सुशील दोषी
मिताली राज को वर्ल्डकप टी-20 के सेमीफाइनल में भारतीय टीम में शामिल नहीं किए जाने व उसके बाद भारतीय टीम की पराजय ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को झकझोर दिया है. यह देखकर भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का अपना दर्द भी उभर आया. वे भी तब तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के षड्यंत्रों का शिकार हुए थे, जब अपने शीर्ष फॉर्म में थे और भारतीय क्रिकेट के कप्तान भी थे. ‘प्रतिभाशाली उपेक्षित लोगों की टीम में मिताली आपका भी स्वागत है’, कहकर सौरव ने अपना दर्द प्रकट किया. मेरे एक शिक्षक अक्सर कहते थे कि अगर आप प्रतिभाशाली हैं तो संभलकर चलना. लोग नाराज हो जाएंगे. क्रिकेट में खनकते पैसे, ललचाने वाले बड़े-बड़े अद्भुत लोकप्रियता व व्यावसायिक ताकत ने जोड़-तोड़ करने वालों के लिए एक नया क्षेत्र खोलकर दे दिया है.
क्या आप सोच सकते हैं कि सचिन तेंदुलकर या सुनील गावस्कर को कोई अपने जमाने में टीम से बाहर कर सकता था. कदापि नहीं. क्योंकि ये खिलाड़ी अपने समय के दुनिया के सर्वमान्य शीर्ष खिलाड़ी थे. मिताली राज भी आज महिला क्रिकेट की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं. कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उन्हें टीम से बाहर निकाला जा सकता है. मैं तो मिताली को महिला क्रिकेट की गावस्कर कहता हूं. उन्हें आउट करने में दुनिया के श्रेष्ठतम गेंदबाजों को भी पसीना आ जाता है. फिर वह अच्छे फार्म में भी थीं. इसी विश्व कप में उनके दो अर्धशतक थे. वे तेज गति से भी रन बना रही थीं. अत: रनों की रफ्तार के मामले में उनकी शिकायत नहीं की जा सकती थी.
यह तो साफ हो गया कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम गुटबाजी की शिकार हो गई है. कप्तान हरमनप्रीत कौर ऑस्ट्रेलिया में टी20 में चमत्कारिक प्रदर्शन करती रही हैं और अपने आप को शायद मिताली राज के मुकाबले बड़ा सितारा मान रही हैं. यह ‘ईगो’ की समस्या है. फिर अनुबंधों के आधार पर भी छोटे-बड़े का भेद हो गया है. रुपया लालचियों को जोड़ता भी है और तोड़ता भी है. हरमनप्रीत व मिताली राज विज्ञापनों की दुनिया में छाने लगी हैं. विज्ञापनों की बढ़ती कीमतों ने भी उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता का काम किया है. आश्चर्य तो यह है कि रमेश पोवार जैसे प्रशिक्षक और दौरे की चयनकर्ता सुधा शाह ने भी स्थिति संभालने की कोशिश नहीं की. यह देखते हुए कि इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में भारतीय टीम ने आखिरी आठ विकेट 22 रन पर खो दिए व टीम को करारी हार का सामना करना पड़ा, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि तकनीकी रूप से सक्षम बल्लेबाजों की कमी रही. भारतीय टीम इस मैच में 20 ओवर भी बैटिंग नहीं कर सकी.
इस मामले में उछाल तब आया जब अपने आप को मिताली राज की मैनेजर कहने वालीं अनीता गुप्ता ने ट्वीट करके भारतीय कप्तान हरमनप्रीत पर हमला बोल दिया. बाद में अनीता ने वह ट्वीट हटा लिया. हालांकि, अच्छा यह होता कि अगर मिताली राज स्वयं स्थिति स्पष्ट करतीं. उनकी तथाकथित मैनेजर लांछन लगाएं, यह तो उचित नहीं होता. अब यह मामला महिला क्रिकेट को देख रहे बीसीसीआई के सबा करीम के पास पहुंच गया है. यहां मिताली, मैनेजर, प्रशिक्षक, हरमनप्रीत अपना-अपना पक्ष रखेंगी.
तर्क-वितर्क, कुछ भी चलते हों, यह तो स्पष्ट है कि आपसी अहंकार व गुटबाजी ने भारतीय क्रिकेट को बड़ा नुकसान किया है. अगर आपने कोई गलत निर्णय ले लिया, तो उसकी वितर्क के साथ वकालत करने के बजाय गलती को स्वीकार करना उचित होता है. पर हरमनप्रीत तो अपने फैसले को जायज करार देने में ही जुटी रहीं. इससे यह भी जाहिर हो गया कि मिताली की उपस्थिति उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के बीच उत्पन्न अहंकार ने दोनों को नुकसान किया ही है, भारतीय क्रिकेट को भी घायल किया है. दुनिया इसका तमाशा देख रही है.
एक बात यह भी समझ लेनी चाहिए कि मैनेजर, प्रशिक्षक व चयनकर्ता भी केवल कप्तान के इशारे पर चलने के लिए मजबूर होते हैं. खिलाड़ी कायम रहता है, पर मैनेजर, प्रशिक्षक व चयनकर्ता तो बदलते रहते हैं. फिर इनके पारिश्रमिकों में भी इतना अंतर रहता है कि कुछ हीन भावना आ ही जाती होगी. बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा को भी भारतीय बैडमिंटन संघ व खिलाड़ियों की गुटबाजी ने बड़ा परेशान किया था. अब दुनिया की महान महिला क्रिकेट खिलाड़ी मिताली राज के साथ हो रहे अन्याय ने हम सबको हिलाकर रख दिया है. यह भी साफ हो गया है कि चयन में प्रतिभा एकमात्र मापदंड नहीं है.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)