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राहुल गांधी के वो सिपहसालार जो नहीं झेल पाए मोदी की सुनामी का प्रहार

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में 2014 की मोदी लहर और मजबूत होकर उभरी है. इस बार अकेले दम पर बीजेपी 300 के पार जाती दिख रही है जबकि कांग्रेस की हालत पिछले नतीजों जैसी ही बनी हुई है. कांग्रेस के लिए यह नतीजे किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं क्योंकि उनकी पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए ही अपनी परंपरागत सीट अमेठी को बचा पाना मुश्किल हो गया है. यही नहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान संभाल रहीं प्रियंका गांधी का जादू भी विफल साबित हुआ और राहुल के करीबी नेता तक हार की कगार पर खड़े दिख रहे हैं.

कांग्रेस में टीम राहुल के नाम से पहचाने जाने वाले युवा नेताओं के लिए यह चुनाव करारा झटका साबित हुआ है. यूपी में आरपीएन सिंह से लेकर सलमान खुर्शीद, राज बब्बर की हालत पस्त नजर आ रही है. फर्रुखाबाद से कांग्रेस प्रत्याशी सलमान खुर्शीद तीसरे नंबर के लिए भी संघर्ष करते दिख रहे हैं. वहीं यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर अपनी पसंदीदा फतेहपुर सीकरी सीट को खोने की कगार पर हैं. यूपी के कुशीनगर से चुनाव लड़ रहे आरपीएन सिंह तीसरे नंबर पर बने हुए हैं.

अमेठी में फंसते दिख रहे राहुल

यूपी की ज्यादातर सीटों पर बीजेपी फिर से कब्जा करती दिख रही है तो उसे टक्कर देने में सपा-बसपा गठबंधन आगे आकर खड़ा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट बचाना मुश्किल दिख रहा है. सिर्फ एक रायबरेली की सीट को छोड़कर कोई अन्य कोई प्रत्याशी जीत की ओर बढ़ता नहीं दिख रहा है.

दिल्ली में अजय माकन से लेकर कांग्रेस पार्टी की भरोसेमंद चेहरों की हालत पस्त हैं. यहां नई दिल्ली से माकन बीजेपी की मीनाक्षी लेखी से पिछड़ चुके हैं तो कांग्रेस का भरोसेमंद चेहरा शीला दीक्षित उत्तर पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव हार रही हैं. यही नहीं पूर्व सांसद जेपी अग्रवाल चांदनी चौक सीट पर काफी पीछे चल रहे हैं. पुराने कांग्रेसी महाबल मिश्रा भी काफी पिछड़ चुके हैं. दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी बढ़त बनाए हुए है.

खतरे में सिंधिया की सीट

मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के सबसे करीबी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी परंपरागत सीट गुना को खोते दिख रहे हैं. गुना में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सवा लाख से ज्यादा वोटों का अंतर है. सिंधिया 2014 की मोदी लहर में भी यह सीट बचाने में सफल हुए थे लेकिन इस बार उन्हें बीजेपी के कृष्णपाल सिंह से पस्त होना पड़ सकता है. यहां हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी, बावजूद इसके मुख्यमंत्री कमलनाथ सूबे में कांग्रेस को पुनर्जीवित नहीं कर पाए हैं.

कांग्रेस के पुराने नेता और राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह भी भोपाल में हार रहे हैं. दिग्गी राजा के सामने बीजेपी के हिन्दुत्व का चेहरा कही जाने वाली साध्वी प्रज्ञा आगे चल रही हैं. दिग्विजय सिंह के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई थी और यहां बीजेपी और कांग्रेस की विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी. आतंकवाद की आरोपी प्रज्ञा अपने पहले राजनीतिक दांव में दिग्विजय सिंह को पटखनी देती दिख रही हैं.

पंजाब से थोड़ी राहत

कांग्रेस के लिए थोड़ी बहुत राहत पंजाब और उत्तराखंड के नतीजे लेकर आए हैं. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है. पंजाब की कमान संभाल रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की थी जिसका नतीजा दिख भी रहा है. यहां की 13 में से 10 सीटों पर कांग्रेस पहले नंबर पर बनी हुई है, जबकि 2 पर बीजेपी तो एक पर आम आदमी पार्टी को बढ़त हासिल है. उत्तराखंड की 5 सीटों में से 2-3 सीटों पर कांग्रेस सत्ताधारी बीजेपी को टक्कर देती नजर आ रही है.

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