एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि एक बार फिर केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही राजग की सरकार बनेगी। 2014 की तरह ही इस बार भी एग्जिट पोलों में केंद्र में मोदी सरकार बनने की उम्मीद जताई गई है। लगभग सभी एग्जिट पोल में राजग को 287 से 305 सीटें तक मिलती दिखाई दे रही है। कुछ एग्जिट पोल में कहा जा रहा है कि राजग आसानी से पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पा लेगा और कुछ एग्जिट पोल में कहा जा रहा है कि राजग बहुमत के करीब पहुंचेगा।
इसका संकेत स्पष्ट है कि राजग को सरकार बनाने के लिए बाहर से किसी अन्य दल के सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। एग्जिट पोल में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भाजपा व उसके सहयोगियों को भारी सीटें मिलती दिख रही हैं। केरल में भाजपा का खाता खुलता दिख रहा है तो पश्चिम बंगाल में पहले से अधिक सीटें मिलती दिख रही हैं।
तमिलनाडु में डीएमके, तेलंगाना में केसीआर, आंध्र में वीईएसआरसी, ओडिशा में बीजद को अधिक सीटें मिल सकती हैं। जम्मू-कश्मीर में यूपीए को फायदा हो सकता है। एग्जिट के नतीजे दर्शा रहे हैं कि जिन राज्यों में 2014 में भाजपा को अधिक सीटें मिली थीं, वहां से 2019 में भी अच्छी खासी सीटें मिलती दिख रही है। एग्जिट पोल के आंकड़े साबित करते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत सभी विपक्षी दलों के नेताओं के मोदी पर तीखे हमलों का मतदाताओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा।
इस चुनाव में सभी विपक्षी नेताओं ने अपने एजेंडे पर बात करने के बजाय केवल और केवल नरेंद्र मोदी पर हमले किए। राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है जैसे जुमले को केंद्र में रख कर ही अपना कैपेंन किया, लेकिन मतदाताओं ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। एग्जिट पोल के आंकड़े गर सच होते हैं और 23 मई को इसी के अनुरूप नतीजे आते हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठेगा और सपा-बसपा गठबंधन जैसे प्रयोग पर प्रश्नचिन्ह लगेंगे।
राहुल का ‘न्याय’ का दांव नहीं चला। देश में विपक्ष की पूरी सियासत सवालों के घेरे में होंगी। इसके साथ ही यह संदेश मजबूत होगा कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है, उनके साहसिक फैसलों को जनता पसंद करती है और देश एक स्थायी व स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चाहता है। भाजपा ने जिस तरह विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा, सुशासन व राष्ट्रवाद को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा है, उसे जनता ने पसंद किया है।
एग्जिट पोल के मुताबिक इस चुनाव के आए नतीजे यह भी साबित करेंगे कि देश परिवारवाद, वंशवाद और जतीय अस्मिता की राजनीति को नकारने की राह पर आगे बढ़ रहा है। भाजपा ने अपनी पूरी राजनीति में जाति व धर्म से ऊपर उठकर सबका साथ सबका विकास के मूलमंत्र को अपनाया है। वह लगातार वंशवादी व परिवारवादी राजनीति की आलोचना करती रही है। इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में अधिक हिंसा समेत बिहार व पंजाब में हिंसा-उपद्रव के अलावा नेताओं के चुनाव भाषणों में अत्यधिक कड़वाहट देखने को मिली।
सभी राजनीतिक दलों को आगे से ध्यान रखना होगा कि दूसरे दलों के नेताओं के लिए अशिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं करें और चुनाव आयोग को सुनिश्चित करना होगा कि चुनाव में हिंसा न हो। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने दो से तीन चरणों में मार्च-अप्रैल में चुनाव कराने का विचार प्रस्तुत किया है। इस पर चुनाव आयोग को गौर करना चाहिए। देश में दो-तीन चरणों में ही आम चुनाव होना चाहिए।
15 से अधिक राज्यों के चुनाव भी आम चुनाव के साथ कराए जाने पर निर्वाचन आयोग को विचार करना चाहिए। 2014 में अधिकांश एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित हुए थे, लेकिन 2004 व 2009 में अधिकांश एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे। 1998 में भी ज्यादातर एग्जिट पोल सच साबित हुए। 2015 में बिहार विधानसभा के चुनावों में भी एग्जिट पोल फेल हुए।
इसलिए एग्जिट पोल के अनुमान सच भी हो सकते हैं और गलत भी साबित हो सकते हैं। यदि सही साबित हुए तो नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश की बागडोर संभालेंगे। उन्हीं के नेतृत्व में नई सरकार काम करती दिखेगी। हालांकि केंद्र में किस दल की सरकार बनेगी, उसका पता 23 मई को नतीजे आने के बाद लगेगा। बहरहाल, एग्जिट पोलों के अनुमानों में देश के मतदाताओं ने बता दिया है कि उन्होंने एक बार फिर से मोदी पर भरोसा जताया है।