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फूलन देवी- जुल्म से डाकू बनने और राजनीति में आने की पूरी कहानी

लखनऊ। चंबल का बीहड़ इलाका डाकूओं के लिये मशहूर है, इलाके में आज भी डाकू शब्द प्रयोग नहीं होता, इन लोगों के लिये बागी शब्द का इस्तेमाल होता रहा, इनका अपना इतिहास है, वैसे तो यहां के बहुत से बड़े बागियों की दहशत रही, लेकिन फूलन देवी के संघर्ष की कहानी हटकर और उतार-चढाव भरी है, जो किसी फिल्म की कहानी लगती है, लेकिन वो पूरी तरह हकीकत की बानगी है, इसमें समाज के जुल्मों के खिलाफ बागी होने के बाद एक राजनीतिक पारी शामिल है। 10 अगस्त 1963 में पैदा हुई फूलन देवी का अपनी मौत के 20 साल बाद भी यूपी की राजनीति में सक्रिय है।

गरीब पिछड़ी जाति में जन्म
फूलन देवी का जन्म यूपी के जालौन जिले के गांव गोरहा के मल्लाह देवी दीन के घर हुआ था, 6 भाई-बहनों में फूलन माता-पिता की दूसरी संतान थीं, लड़की तथा पिछड़ी जाति होने के दर्द को उन्होने बचपन से ही झेला। जब वो सिर्फ 11 साल की थी, तो 30 साल से ज्यादा के आदमी के साथ उनकी शादी हो गई, एक गाय की कीमत पर फूलन का सौदा हो गया, फूलन का पति सालों तक उस पर जुल्म करता रहा, बुरी तरह मारता-पीटता था, किसी तरह से वो अपने पति के चंगुल से छूटकर भाग निकली, पिता की जमीन रिश्तेदारों ने छीन ली, उन्होने सहायता देने की बजाय फूलन को साजिश कर जेल भिजवा दिया।

बेहमई गांव की घटनाएं
फूलन देवी पहली बार तब चर्चा में आई थी, जब 22 लोगों को बेहमई में एक साथ लाइन में खड़ा कर गोली मार दिया गया था, लेकिन इस नरसंहार के पीछे एक बहुत वीभत्स हादसा छिपा था, बेहमई गांव में ही 18 साल की उम्र में फूलन का उंची जाति के अपराधियों के एक समूह ने सामूहिक दुष्कर्म किया, उसे बेहमई में दो हफ्ते तक बंधक बनाकर रखा गया, फूलन का तब तक गैंगरेप चलता रहा जब तक उसने होश नहीं खो दिये। फूलन के साथ हुए जुल्म को न्याय उसे नहीं मिल सका, पुलिस तथा रिश्तेदारों की साजिशों की शिकार थी, गैंगरेप के बाद वो एक रिश्तेदार की मदद से फूलन देवी बागी बन गई, शुरुआत में उसने छोटे-मोटे अपराध किये, लेकिन बाद में वो डकैतों के ग्रुप में शामिल होकर उसकी मुखिया बन बैठी, 1981 में फूलन उस गांव में लौटीं, जहां गैंगरेप में शामिल दो लोगों की पहचान करने के बाद उनकी गैंग ने 22 लोगों को गोली मार दी।

देशभर में चर्चित हुई फूलन
बेहमई हत्याकांड ने फूलन को रातों-रात देश भर में मशहूर कर दिया, इस हत्याकांड ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी का ध्यान भी आकर्षित किया, ऊंची जाति के लोगों के लिये ये कानून व्यवस्था को खुलेआम चुनौती देना था, वो फूलन को वहशी हत्यारिन घोषित कर रहे थे, तो पिछड़ों के लिये फूलन देवी दुर्गा की अवतार बन गई थी, उन्हें दस्यु सुंदरी, दस्यु रानी जैसे नाम भी दिया जाने लगे थे। इस हत्याकांड के बाद सरकार भी सक्रिय हुई, बीहड़ में डाकू की समस्या समाधान निकालने के प्रयास होने लगे, आखिर में फूलन देवी इस शर्त पर समर्पण करने को राजी हुई कि उन्हें और उनकी गैंग के सदस्यों को फांसी नहीं दी जाएगी, उनके पिता की जमीन उसे वापस की जाएगी, उसके भाई-बहनों को सरकारी नौकरी दी जाए, लंबे समय तक चले मुकदमे के बाद 1994 में यूपी सरकार ने उन पर मुकदमे वापस लिये, और वो जेल से बाहर आ गई। 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ी और जीती, वो मल्लाहों की मसीहा के रुप में पहचानी गई, उन्हें बहुत अधिक लोकप्रियता मिली, 25 जुलाई 2001 को तीन नकाबपोशों ने फूलन देवी को उनके दिल्ली के घर के बाहर गोली मार दी, उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वो बच नहीं सकी।

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