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पहले IS से मिला बलात्कार का दर्द, फिर बच्चों को छोड़ने के लिए मजबूर यजीदी महिलाएं

दाहुक (इराक)। 26 साल की एक यजीदी महिला का परिवार नये सिरे से जीवन की शुरूआत करने के लिए इराक से ऑस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर रहा है लेकिन यह महिला चाहते हुए भी अपने परिजनों के साथ नहीं जा सकती.  इसका कारण, उसकी दो साल की बिटिया मारिया है जिसे महिला का परिवार अपने साथ कभी नहीं रखेगा. इस महिला के साथ आईएस के लड़ाकों ने बलात्कार किया था जिसके बाद मारिया का जन्म हुआ. महिला के एक रिश्तेदार ने देखभाल करने का वादा कर मारिया को ले लिया और उसे बगदाद के एक अनाथालय में डाल दिया. यजीदी महिलाओं की कहानी कुछ इसी तरह की है. विस्थापित यजीदियों के लिए उत्तरी इराक में बने एक शिविर में रह रही इस महिला ने बताया ‘‘उसे (मारिया को) छोड़ने की बात बेहद टीस देती है.

वह मेरे कलेजे का टुकड़ा है लेकिन मैं नहीं जानती कि क्या करूं. ’’ पहचाने जाने के डर से यह महिला खुद को उम्म मारिया (मारिया की मां) कहती है.  इस्लामिक स्टेट के कहर ने यहां यजीदी समुदाय के लोगों का जीवन तबाह कर दिया है.  सैकड़ों पुरूषों और लड़कों को मार दिया गया, हजारों अपने घर छोड़ कर चले गए. उग्रवादियों ने महिलाओं को यौन गुलाम बना लिया. सामान की तरह उन्हें खरीदा और बेचा गया.

यौन उत्पीड़न की शिकार इन महिलाओं में से कई अब मां बन चुकी हैं.  इस वर्ष शांति के लिए नोबेल पुरस्कार नादिया मुराद को देने की घोषणा जब हुई तब यौन उत्पीड़न के पीड़ितों खास कर, आईएस के कहर से पीड़ित यजीदियों की दर्दनाक दास्तां की ओर दुनिया का ध्यान गया. इराक और सीरिया से आईएस के सफाये के बाद लोग अपने घरों को लौटने लगे हैं. कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो बलात्कार के बाद पैदा हुई संतानों को साथ नहीं रखना चाहतीं.

लेकिन कुछ ऐसी संतानों को छोड़ना भी नहीं चाहतीं. यह अलग बात है कि ज्यादातर यजीदी परिवार ऐसी संतानों को अक्सर ठुकरा ही देते हैं. यजीदी समुदाय में आम तौर पर गैर यजीदी पिता की संतान अस्वीकार कर दी जाती है. यह समुदाय आज भी इस परंपरा पर कायम है. त्रासदी तब और भयावह रूप ले लेती है जब पिता वही सुन्नी मुस्लिम कट्टरपंथी हो जो यजीदी समुदाय का नामो.निशान मिटाना चाहता था.

इराकी कानून के तहत, बच्चों को मुस्लिम माना जाता है. बहरहाल, महिलाओं के प्रति यजीदी समुदाय ने प्रगतिशील रूख अपनाया है.  यजीदी आध्यात्मिक नेता बाबाशेख खिरतो हदजी इस्माइल ने 2015 में एक आदेश जारी किया कि उग्रवादियों के हाथों यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाएं ‘‘पवित्र’’ ही मानी जाएंगी. इस आदेश की वजह से यजीदी समाज में महिलाओं की सम्मानजनक वापसी की राह तो बन गई लेकिन बच्चों के लिए कुछ नहीं हुआ.

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