राजेश श्रीवास्तव
शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नेे कहा कि अयोध्या मेें मंदिर जरूर बनेगा लेकिन तब जब प्रभु श्रीराम चाहेंगे। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि जब सब कुछ सरकार कर रही है तब अयोध्या में मंदिर बनाने का काम क्यों प्रभु श्रीराम के कंधों पर डाला जा रहा है। हालांकि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार तो सब कुछ प्रभु श्रीराम ही करते हैं लेकिन जिस तरह से सरकार काम कर रही है उससे तो वह अपने कहे पर अमल करती नहीं दिख रही है।
जिस अयोध्या के मंदिर की बुनियाद पर खड़ी होकर भारतीय जनता पार्टी दो सांसदों से सत्ता के शीर्ष पर पहंुची है आज उसी मु्द्दे से यह कहकर बच रही हैे कि अयोध्या में मंदिर प्रभु श्रीराम की मर्जी जब होगी तब मंदिर बनेगा। वह भी वह मुख्यमंत्री बोल रहे हैं जिनकी मंदिर के लिए कठोर वाणी के लिए पूरा देश उनको याद करता है। आज यह बात अहम इसलिए हो जाती है क्योंकि यह बयान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया है। जबकि योगी जिस दिन मुख्यमंत्री बने थे उसी दिन हिंदू समाज मेें खासा उत्साह था लोग तो यह भी कहने लगे थे कि अब योगी मंदिर जरूर बनवा देंगे चाहे उनकी कुर्सी भले ही चली जाए।
आज उन्हीं योगी के मुंह से ऐसा बयान हिंदू समाज के लिए जोरदार तमाचा है। आज हिंदू समाज अपने को ठगा महसूस कर रहा है उसे लगता है कि अगर मंदिर प्रभु की मर्जी के समय से ही बनना था तो फिर भाजपा के अटल-आडवाणी व जोशी की तिकड़ी ने इस मुद्दे को क्यों उठाया था और आज भी भाजपा उसी के सहारे पल्लवित और फल-फूल रही है। सवाल यह भी नहीं है कि भाजपा मंदिर बनाये या न बनाये। सवाल यह भी नहीं है कि मंदिर अदालत की अनुमति से बनेगा या नहीं। सवाल यह है कि जब सब काम अध्यादेश से हो रहे हैं तो फिर मंदिर निर्माण के लिए सरकार क्यों आदर्शवादी रवैया अपना रही है।
समझने की बात यह है कि मंदिर निर्माण के लिए जो आदर्शवादी रवैया दिखा रही है वह वास्तव में सच है या फिर वह भी वोट बैंक की सियासी गणित। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार दरअसल इस मुद्दे पर बचते नजर आ रहे हैं वह कितना भी हिंदू हितैषी होने का दिखावा करेें पर उनको सहेजना तोे मुस्लिम वोट बैंक भी है। उनको सहेजना हर वर्ग को है जो उन्हें 2019 की वैतरिणी पार करा दे क्योंकि जिस उहापोह की स्थिति में भाजपा है उसमें उसे फूंक-फूंक कर ही कदम रखना है उसका एक कदम भी उसे गहरी चूक का एहसास करा सकता है। रणनीतिकारों की मानें तो आज भाजपा उसी तरह झूम रही है जिस तरह इंडिया शाइनिंग केे नारे के साथ अटल सरकार मदमस्त थी। आज भाजपा भी मोदी मंत्र के सहारे पूरे भारत में कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ आगे बढ़ते हुए 2019 में फिर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का ख्वाब संजोये हुए है।
लेकिन आज जिस हिंदू समाज को साध कर भाजपा सत्ता में पहुंची थी वह कश्मकश में है कि एससी-एसटी एक्ट कैसे सुप्रीम कोर्ट की मर्जी के बगैर भी लागू हो गया। कैसे आरक्षण आज भी लागू हैै। कैसे गोवा में सरकार बन गयी। कैसे नोटबंदी लागू हो गयी। कैसे जीएसटी लागू हो गयी। कैसे लाख विरोध के बावजूद हर रोज पेट्रोल डीजल की कीमतों में रोज इजाफा हो रहा है। इतना सब कुछ अगर विपक्ष और जनता के तीखे विरोध के बावजूद लागू हो गया और देश देखता रहा तो फिर मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश क्यों नहीं आ सकता ? क्यों सरकार अदालत का मुंह ताक रही है।
जबकि सच्चाई यह है कि अधिकतर मुस्लिम साथी भी अब मंदिर बनाने के प्रति उदारवादी रुख बनाये हुए हैं। सवाल यह है कि क्या भाजपा इसे 2019 का मुद्दा बनाने के लिए रोके हुए है या फिर चुनावी समर के उद्घोष के ठीक पहले इसकी मुनादी करवाकर भाजपा इसे ब्रम्हास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने की बाट जोह रही है या फिर इसके निर्माण के लिए किसी खास मुहुर्त का इंतजार हो रहा है या फिर रामलला हमेशा तिरपाल के नीचे ही रहेंगे। रामलला का नाम लेकर भारतीय जनता पार्टी अलग-अलग समयावधि में लगभग 13 साल का सत्ता सुख भोग चुकी है औेर वर्तमान में भी भोग रही है लेकिन रामलला आखिर कब तक तिरपाल से ही अपने घर की आस लगाये अदालत की ओर ताकते रहेंगे। वह सोच रहे होंगे कि एक सरकार ने कैद से छुड़वाकर ताला तो खुलवा दिया तो दूसरी भक्त सरकार छत कब दिलायेगी इसी का इंतजार हम सबको ही नहीं उनको भी होगा।
अब देखना है कि निर्माण अदालत की मर्जी से होगा या प्रभु श्रीराम की मर्जी से। हालांकि होना तो प्रभु की मर्जी से ही है लेकिन जब धरती रूपी सत्ता के शीर्ष पर बैठे भगवान चाहेंगे तब। लेकिन उनकी भी जानना चाहिए कि जनता जनार्दन ही अपना भगवान बनाती है। स्वयं भगवान ने कहा है कि मैं तो अपने भक्तों के वश में हूं वह जैसा चाहतेे हैं मैं वैसा करता हूं अब सत्तारूढ़ दल के लोगों को भी विचार करना होगा कि वह जनता-जनार्दन के मन की बात सुनना चाहते हैं या नहीं।