साधो यह है मूढ़ मति का देश… योगी आदित्यनाथ ने जब अली के प्रसंग में बजरंग बली और दलित के प्रसंग में हनुमान का जिक्र किया तो स्वाभाविक रूप से यही पंक्ति योगी का स्वरूप लेकर मन में आई और अपने ही चेतन में बार-बार प्रतिध्वनित होती रही. योगी आदित्यनाथ साधु हैं. संन्यासी हैं. कोई और नेता ऐसा कहता तो उसे ऐरा गैरा नत्थू खैरा समझ कर टाल देता, लेकिन साधु-संत सत्ता लिप्सा में इतना लिप्त हो जाए कि देवी-देवताओं को भी वोट के तराजू पर तौलने लगे, तो आप समझ लें हमारा देश-समाज किस निम्नता के दौर में है कि जो भी राजनीति में गया, ऐरा गैरा और नत्थू खैरा ही हो गया. अभी कुछ दिन पहले बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन जी से मुलाकात हुई तो बिहार के मौजूदा बुद्धिजीवियों के बौद्धिक-स्तर को लेकर भी चर्चा हुई. शिक्षा, संस्कार, अकादमिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों में शीर्ष पर स्थापित रहे बिहार के वर्तमान शैक्षणिक स्तर को लेकर हैरत और चिंता स्वाभाविक है. इस आश्चर्य और चिंता को साथ लेकर चलते हुए हमें इस बात का भी अहसास रहना चाहिए कि सर्वोत्कृष्ट-बौद्धिकता का सात्विक आनंद जब हम प्राप्त कर चुके तो निकृष्ट-बौद्धिकता का रस भी हमें ही लेना होगा. सिक्के का एक पहलू तब था, उसी सिक्के का दूसरा पहलू अब है. दर्शन भी यही कहता है कि सुपर-इंटेलिजेंस और सुपर-इडियॉसी दोनों पहलू साथ-साथ ही रहते हैं, ऊपर-नीचे… उस कालखंड में सिक्का उस तरफ था तो इस कालखंड में सिक्का इस तरफ है. दर्शन का यह प्रसंग हजरतअली-बजरंगबली और दलित-हनुमान के योगी-उवाच पर फिर से जिंदा हो उठा. सिक्के के दूसरे पहलू का दौर पूरे देश को ग्रस रहा है, योगी का कथन हमें यही बताता है.
योगी यह कह सकते हैं कि उनके वक्तव्य को संकेतों में ग्रहण करना चाहिए, लेकिन इसके पहले उन्हें देश के लोगों को यह बताना होगा कि वोट के नफा-नुकसान के भौतिक मोलभाव में वे ईश्वर का इस्तेमाल क्यों करते हैं? इस तुलना में उन्होंने तुलना की पात्रता और मर्यादा भी ताक पर रख दी, इसका क्या औचित्य है? हनुमान ऐसे देवता हैं जो सम्पूर्ण जीव-जगत को मनोबल देते हैं. सम्पूर्ण जीव-जगत को ‘बूस्ट’ करते हैं. सम्पूर्ण जीव-जगत की हीन भावना हरते हैं. इस जीव-जगत में केवल मनुष्य नहीं आते, इसमें चेतन शरीर, जीव शरीर और जड़ शरीर सब आते हैं. हनुमान इस समग्र जीव-जगत के देवता हैं, एक जाति नहीं हैं. इसलिए हनुमान को दलित कहना या उन्हें ब्राह्मण कहना या किसी जीव-शरीर की श्रेणी में रखना चरम मूर्खता या अवसरवादिता की चरम-चतुराई के सिवा कुछ नहीं है. देवता परम् ब्रह्म का लौकिक रूप हैं. उन्हें ईश्वर का सगुण रूप भी कह सकते हैं. उन्हें जाति, धर्म, वर्ण की क्षूद्रता में बांधना हीनता और मक्कारी की सनद है. हनुमान शिव के 11वें रूद्रावतार हैं. ऐसी परम-विराटता को चरम-संकीर्णता में बांधने का वक्तव्य है हनुमान को किसी मनुष्य-जनित जाति का प्रतिनिधि कहना.
राजस्थान की चुनावी सभा में हनुमान को दलित कहने वाले योगी आदित्यनाथ मध्यप्रदेश की चुनावी सभा में बजरंग बली को अली के समतुल्य रखने की धृष्टता भी कर चुके हैं. मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली (अली इब्ने अबी तालिब) देवतुल्य हैं, सम्माननीय हैं. लेकिन हजरत अली परा-प्राकृतिक नहीं हैं. बजरंग बली परा-प्राकृतिक हैं, परा-भौतिकीय हैं. हजरत अली 14 सौ साल पहले (13 मार्च 600) को पैदा हुए और सन् 661 में शहीद कर दिए गए. ज्योतिषीय गणना बताती है कि बजरंग बली का जन्म करीब एक करोड़ 85 लाख 58 हजार 115 वर्ष पहले त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था. शरीर बज्र की तरह होने के कारण उन्हें बजरंग बली कहा गया. प्रकृति ने देवताओं के जिन सात लौकिक रूपों को अमरत्व का वरदान दिया, उनमें अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और हनुमान हैं. अमर्त्य बजरंग बली का मर्त्यलोक के महापुरुष हजरत अली से तुलना करना योगी आदित्यनाथ की संन्यासिक सीख के प्रति संदेह का भाव जाग्रत करता है.
योगी आदित्यनाथ शैव मत के प्रतिनिधि संन्यासी हैं. योगी आदित्यनाथ गोरक्षधाम (गोरखधाम) शैव-पीठ के मुख्य महंत भी हैं. शैव मतावलंबी शिव को इष्ट मानते हैं और वैष्णव मतावलंबी विष्णु को. हनुमान भगवान शिव के 11वें अवतार हैं, यह जानते हुए भी शैव मत के प्रतिनिधि संन्यासी योगी आदित्यनाथ ने पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से में रहने वाले जातियों में खंडित समुदाय के किसी एक समूह से हनुमान को कैसे जोड़ दिया? यह घोर आश्चर्य और दुख का विषय है. राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को किसी भी स्तर तक गिरा देती है, यह आधुनिक-भारत के लोगों का अनुभव तो है, लेकिन बहुत सात्विक उम्मीदों से सत्ता पर स्थापित किए गए साधु-संन्यासी योगी भी ऐसी ही ‘सद्गति’ को प्राप्त होंगे, इसकी लोगों को कल्पना भी नहीं थी…
योगी का कथन… परम-विराटता को चरम-संकीर्णता में बांधने का अनैतिक वक्तव्य
प्रभात रंजन दीन