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भीमा कोरेगांव केस पर इंदिरा जयसिंह बोलीं- विदाई से पहले CJI ने अपनी छवि पर धब्बा लगाया

नई दिल्ली। देश की जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह ने शुक्रवार को एक ट्वीट में कहा है कि ‘इंसाफ को बांटा नहीं जा सकता, जेंडर जस्टिस और मानवाधिकार मामले में विपरीत रुख ठीक नहीं है’. जयसिंह ने अपने ट्वीट में यह भी कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में विदाई से पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी छवि पर धब्बा लगाया है.

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indira jaising@IJaising

Outgoing Chief Justice of India Deepak Mishra dents his own legacy in Bhema Koregao , Justice is indivisible, you cannot believe in gender Justice but not in civil liberties.

बता दें कि कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले की सुनवाई कर रही बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बेंच में शामिल चीफ जस्टिसदीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के बहुमत के फैसले से असहमति जताई और कहा कि असहमति‘सजीव लोकतंत्र’ का प्रतीक है और अलोकप्रिय मुद्दे उठाने वाले विपक्ष की आवाज को सताकर दबाया नहीं जा सकता.

उन्होंने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों को रास न आने वाले मुद्दे उठाने वाला व्यक्ति भी संविधान के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता का हकदार है.

हालांकि, उन्होंने साफ कर दिया कि जब असहमति की अभिव्यक्ति हिंसा को उकसाने या गैर कानूनी साधनों का सहारा लेकर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का तख्तापलट करने के ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ में प्रवेश करती है तो असहमति ‘महज विचारों की अभिव्यक्ति नहीं रह जाती.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन अवश्य किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालतें निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए ‘प्रहरी’ के तौर पर काम करती हैं क्योंकि विधि के शासन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिये यह महत्वपूर्ण है.

गिरफ्तार आरोपी प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रच रहे थे, इस बारे में पुणे पुलिस के आरोपों को ‘गंभीर’ बताते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इस पहलू पर ‘जिम्मेदारी से ध्यान’ दिए जाने की जरूरत है और पुलिस अधिकारी मीडिया से बातचीत में इस बारे में विस्तार से बात नहीं कर सकते.

इससे पहले, शुक्रवार को भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से मना कर दिया. साथ ही पुणे पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने को कहा. कोर्ट के इस फैसले के बाद पांचों कार्यकर्ता सेशन कोर्ट में जमानत की अपील दायर कर सकते हैं.

पांचों कार्यकर्ता की तत्काल रिहाई और SIT जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी. बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं.

फैसला पढ़ते हुए जस्टिस खानविलकर ने कहा कि आरोपी ये तय नहीं कर सकते हैं कि कौन-सी एजेंसी उनकी जांच करे. तीन में से दो जजों ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है साथ ही उन्होंने SIT का गठन करने से भी मना कर दिया है.

कोर्ट ने कहा है कि पुणे पुलिस अपनी जांच आगे बढ़ा सकती है. पीठ ने कहा है कि ये मामला राजनीतिक मतभेद का नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ता की नजरबंदी को 4 हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह स्पष्ट कर दिया कि सीबीआई के विशेष जज जस्टिस बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली कई याचिकाओं को खारिज करने के फैसले में उसकी प्रतिकूल टिप्पणियां याचिकाकर्ताओं के खिलाफ थीं न कि अधिवक्ताओं के खिलाफ.

लोया मामले में पैरवी करने वाली वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल के फैसले में उनके खिलाफ कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने की मांग की थी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि आवेदन (जयसिंह का) इस आधार पर किया गया कि अदालत की ओर से याचिकाकर्ताओं और हस्तक्षेप करने वालों को लेकर दी गई प्रतिकूल टिप्पणी आवेदनकर्ता पर व्यक्तिगत रूप से किए गए.

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