हें ये लगता था कि मुझे अच्छा मुकाम जरूर हासिल होगा. इसके साथ ही गांव का मैं सबसे गरीब परिवार का बेटा था, लेकिन मेरी कामियाबी के बाद अब ये साबित होता है कि गरीबी और आर्थिक कमजोरी किसी भी कामियाबी को कमजोर नहीं करती. इसके साथ ही वे अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी टीचर निधि मेहता को देना चाहते है, क्योंकि हर कामयाबी के पहले गाइड की जरूरत होती है, जो कि डॉ निधि मेहता ने किया.

जबकि डॉ निधि मेहता इस कामियाबी का श्रेय मुकेश की मेहनत को दिया है. डॉ निधि का कहना है कि वे अपनी जिंदगी में असफल तो हुए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. मैं इस बार से गौरवान्वित हूं कि मैने उसे गाइड किया, बाकी सारी मेहनत मुकेश की है. उनका कहना है कि कडी मेहनत और लगन के साथ उन्होंने ये मुकाम हासिल किया है.

मुकेश ही नहीं बल्कि उनके भाई ने भी कुछ ऐसा मुकाम हासिल किया है. मेहनत,मजदूरी कर कडे संघर्ष के बीच मुकेश के भाई राजेश भी सीआरपीएफ में सहायक कमांडेट की पोस्ट पर जम्मू कश्मीर में पोस्टेड है. इस कामियाबी के पीछे सबसे ज्यादा योगदान उनकी मां और पिता का रहा है. माता पिता के सम्मान के साथ साथ उन्होंने हर मोड पर परिवार को सहारा दिया,जिसका नतीजा यही रहा कि कामियाबी ने उनके कदम चूमे.

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