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दिल्ली में ‘मुफ्त ऑफर’ वाली राजनीति पड़ी सभी मुद्दों पर भारी

एग्जिट पोल के नतीजे आ गए हैं और इनके मुताबिक अरविंद केजरीवाल पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे. बीजेपी ने इस दौरान बहुत शोर मचाया. करीब 240 सांसदों को दिल्ली के चुनाव प्रचार में उतारा, लेकिन फिर भी एग्जिट पोल्स के मुताबिक बीजेपी को 5 से लेकर 20 सीटें ही मिल सकती हैं. यानी बीजेपी सरकार बनाने के आसपास भी नहीं है.

दिल्ली के लिए आज बहुत बड़ा दिन था. दिल्ली में आज विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग हुई और अब पूरा देश ये जानना चाहता है कि दिल्ली के दिल में क्या है? और आज दिल्ली वालों का दिल किस पार्टी पर आया? एग्जिट पोल्स के नतीजे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि दिल्ली में मुफ्त ऑफर वाली राजनीति बाकी सभी मुद्दों पर भारी पड़ी है और आम आदमी पार्टी बड़े आराम से सरकार बना सकती है.

आज हम अलग अलग एग्जिट पोल्स के नतीजों को डीकोड करेंगे. ज्यादातर एग्जिट पोल्स अलग-अलग दावा कर रहे हैं लेकिन हम इन सभी एग्जिट पोल्स का विश्लेषण करके आपको बताएंगे कि दिल्ली की असली तस्वीर क्या है. एग्जिट पोल के मुताबिक दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 55, बीजेपी को 14 और कांग्रेस को 1 सीट मिल सकती है. यानी पिछली बार के मुकाबले स्थिति थोड़ी बदली हुई लग रही है लेकिन एग्जिट पोल्स के मुताबिक दिल्ली में आएगा तो केजरीवाल ही. आम आदमी पार्टी को पिछली बार 70 में 67 सीटें मिली थीं. बीजेपी को 3 सीटें और कांग्रेस को एक सीट भी नहीं मिल पाई थी.

क्या इसका मतलब ये है कि दिल्ली में शाहीन बाग़ का मुद्दा पूरी तरह फेल हो गया? ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि अगर ये मुद्दा फेल हुआ होता. ज्यादातर एग्जिट पोल्स में बीजेपी को 10 से 20 सीटें नहीं मिलतीं. वोट प्रतिशत की बात करें तो एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी को 52 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. बीजेपी को 37 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं जबकि कांग्रेस के हिस्से में 7 प्रतिशत वोट आने का अनुमान है. वर्ष 2015 में आम आदमी पार्टी को 54 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 32 प्रतिशत और कांग्रेस को सिर्फ 9 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे.

यानी मोटे तौर पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी जबरदस्त वापसी कर सकती है . लेकिन ये भी सच है कि पिछली बार दिल्ली विधानसभा से जुड़े ज्यादातर एग्जिट पोल्स बहुत हद तक गलत साबित हुए थे. वर्ष 2015 के एग्जिट पोल्स में दावा किया गया था कि आम आदमी पार्टी को 39, बीजेपी को 26 और कांग्रेस को 4 सीटें मिलेंगी, लेकिन असली नतीजे इससे बहुत अलग थे. तब सारे दावों के विपरीत आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत ली थीं.

पांच पॉइंट में समझें  एग्जिट पोल्स के नतीजों का मतलब
एग्जिट पोल्स के तहत वोट देकर निकले लाखों वोटर्स में से कुछ हज़ार लोगों से बात की जाती है और इसके आधार पर ये अनुमान लगाया जाता है कि ज्यादातर लोगों ने किस पार्टी को वोट डाला है . इसलिए ये एग्जिट पोल्स कितने सही साबित होंगे. इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. अब आप पांच पॉइंट में ये समझिए कि इन एग्जिट पोल्स के नतीजों का मतलब क्या है .

पहला प्वाइंट ये है कि..टेस्ट मैच की भाषा में कहें तो आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को फॉलो ऑन देकर एक पारी और 300 रनों से हराया है जबकि वनडे की भाषा में आम आदमी पार्टी ने 10 विकट से ये मैच जीत लिया है. दूसरा प्वाइंट ये है कि दिल्ली की जनता के लिए राष्ट्रवाद, हिंदुस्तान-पाकिस्तान, मुगलों का राज वापस आ जाएगा. इस तरह की बातें मायने नहीं रखतीं. दिल्ली की जनता को ना तो बालाकोट एयर स्ट्राइक से कोई लेना-देना है और ना ही राम मंदिर और कश्मीर की धारा 370 से ही कोई लेना-देना है. दिल्ली की जनता अपने जीवन के संघर्ष में ही पूरी तरह से लिप्त है. दिल्ली की जनता को बड़े राष्ट्रीय मुद्दों से कोई मतलब नहीं है. दिल्ली का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही लड़ा गया है और जनता ने राष्ट्रीय मुद्दों और बीजेपी को नकार दिया है.

दिल्ली के लोग राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय मुद्दों पर राय तो रखते हैं, लेकिन वोट डालने बाहर नहीं निकलते. यानी दिल्ली की जनता ने साफ किया है कि दिल्ली के लोग आलसी हैं. तीसरा प्वाइंट कम वोटर टर्न आउट से जुड़ा है . दिल्ली में पिछली बार के मुकाबले करीब 10 प्रतिशत कम वोटिंग हुई है . कम वोटर टर्न आउट का मतलब है कि दिल्ली की जनता चाहती है कि जैसा है वैसा चलता रहे. चौथा प्वाइंट ये है कि दिल्ली की जनता प्रयोग में नहीं संयोग में विश्वास रखती है . और शाहीन बाग़ जैसे मुद्दों को नकारना इसी तरफ इशारा करता है. पांचवां और आखिरी प्वाइंट ये है कि आम आदमी पार्टी का कैंपेन पॉजिटिव था, जबकि बीजेपी का चुनाव प्रचार नेगेटिव था और इस बार पॉजिटिव कैंपेन जीत गया और नेगेटिव चुनाव प्रचार हार गया.

आपको जानकर दुख होगा कि दिल्ली वालों ने आज भी हमेशा की तरह दिल खोलकर वोटिंग नहीं की है. दिल्ली में पिछली बार 67 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे लेकिन अब आंकड़ा बदल गया है. थोड़ी देर पहले मिले नए आंकड़ों के मुताबिक इस बार 61.2 प्रतिशत लोग वोट डालने अपने घरों से बाहर निकले. यानी दिल्ली के करीब 90 लाख वोटर्स ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और करीब 60 लाख लोग वोट डालने के लिए अपने घरों से बाहर ही नहीं निकले. जबकि पिछले बार ये आंकड़ा करीब 44 लाख था. यानी अपने मताधिकार का प्रयोग ना करने वाले लोगों की संख्या 16 लाख बढ़ गई है. जबकि इस बीच वोटरों की संख्या करीब 15 लाख बढ़ी है .

वोट डालने के मामले में फिर पिछले दिल्ली वाले
पिछले साल लोकसभा चुनाव में पूरे देश के 67.4 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे. यानी जीडीपी, रहन-सहन और पैसों के मामले में तो दिल्ली का औसत, राष्ट्रीय औसत से बहुत अच्छा है लेकिन वोट डालने के मामले में दिल्ली वाले हमेशा पिछड़ जाते हैं. आम तौर पर कम वोटिंग का मतलब ये होता है कि जनता मौजूदा सरकार के कामकाज से संतुष्ट है और जनता बदलाव नहीं चाहती है जबकि बहुत ज्यादा वोटिंग का मतलब ये माना जाता है कि जनता बदलाव चाहती है. पिछले कुछ वर्षों में चुनावों को लेकर चली आ रही ये पारंपरिक सोच भी कई मौकों पर गलत साबित हुई है. पिछले साल हरियाणा चुनावों में ऐसा ही हुआ था. वहां पिछली बार के मुकाबले 8 प्रतिशत कम लोगों ने वोट डाले थे लेकिन बीजेपी इतनी सीटें हासिल नहीं कर पाई कि वो अपने दम पर सरकार बना पाए. बीजेपी को हरियाणा विधानसभा चुनाव में 2019 में 40 सीटें मिली थीं . जबकि वर्ष 2014 में बीजेपी ने 47 सीटें हासिल की थीं और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को JJP यानी जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी.

इसी सोच की तरह एग्जिट पोल के नतीजे भी हर बार सही साबित नहीं होते क्योंकि एग्जिट पोल करने वाली ज्यादातर एजेसियां कुछ हज़ार वोटर्स से बात करके लाखों वोटर्स के मन की बात समझने की कोशिश करती हैं. ये चुनावी नतीजों की भविष्यवाणी करने का वैज्ञानिक तरीका नहीं है क्योंकि इतने कम सैंपल से हमेशा सही तस्वीर का पता नहीं लगता. दिलचस्प बात ये है कि कई एग्जिट पोल में सीटों का मार्जिन इस बार 10 से 15 के बीच है. यानी करीब 21 प्रतिशत सीटें ऐसी हैं जिनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. अब सोचने वाली बात ये है कि इतने मार्जिन के साथ इन एग्जिट पोल को सटीक कैसे कहा जा सकता है?

दिल्ली के चुनाव में इस बार क्या चला और क्या नहीं चला
अब सवाल ये है कि दिल्ली के चुनाव में इस बार क्या चला और क्या नहीं? एग्जिट पोल के नतीजे देखकर तो साफ लगता है कि दिल्ली वाले अब भी मुफ्त के ऑफर देने वाली पार्टी को ही चुनना चाहते हैं. यानी दिल्ली में एक बार फिर फ्री-बिजली, पानी और मुफ्त यात्रा जैसे मुद्दे हावी रहे हैं. दिल्ली देश की राजधानी है लेकिन अब इसे मुफ्त वाली सुविधाओं की राजधानी भी बनाया जा रहा है. इसी का नतीजा है कि दिल्ली में दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

दिल्ली में रहने वाले करीब 40 प्रतिशत लोग दूसरे राज्यों से आए हैं. ये लोग लंबे वक्त से दिल्ली में रह रहे हैं और अब दिल्ली में ही वोट डालते हैं. इनमें से 20 प्रतिशत लोग मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं . 9 प्रतिशत बिहार और झारखंड से आए हैं, 6 प्रतिशत लोग मूल रूप से पंजाब और हरियाणा के रहने वाले हैं, 3 प्रतिशत लोग राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से दिल्ली आए हैं, दिल्ली की आबादी में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से आए लोगों की हिस्सेदारी करीब 2 प्रतिशत है जबकि 3 प्रतिशत वोटर्स ऐसे हैं जो देश के अन्य अलग इलाकों से आकर दिल्ली में बस गए हैं.

पिछले 70 वर्षों में दिल्ली की आबादी में 1 हज़ार प्रतिशत की वृद्धि हुई है . वर्ष 1951 में दिल्ली की जनसंख्या सिर्फ 17 लाख 50 हज़ार थी जो अब बढ़कर सवा दो करोड़ से ज्यादा हो चुकी है. दिल्ली के पास पूरे भारत की सिर्फ शून्य दशमलव शून्य पांच प्रतिशत जमीन है जबकि भारत के डेढ़ प्रतिशत लोग दिल्ली में रहते हैं. यानी दिल्ली के पास जगह की बहुत कमी है लेकिन यहां की आबादी ज़रूरत से ज्यादा हो चुकी है.

दिल्ली में जनसंख्या घनत्व भी बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है. दिल्ली में एक वर्ग किलोमीटर में 11 हज़ार 320 लोग रहते हैं जबकि देश भर में एक वर्ग किलोमीटर में सिर्फ 382 लोग रहते हैं . यानी दिल्ली के संसाधनों पर पहले से ही बहुत बोझ है और मुफ्त के Offers की वजह से दिल्ली देश भर के लोगों के लिए एक आकर्षक जगह बन गई है और अब ये शहर जल्द ही जनसंख्या विस्फोट का सामना करने वाला है. दिल्ली जापान की राजधानी टोक्यो के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या वाला महानगर है. दिल्ली में सवा दो करोड़ लोग रहते हैं जबकि टोक्यो में 3 करोड़ 70 लाख लोग रहते हैं लेकिन वर्ष 2028 तक दिल्ली की जनसंख्या टोक्यो को पीछे छोड़ देगी.

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