Saturday , November 23 2024

स्वच्छ भारत सेस बंद होने के बाद भी मोदी सरकार ने वसूला 4,500 करोड़ रुपये का टैक्स

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत सेस खत्म किए जाने के बाद भी इसके तहत आम जनता से लगभग 4,500 करोड़ रुपये का टैक्स वसूल लिया है. सूचना का अधिकार आवेदन में इसका खुलासा हुआ है.

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा धीरे-धीरे कई सारे सेस खत्म कर दिए गए थे. स्वच्छ भारत सेस भी एक जुलाई, 2017 से खत्म कर दिया गया था. हालांकि वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के सिस्टम और डेटा प्रबंधन के निदेशालय जनरल ने आरटीआई आवेदन के तहत जो जानकारी भेजी है उससे ये स्पष्ट होता है कि जुलाई 2017 के बाद भी लोगों से स्वच्छता सेस वसूला जा रहा है.

सिस्टम और डेटा प्रबंधन के निदेशालय जनरल ने आरटीआई आवेदन के तहत बताया है कि साल 2017 से लेकर 30 सितंबर, 2018 तक में 4391.47 करोड़ रुपये का स्वच्छ भारत सेस वसूला गया है. हालांकि वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने 6 मार्च 2018 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि एक जुलाई, 2017 से स्वच्छ भारत सेस और कृषि कल्याण सेस खत्म कर दिया गया है.

इसके अलावा वित्त मंत्रालय द्वारा 7 जून 2017 को जारी एक प्रेस रिलीज में भी बताया गया है कि जीएसटी को लागू करने के लिए एक जुलाई, 2017 से स्वच्छ भारत सेस समेत कई सारे सेस खत्म किए जा रहे हैं. स्वच्छ भारत सेस खत्म किए जाने के बाद भी इसके तहत पैसा वसूलना सरकार पर गंभीर सवाल खड़ा करता है.

Swachh Bharat cess

(स्रोत: सिस्टम और डेटा प्रबंधन के निदेशालय जनरल)

बता दें कि साल 2015 में स्वच्छ भारत सेस लागू किया गया है. इसके तहत सभी सेवाओं पर 0.5 फीसदी का सेस लगता है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2015 से 2018 तक में कुल 20,600 करोड़ रुपये स्वच्छ भारत सेस के रूप में वसूला गया है.

वित्त वर्ष 2015-16 में 3901.83 करोड़ रुपये, 2016-17 में 12306.76 करोड़ रुपये, 2017-18 में 4242.07 करोड़ रुपये और 2018-19 के दौरान 30 सितंबर, 2018 तक में 149.40 करोड़ रुपये वसूला गया है. वित्त अधिनियम 2015 की धारा 119 के तहत स्वच्छ भारत सेस को स्वच्छ भारत अभियान की फंडिंग और इसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया गया था.

सरकार का दावा है कि स्वच्छ भारत सेस के तहत एकत्रित फंड का उपयोग स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत विभिन्न शौचालयों के निर्माण, सामुदायिक स्वच्छता परिसरों, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन, सूचना शिक्षा व संचार और प्रशासनिक व्यय के लिए किया जाता है. इसे लागू करना और उपयोग प्रमाण पत्र देने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है. 

सरकार ने नहीं बताया कि कहां खर्च हुई यह राशि

एक तरफ सरकार द्वारा स्वच्छता सेस खत्म किए जाने के बाद भी करदाताओं द्वारा भारी संख्या में पैसे वसूल लिए गए हैं. वहीं दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने द वायर  की ओर से दायर आरटीआई आवेदन में ये जानकारी नहीं दी कि इन पैसों को किस काम के लिए खर्च किया गया है. पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने सिर्फ इस बात की जानकारी दी है कि इस सेस के तहत जितनी राशि इकट्ठा की गई है, उसमें से कितनी राशि जारी की गई और कितना खर्च किया गया है.

RTI swachh Bharat cess

(स्रोत: पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय)

मंत्रालय ने बताया कि साल 2015-16 में 2400 करोड़ रुपये जारी किये गए, जिसे पूरा खर्च किया जा चुका है. वहीं साल 2016-17 में 10,500 करोड़ रुपये और साल 2017-18 में 3400 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. हालांकि मंत्रालय ने ये जानकारी नहीं दी कि इन पैसों को स्वच्छ भारत अभियान के किन-किन कार्यों में खर्च किया गया है.

नियम के मुताबिक स्वच्छ भारत सेस की राशि को पहले ‘भारत की समेकित निधि’ (कॉन्सोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया) में भेजा जाता है. इसके बाद इस राशि को ‘स्वच्छ भारत कोष’ में भेजा जाता है जहां से इसे जरूरत के हिसाब से स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न कार्यों के लिए खर्च किया जाता है.

केंद्र के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब से ये पता चलता है कि स्वच्छ भारत सेस के तहत इकट्ठा की गई राशि में से लगभग एक चौथाई राशि अभी तक मंत्रालय को जारी नहीं की गई है. स्वच्छ भारत सेस के तहत कुल 20,600 करोड़ रुपये की राशि इकट्ठा की गई है. इसमें से अभी तक मंत्रालय को 16,300 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं. इस हिसाब से अभी भी 4,300 करोड़ रुपये जारी किया जाना बाकी है.

इसका मतलब है कि इतनी राशि अभी तक खर्च नहीं की गई है. साल 2017 में आई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि उस समय तक जितनी राशि इकट्ठा की गई थी, उसका एक चौथाई हिस्सा जारी नहीं किया गया था.

कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बीते दो वर्षों (2015-17) में कुल 16,401 करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ था और इसका 75 फीसदी हिस्सा यानी 12,400 करोड़ रुपये ही राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में पहुंचा है और उनका इस्तेमाल किया गया है.

बाकी के लगभग 4,000 करोड़ रुपये की राशि अब तक इस कोष में नहीं पहुंची है. द वायर  द्वारा इस बारे में वित्त मंत्रालय को सवालों की सूची भेजी गई है. रिपोर्ट के प्रकाशन तक मंत्रालय से कोई जवाब नहीं आया है. मंत्रालय से जवाब प्राप्त होने पर उसे रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch