रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक राज बब्बर के नक्सलियों को क्रांति से निकले लोग बताने वाले बयान ने पार्टी नेताओं को बैकफुट पर ला दिया है तो वहीं बीजेपी को एक बार फिर कांग्रेस पर राजनीतिक फायदे के लिए नक्सलियों के साथ खड़े होने का आरोप लगाने का मौका मिल गया.
दरअसल राजधानी रायपुर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपी कांग्रेस के प्रमुख राज बब्बर ने नक्सलवाद पर एक सवाल के जवाब में कहा कि गोलियों से मसले हल नहीं होते. उनके सवालों का उत्तर देना पड़ेगा, और उनको डरा कर या लालच देकर क्रांति के जो लोग निकले हुए हैं उनको रोका नहीं जा सकता. उन्होंने आगे कहा कि वो लोग अभाव में है, जिनका अधिकार छीना गया है. वे लोग अपने अधिकार के लिए प्राणों की आहुति दे रहे हैं. वो हिंसा करके गलती कर रहे हैं, क्योंकि गोलियों से हल नहीं होता है. न इधर की बंदूक से हल निकलेगा न उधर की बंदूक से हल निकलेगा. अगर हल निकलेगा तो बातचीत से ही निकलेगा.
#WATCH Goliyon se faisle hal nahi hote.Unke sawaal ko address karna padega, aur unko darra kar, ya lalach dekar kranti ke jo log nikle huye hain unhe rok nahi sakte hain. Na idhar ki bandook se hal niklega na udhar ki, baatcheet se hal niklega:Raj Babbar in Raipur (3.11) pic.twitter.com/7A2VeA3hzk
— ANI (@ANI) November 4, 2018
राज बब्बर के इस बयान पर आपत्ति दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा है कि राजनीतिक फायदे के लिए कांग्रेस पार्टी की हमेशा से माओवादियों के प्रति सहानुभूति रही है. गौरतलब है कि कांग्रेस नेता का यह बयान तब आया है जब हाल ही में दंतेवाड़ा के घने जंगलों में कॉम्बिंग ऑपरेशन पर निकले सुरक्षाबलों पर हुए माओवादी हमले में एक सब इंस्पेक्टर, एक कॉन्सेटबल और डीडी न्यूज के कैमरामैन अच्युतानंद साहु शहीद हो गए. इस नक्सली हिंसा में माओवादियों की गोलियों का शिकार पत्रकार साहू की खबर से पूरा देश में शोक की लहर मे डूब गया था और जगह-जगह नक्सल हिंसा की निंदा करते हुए कैंडल मार्च निकले थें.
बता दें कि छत्तीसगढ़ में चुनावों से पहले नक्सली हिंसा बढ़ गई है. पिछले हफ्ते ही राज्य में दो नक्सली हमले हुए हैं, तो वहीं चुनाव में हिस्सा न लेने के लिए नक्सलियों की धमकी की खबरे भी रोजाना आ रही हैं. हाल के महीनों में सुरक्षाबलों ने नक्सल विरोधी अभियान में भी कई बड़ी कामयाबी हासिल की है, जिसमें कई माओवादी या तो मार गिराए गए या तो उन्हें सरेंडर के लिए मजबूर होना पड़ा.