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उत्तराखंड के सात गांवों के 400 से ज़्यादा परिवार चीन से आए भोजन पर क्याें निर्भर हैं?

देश में इन दिनों जब ‘मेक इन इंडिया’ का नारा बुलंद हो रहा है तब यह ख़बर किसी को भी चौंका सकती है. इसके मुताबिक उत्तराखंड में सात गांवों के 400 से अधिक परिवार आज भी ऐसे हैं जो रोज के भोजन के लिए चीन से आई खाद्य सामग्री पर निर्भर हैं. द टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह ख़बर दी है.

अख़बार के मुताबिक उत्तराखंड के बुंदी, गुंजी, कुटी, नापालचू, नाभि, रोंगकोंग और गर्ब्यांग के लोग चीन से आने वाली खाद्य सामग्री के भरोसे जीवनयापन कर रहे हैं. इन गांवों के लोगों तक चीन की खाद्य सामग्री नेपाल के रास्ते से होकर पहुंचती है. इस खाद्य सामग्री में नमक-तेल से लेकर गेहूं-चावल आदि सब शामिल होता है. बातचीत के दौरान इन गांवों के तमाम लोग इसकी पुष्टि करते हैं.

नाभि गांव के अशोक नबियाल बताते हैं, ‘सरकार जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत प्रति परिवार दो किलो चावल और पांच किलो गेहूं देती है. इतने से काम नहीं चलता. नज़दीकी बाज़ार धारचूला में है जो 50 किलोमीटर दूर है. वहां पहुंचने का रास्ते भी ख़राब मौसम के कारण ज़्यादातर बंद रहता है. इसलिए हम नेपाल के टिंकर और चांगरू के बाज़ारों से ज़रूरत की चीजें लेते हैं. वहां ये सब चीन के तकलाकोट बाज़ार से आता है.’

इसी तरह गर्ब्यांग के कृष्ण गर्ब्याल तो यहां तक कहते हैं, ‘हम अपने ही देश में अनाथ की तरह रह रहे हैं. वह भी इसके बावज़ूद कि हम देश के अहम सीमावर्ती इलाके में रहते हैं.’ वे साथ में यह मांग भी दोहराते हैं कि सरकार को इन गांवों के लिए पीडीएस के तहत उपलब्ध कराई जाने वाली खाद्य सामग्री की मात्रा बढ़ानी चाहिए, जो कि इन गांवों के लोगों की काफी पुरानी और अहम मांग भी है.

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