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पंजाब में जन्मीं, दिल्ली से की पढ़ाई, ऐसा रहा ‘यूपी की बहू’ शीला दीक्षित का जीवन

नई दिल्ली। दिल्ली में विकास को नया आयाम देने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का निधन हो गया है. राजधानी के एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल में उन्होंने 81 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शोक जताया. शीला दीक्षित को 3.15 बजे कार्डिएक अरेस्ट (दिल की गति रुकना) हुआ, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. 3.55 बजे उनका निधन हो गया. वह दिल्ली की सबसे लंबे तक मुख्यमंत्री रहीं. 15 साल के कार्यकाल में दिल्ली का कायाकल्प करने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. अपने कुशल नेतृत्व और तजुर्बे से उन्होंने पार्टी को नए मुकाम तक पहुंचाया.

शीला दीक्षित का एक परिचय

शीला दीक्षित का जीवन कई राज्यों में बीता. उनका जन्म पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को हुआ था. लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में हुई. दिल्ली के जीसस एंड मैरी स्कूल से उन्होंने शुरुआती शिक्षा ली. इसके बाद मिरांडा हाउस से उन्होंने मास्टर्स ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की.

शीला दीक्षित युवावस्था से ही राजनीति में रुचि लेने लगी थीं. उनकी शादी उन्नाव के रहने वाले कांग्रेस नेता उमाशंकर दीक्षित के आईएएस बेटे विनोद दीक्षित से हुई. विनोद से उनकी मुलाकात दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान हुई थी. उन्हें ‘यूपी की बहू’ भी कहा जाता है.

शीला दीक्षित ने राजनीति के गुर अपने ससुर से सीखे थे. उमाशंकर दीक्षित कानपुर कांग्रेस में सचिव थे. पार्टी में धीरे-धीरे उनकी सक्रियता बढ़ती गई और वे पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के करीबियों में शामिल  हो गए. जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहीं तो उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे. ससुर के साथ-साथ शीला भी राजनीति में उतर गईं. एक रोज ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. 1991 में ससुर की मौत के बाद शीला ने उनकी विरासत को पूरी तरह संभाल लिया.उनके दो बच्चे संदीप और लतिका हैं.

शीला दीक्षित जल्द ही गांधी परिवार के भरोसेमंद साथियों में शुमार हो गईं. इसका उन्हें इनाम भी मिला. वह 1984 में कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ीं और संसद पहुंच गईं. राजीव गांधी कैबिनेट में उन्हें संसदीय कार्यमंत्री के रूप में जगह मिली. बाद में वह प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं.

राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी ने भी उनके ऊपर पूरा भरोसा जताया. 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का चीफ बनाया गया. तब भी कांग्रेस की हालत बेहद पतली थी. कांग्रेस के टिकट पर वह पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन बीजेपी के लाल बिहारी तिवारी ने उन्हें शिकस्त दी. बाद में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने जोरदार जीत हासिल की और वह मुख्यमंत्री बन गईं.

2013 में उन्हें आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के हाथों शिकस्त मिली. हार के बाद वे राजनीति में एक तरह से दरकिनार कर दी गईं. बाद में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया. लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली लौट आईं.

इसके बाद उन्होंने दमदार वापसी की और पूर्व कांग्रेस चीफ राहुल गांधी ने भरोसा जताते हुए उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी. 2019 लोकसभा चुनावों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि कांग्रेस और आप का गठबंधन हो जाए. लेकिन शीला दीक्षित ने इसका खुलकर विरोध किया और आखिरकार उनकी ही मानी गई.

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