लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए महागठबंधन की सुगबुगाहट और तेज हो गई है. बसपा प्रमुख मायावती ने भी गठबंधन के संकेत दे दिए हैं. वो बात अलग है कि उन्होंने सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन करने की शर्त लगाई है. उनकी इस शर्त पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव का जवाब भी सकारात्मक है. अखिलेश यादव भी इशारों-इशारों में संकेत दे चुके हैं कि वह गठबंधन के लिए थोड़ी बहुत सीटें छोड़ने को तैयार हैं. हालांकि पिछले एक डेढ़ माह से उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई ऐसे नए घटनाक्रम जुड़े हैं जिससे महागठबंधन की ताकत कमजोर होने की आशंका जताई जा रही है. बीजेपी भी इस नए राजनीतिक घटनाक्रम से खुश है. आइए एक नजर इन तीनों फैक्टर पर डालते हैं:
शिवपाल का अलग पार्टी बनाना
बीते दो सालों से समाजवादी पार्टी में उपेक्षा का शिकार रहे शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन करके समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका दिया है. शिवपाल अपनाए मोर्चे में सपा के उन नेताओं को जगह देने की बात कह रहे हैं जो लंबे समय से उपेक्षित हैं. यादव परिवार में एक बार फिर से घमासान छिड़ गया है. कुछ इसी तरह की अंतर्कलह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भी देखने को मिली थी जिसका नतीजा अखिलेश की करारी हार के रूप में सामने आया था. अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव 2019 से पहले अखिलेश यादव को बीजेपी से ज्यादा अपनों से चुनौती मिल रही है. अलग पार्टी बनाने के बाद शिवपाल प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं.
शिवपाल यादव द्वारा अपनी अलग पार्टी बना लेने के बाद बीजेपी ने और मुखरता से अखिलेश के नेतृत्व पर सवाल उठाना शुरू कर दिए हैं. बीजेपी का कहना है कि अखिलेश अपना घर नहीं संभाल पा रहे हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में शिवपाल को भले ही बहुत ज्यादा वोट न मिले लेकिन वोट तो वह समाजवादी पार्टी के ही काटेंगे, इतना तय है.
चंद्रशेखर आजाद की रिहाई
‘भीम आर्मी’ के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को अचानक रिहा करके योगी सरकार ने जो दांव चला है, उसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे है. हालांकि चंद्रशेखर जेल से रिहा होने के बाद भी बीजेपी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि भीम आर्मी के नेता तीखे तेवर के बावजूद उन्होंने अचानक रिहा क्यों किया गया. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पूरी कवायद बीएसपी के प्रभाव को कम करने को लेकर की गई है. उधर, चंद्रशेखर ने अपने संगठन को और मजबूत करने और 2019 के चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाने की बात कही है. उन्होंने मायावती को बुआ कहकर भी संबोधित किया. हालांकि बसपा सुप्रीमो ने उनसे कोई नाता न होने की बात कही है. अगर चंद्रशेखर अनुसूचित जाति के कुछ बहुत ही वोट बटोरने में कामयाब रहे तो अंतत: फायदा बीजेपी को ही होगा.
निषाद पार्टी का बदला-बदला रुख
बीजेपी से गोरखपुर सीट छीनने वाली निषाद पार्टी के मिजाज भी बदले-बदले नजर आ रहे हैं. पार्टी ने अभी तक लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अपने पत्ते नहीं खोले हैं. पार्टी का कहना है कि जो भी दल मछुआरा समाज को आरक्षण देने की बात करेगा, वह उसी के साथ चुनाव में जाएगी. इतना ही नहीं, पार्टी ने सम्मानजनक सीटों की शर्त भी लगाई है. ऐसे में बाजी अभी बीजेपी के हाथ से नहीं निकली है. सपा-बसपा को अगर निषाद पार्टी को साथ लेना है तो उसकी कुछ शर्तों को मानना ही होगा अन्यथा गेम खराब हो सकता है.