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बंगाल हिंसा पर राजनीतिक बयानों की बेला खत्म: हाईकोर्ट ने दिखाया रास्ता, अब आनाकानी ममता बनर्जी को पड़ सकती है भारी

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद हुई हिंसा के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में हिंसा के दौरान हुई हत्या और बलात्कार की घटनाओं की सीबीआई (CBI) जाँच के आदेश दिए हैं। साथ ही पाँच न्यायाधीशों वाली पीठ ने एक एसआईटी (SIT) के गठन का आदेश दिया है, जो हिंसा के दौरान हुई अन्य आपराधिक घटनाओं की जाँच करेगी। सीबीआई और एसआईटी जाँच न्यायालय की निगरानी में होगी।

उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया है कि राज्य सरकार जल्द से जल्द हिंसा से प्रभावित नागरिकों के लिए राहत की व्यवस्था करे। साथ ही न्यायालय ने उन दावों को खारिज कर दिया जिनमें मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) पर पक्षपात का आरोप लगाया था। न्यायालय ने सीबीआई और एसआईटी को जाँच की स्टेटस रिपोर्ट 6 हफ्ते के भीतर दाखिल करने का आदेश दिया है।

इससे पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 3 अगस्त को अपने निर्णय को सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय ने तीन सदस्यीय एसआईटी की घोषणा भी कर दी जिसके अनुसार आईपीएस अधिकारी सुमन बाला साहू, सोमेन मित्रा और रणवीर कुमार टीम के सदस्य रहेंगे। एसआईटी जाँच की निगरानी उच्चतम न्यायालय के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश करेंगे।

न्यायालय के इस निर्णय के बाद राज्य में चुनाव के उपरांत हुई हिंसा को लेकर सत्ताधारी और विपक्षी दल के बीच चल रहे आरोपों और प्रत्यारोपों को एक विराम मिलना चाहिए। हिंसा प्रभावित नागरिकों को राज्य सरकार द्वारा राहत की जल्द से जल्द व्यवस्था के लिए मिला न्यायालय का आदेश यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ममता बनर्जी की सरकार अब हिंसा को केवल विपक्षी दल का आरोप बताकर खारिज नहीं कर सकती।

न्यायालय के आदेशों और निर्णय से साफ़ हो जाता है कि अदालती कार्रवाई के दौरान राज्य सरकार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर पक्षपातपूर्ण रवैए का आरोप का कोई ठोस आधार नहीं है। अब यह देखने वाली बात होगी कि उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद राज्य सरकार का अगला कदम क्या होगा।

ऐसा पहली बार हुआ है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक और चुनावी हिंसा पर न्यायालय ने किसी उच्च स्तरीय जाँच के आदेश दिए हैं। इसके पहले राज्य में चुनावी और राजनीतिक हिंसा को दशकों से राज्य की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बताकर नजरअंदाज किया जाता रहा है। बहुत समय से इसकी आवश्यकता थी कि चुनाव दर चुनाव हो रही हिंसा पर न केवल बहस हो, बल्कि उस पर लगाम लगाने को लेकर राजनीतिक दलों के बीच एक न्यूनतम सामंजस्य बने जो राज्य में होनेवाली राजनीतिक हिंसा पर पूरी तरह से लगाम लगाने की दिशा में पहला कदम हो।

ऐसे में इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि न केवल राजनीतिक दल, बल्कि मीडिया और बुद्धिजीवी कभी ऐसी बहस चला ही नहीं सके जो राजनीतिक हिंसा को रोकने की दिशा में पहला कदम होती। आम भारतीय के लिए यह आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक विमर्शों के साझेदार कभी इसे लेकर गंभीर दिखे ही नहीं और बड़े आराम से चुनाव के दौरान होनेवाली हिंसा को पश्चिम बंगाल के राजनीतिक संस्कृति बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

उच्च न्यायालय का निर्णय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए क्या लेकर आया है, इस पर बहस होगी और भविष्य में राज्य सरकार के लिए पैदा होने वाली संभावित मुश्किलों की बात होगी पर अब यह आवश्यक है कि मुख्यमंत्री राज्य में एक भयमुक्त राजनीतिक माहौल तैयार करने के प्रयासों में अपना योगदान दें। यह दुखद है कि चुनाव के बाद हुई भीषण हिंसा को रोकने का पहला प्रयास न्यायपालिका के सौजन्य से हुआ। ऐसे में यदि सत्ताधारी दल और सरकार इस प्रयास में अपना योगदान देते हैं तो वह स्वस्थ लोकतान्त्रिक माहौल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।

इस दिशा में सत्ताधारी दल की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि लगातार हो रही हिंसा को बार-बार झूठा बताने के सारे प्रयास उसकी ओर से हुए हैं। उसके ऊपर जिम्मेदारी इस वजह से भी बढ़ जाती है, क्योंकि दस वर्षों तक शासन में रहने के बावजूद दल ने वामपंथियों द्वारा शुरू की गई राजनीतिक हिंसा की संस्कृति को रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।

इस वर्ष विधानसभा में मिली जीत के बाद से ममता बनर्जी अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका की खोज में प्रयासरत हैं। इसी मंशा के साथ उन्होंने न केवल दिल्ली की यात्रा की, बल्कि विपक्षी दलों के साथ किसी तरह का सामंजस्य बनाने के लिए काम भी शुरू कर दिया है। आज आए न्यायालय के इस निर्णय के बाद पूरे भारत की दृष्टि उनके अगले कदम पर होगी। सब यह देखना चाहेंगे कि वे न्यायालय के इस निर्णय पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं या क्या कदम उठाती हैं। उन्हें समझने की आवश्यकता है कि चुनाव खत्म हो चुके हैं और वे अब राज्य की मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उन्हें अब जनता से नहीं बल्कि न्यायपालिका से मुखातिब होना है। ऐसे में इस मामले में राजनीतिक बयान महत्वहीन रहेंगे।

आज साफ़ हो गया है कि ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में यदि अपने राजनीतिक कद को बढ़ाना चाहती हैं तो उनके लिए आवश्यक है कि वे न केवल न्यायालय के निर्णय और आदेशों का पालन करें, बल्कि सीबीआई और एसआईटी की जाँच में पूर्ण सहयोग दें। उनके ऐसा करने के परिणाम क्या होंगे, वह अनुमान और बहस का विषय होगा पर वे यदि ऐसा नहीं कर सकेंगी तो राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए बड़ी भूमिका खोजने के उनके प्रयासों को धक्का अवश्य लगेगा।

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