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CM भले ही नहीं बन सके, पर शिवराज सिंह चौहान ने तोड़ डाला 38 साल पुराना मिथक

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के चुनावी नतीजों में बीजेपी ने 109 सीटें जीती हैं जबकि सरकार बनाने जा रही कांग्रेस को 121 विधायकों का समर्थन हासिल है. उधर, बीजेपी को बहुमत न मिलने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं. हालांकि चौहान को अपनी बुधनी सीट से जीत हासिल हुई है. सूबे की हाईप्रोफाइल बुधनी विधानसभा सीट से जुड़ा मिथक है कि अब तक के चुनाव में जिस भी पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीतता था, सूबे में उसी की सरकार का गठन होता था. मगर इसर बार यह मिथक टूट चुका है.

दरअसल, 1980 में कांग्रेस के केएन प्रधान बुधनी विधानसभा से विधायक बने और उसी पार्टी के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद 1985 में कांग्रेस के ही चौहान सिंह की जीत हुई और एक बार फिर उसी पार्टी की सरकार बनी.

पत्नी साधना सिंह और बेटे कुणाल के साथ फुर्सत के लम्हों में शिवराज सिंह चौहान.

पहली बार शिवराज जीते
इसके बाद बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान वर्ष  1990 में चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने जीत हासिल की. इस दौरान सुंदरलाला पटवा के नेतृत्व में सूबे में बीजेपी ने सरकार बनाई. CM की कुर्सी से उतरते ही शिवराज सिंह चौहान बन गए ‘द कॉमन मैन ऑफ मध्य प्रदेश’

दिग्विजय सरकार बनी
1993 में कांग्रेस के राजकुमार पटेल बुधनी से विधायक बने और राज्य में दिग्विजय सिंह की सरकार बनी. इसके बाद देव कुमार पटेल जीते और फिर से उन्हीं की पार्टी कांग्रेस के नेता दिग्विजय दूसरी बार सीएम बने. 2003 के चुनाव में लग रहा था कि यह मिथक टूट जाएगा, लेकिन उस साल बीजेपी के राजेंद्र सिंह राजपूत यहां से जीते और उमा भारती सूबे की मुखिया बनीं. यह भी पढ़ें- कभी कॉलेज तक नहीं गए आपके ‘माननीय’, अब चढ़ेंगे विधानसभा की दहलीज

फुर्सत के पलों में बच्चों से हाथ मिलाते पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान.

शिवराज ने जीत बरकरार रखी
2003 के बाद से 2008 में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान विजयी हुए, नतीजन उन्हीं के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई. वहीं, 2013 में दोबारा शिवराज यहां से बुधनी से जीते और सरकार में कायम रहे.

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष से था मुकाबला
इस बार के चुनाव में शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव से था. इस चुनाव में यादव को शिवराज ने करीब 58 से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी. मगर राज्य में बीजेपी 116 का जादुई आंकड़ा पार नहीं कर पाई, इसलिए शिवराज चौथी बार सूबे के मुखिया नहीं बन सके.

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